सनअति वज़ीर डॉ भीम सिंह ने कहा कि वजीरे आला या वज़ीर बनने के बाद भी पसमानदा और दलितों को वह इज्ज़त नहीं मिलता, जो एक तबके के ओहदेदारों को हासिल होता है। उन्होंने कहा कि दिल्ली से पटना आने के दौरान 25 सितंबर को मेरी तबीयत इतनी खराब हो गयी कि रांची के रिम्स में भरती होना पड़ा, लेकिन वजीरे आला और वज़ीर श्याम रजक को छोड़ कर पार्टी के किसी बड़े या छोटे लीडर ने खोज-खबर नहीं ली। आखिर इसकी वजह क्या हो सकता है?
मैं पार्टी के लिए जी-जान से काम करता हूं और मेरी जान पर पड़ जाये, तो कोई खोज-खबर नहीं ले। इससे यह वाजेह होता है कि कहीं-न-कहीं सामाजिक नजरिये में मुजरिम है। वज़ीर ने दूसरा मिसाल देते हुए कहा कि अवामी हीरो कपरूरी ठाकुर पर दो पार्ट में उनकी किताब के फी कोई रिस्पांस नहीं मिला। अगर यही काम कोई खुसुसि तबके का लीडर करता, तो उसकी तारीफ में पुल बांध दिया जाता। इंतेहाई पसमानदा, दलित या महादलित जाति का कोई सख्श कितना भी पढ़ा-लिखा या कितनी भी ऊंची कुरसी पर बैठा हो, वह नज़र अंदाज़ का शिकार होता है। लोग इन जातियों से आनेवालों को काफी हल्के में लेते हैं।