नई दिल्ली, 22 जनवरी (पी टी आई) संस्कृत ज़बान को हालाँकि मुल्क की मुश्किल तरीन ज़बान कहा जाता है लेकिन इस ज़बान के माहिरीन का कहना है कि ज़बान इतनी आसान है कि इसे फ़ौरी तौर पर स्कूली सतह पर लाज़िमी तौर पर पढ़ाया जाये। ऐसी सूरत में इस ज़बान की तरक्की मुम्किन है ।
राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के चौथे सालाना जलसा के मौकेपर ये सिफ़ारिश पेश की गई । वज़ीर बराए फ़रोग़ इंसानी वसाइल एम एल पल्लम राजू ने कहा कि गुरूकुल तरीका तदरीस के इलावा असरी जमहूरी इक़दार को मल्हूज़ रखते हुए संस्कृत की तालीम को आम किया जा सकता है ।
दूसरी तरफ़ लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ के वाइस चांसलर मुकुंदकम शर्मा ने कहा कि संस्कृत ज़बान को कम से कम क्लास नौ तक लाज़िमी तौर पर पढ़ाए जाने की ज़रूरत है और इसके बाद इसे तलबा इख़तियारी मज़मून के तौर पर पढ़ सकते हैं। इस तरह संस्कृत ज़बान का तहफ़्फ़ुज़ किया जा सकता है ।
इन मश्वरों को राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के वाइस चांसलर राधा वल्लभ त्रिपाठी की ताईद भी हासिल रही । उन्होंने मौजूदा तरीका तालीम को तन्क़ीद का निशाना बनाते हुए कहा कि तरीका तालीम नक़ाइस से भरा हुआ है जिसकी वजह से संस्कृत ज़बान को वो तरक़्क़ी हासिल नहीं हो रही है जिस की वो मुस्तहिक़ है।
तलबा भी संस्कृत जैसी क़दीम ज़बान में दिलचस्पी लेने की बजाय किसी बैरूनी ज़बान को सीखने और पढ़ने को तरजीह दे रहे हैं। राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान (RSS) फ़िलहाल एक डीम्ड यूनीवर्सिटी है । इसे नेशनल एसेसमेंट ऐंड एकरडिटेंशन कौंसल (national assessment and accreditation council) ने A ज़ुमरे की इंस्टीट्यूट के तौर पर मुस्लिमा क़रार दिया था।