अभिव्यक्ति की आज़ादी का है मौलिक अधिकार: सुप्रीम कोर्ट

अभिव्यक्ति की आज़ादी आज के समय का सबसे बड़ा सवाल है| संविधान के अनुसार तो हमें अभिव्यक्ति की आज़ादी मिलती है लेकिन हकीकी तौर पर ऐसा नहीं है| आज किसी के खिलाफ खुल के बोलने पर सज़ा मिलती है, ग़लत कहने पर मौत मिलती है, खुलासा करने पर मानहानि का पत्र मिलता है|

सुप्रीम कोर्ट ने उसी संवैधानिक तौर पर अभिव्यक्ति की आज़ादी को बरक़रार रखा है| सुप्रीम कोर्ट ने दलित लेखक और बुद्धिजीवी कांचा इलैया की विवादास्पद किताब ‘सामाजिक स्मगलुरू कोमाटोल्लु : वैश्य सामाजिक तस्कर हैं’  पर प्रतिबंध लगाने से इंकार कर दिया और कहा कि हर लेखक को विचार व्यक्त करने का मौलिक अधिकार है हर एक व्यक्ति को अभिव्यक्ति की आज़ादी है हम उसकी आवाज़ नहीं दबा सकते ये हमारा संविधान भी कहता है|

मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर तथा डी वाई चंद्रचूड़ ने एक वकील की जनहित याचिका को खारिज कर दिया जिन्होंने क़िताब पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किताब को प्रतिबंधित करने के किसी भी आग्रह की कड़ी समीक्षा होगी क्योंकि ‘हर लेखक को अपने विचार खुलकर व्यक्त करने का मौलिक अधिकार है’ और किसी लेखक के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को खत्म करने को हल्के तौर पर नहीं लिया जाना चाहिए.

पीठ ने कहा, “हम तथ्यों को विस्तार से नहीं बताना चाहते. यह कहना पर्याप्त है कि जब कोई लेखक किताब लिखता है तो यह उसके अभिव्यक्ति का अधिकार है. हमारा मानना है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत यह उचित नहीं है कि यह अदालत उस क़िताब पर प्रतिबंध लगाये|

 

शरीफ़ उल्लाह