अभिसार शर्मा का ब्लॉग- ‘सर्जिकल स्ट्राइक की सियासत’

“ये सरजिकल स्ट्राईक सिर्फ और सिर्फ इसलिए ऐतिहासिक है क्योंकि भारत ने इसको सार्वजनिक तौर पर स्वीकार किया है। बस। ऐसे हमले पहले भी हुए हैं , जिसकी तज़दीक खुद पूर्व सेना प्रमुख बिक्रम सिंह कर चुके हैं। जनरल ने तो जनवरी 2013 का हवाला दिया था जिसमे 2 भारतीय सैनिको की शहादत के जवाब मे कई पाकिस्तानियों को मारा गया था”
इस गलतफहमी मे मत रहिए कि अरविंद केजरीवाल ने ‘सरजिकल स्ट्राईक्स’ के लिए मोदी को सलाम कर रहे हैं। ना, बिल्कुल नहीं। उनकी बात का दूसरा हिस्सा है गौर करने लायक है कि, बौखलाए पाकिस्तान के प्रौपगैंडा का मुंहतोड़ जवाब दिया जाए। भारत सरकार भी सुबूत के साथ पाकिस्तान पर फिर सरजिलकल स्ट्राईक करे। और इसकी बड़ी वजह ये है कि पाकिस्तान इस मनोवैग्यानिक लड़ाई मे अभी थोड़ी सी बढ़त बनाए हुए है। वो दुनिया भर के मीडिया को पाक के कब्जे वाले कश्मीर मे घुमा रहा है, ये बताने कि लिए कि देखो , कुछ नहीं हुआ। ऊपर से वो संयुक्त राष्ट्र के उस बयान को भी प्रस्तुत कर रहा है जिसमे यूएन ने एलओसी पर हुए सरजिकल हमले पर संदेह जताया गया है। कांग्रेस नेता संजय निरूपम ने भी कहा है कि भारत सरकार असली सरजिकल स्ट्राईक करके एलओसी पार सारे टेरर अड्डे बर्बाद करे।
भारत के पास सुबूत है और उसका मानना है कि वो सही वक्त औऱ समय पर इसे पेश करेगा।

ये सही वक्त अगले 6 महीने मे कभी भी हो सकता है। क्योकि 6 महीने बाद यूपी के चुनाव हैं। बीजेपी को लग रहा है कि सरजिकल हमले के बाद वो मोदी के 56 इंच के सीने को REBRAND करके फिर पेश कर सकेगा। ऊपर से पार्टी के महान नेता पहले से ही कैराना-कैराना कर रहे हैं। उनका मानना है कि मुज्जफरनगर मे तवे की आंच बिल्कुल माकूल है। सिकाई मस्त होगी। वोट छप्पर फाड़ मिलेंगे। अगड़ी जाती को देशभक्ती का डोज़ मिल गया है और वो खुश है। अब मुसलमान असमंजस मे सपा और बसपा मे दो फाड़ हो जाएगा। दलित और पिछड़ी जाति का वोटर भी सरजिकल स्ट्राईक मे बह ही जाएगा। ऐसा वो मान रही है। क्योकि अच्छे दिन तो आए नहीं। अब अच्छे दिन से तो बीजेपी पिंड छुड़ा रही है क्योकि नितिन गडकरी जी की माने तो अच्छे दिन भी दरअसल मनमोहन सिंह का आईडिया था। लो कल्लो बात।
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खैर ये बात तो हो गई सियासत की। मगर अब वापस आते हैं सुबूत पर। भारत सरकार को याद रखना होगा कि हमारा प्रस्तावित सुबूत एक ब्रहमास्त्र है। इसका इस्तेमान सिर्फ एक बार हो सकता है। हम इसका इस्तेमाल जब भी करे , ऐसा करें कि पाकिस्तानी चारों खाने चित्त। दोहरा दूं , ये एक ब्रहमास्त्र है और बीजेपी की संजीवनी। मै जानता हूं आप सोच रहे होगे कि क्यो मै रामायण वक्त के हथियारों का बार बार जिक्र क्यो कर रहा हूं। अब का करें भईया, मौजूदा सरकार और उसके होनहार ये प्रतीक आसानी से समझ जाते हैं। सोचा इन्ही की भाषा मे बात की जाए। लिहाज़ा आप भी इंतजार कीजिए। सरकार पूरी सोच समझ के साथ ही कुछ करेगी। क्योकि सच तो ये हैं कि ये सरजिकल स्ट्राईक सिर्फ और सिर्फ इसलिए ऐतिहासिक है क्योंकि भारत ने इसको सार्वजनिक तौर पर स्वीकार किया है। बस। ऐसे हमले पहले भी हुए हैं , जिसकी तज़दीक खुद पूर्व सेना प्रमुख बिक्रम सिंह कर चुके हैं। जनरल ने तो जनवरी 2013 का हवाला दिया था जिसमे 2 भारतीय सैनिको की शहादत के जवाब मे कई पाकिस्तानियों को मारा गया था।

पत्रकारों का काम है कि वो सवाल पूछें। आखिर हमला कितना सफल रहा , निशाने पर कौन था , कितने आतंकी मारे गए? मगर माहौल ऐसा है कि ये सामान्य सवाल पूछने पर लोग देशद्रोही ठहरा देते हैं और वैसे भी अपनी सेना के दावे पर कौन सवाल कर सकता है। ऊपर से मामला पाकिस्तान का भी है। सुबूत का विडियो सामने कब आएगा , ये एक राजनीतिक फैसला भी है। मुझे नहीं लगता कि मोदी सरकार को पाकिस्तान की चिंता है। उनकी निगाह दरअसल पंजाब और यूपी के चुनावों पर होगी और फैसला भी उसी हिसाब से लिया जाएगा। सच तो ये ही कि सरजिकल स्ट्राईक को सार्वजनिक करने के पीछे भी यही मंशा है। मोदी एक निर्णायक नेता हैं , ये काल्पनिक नहीं , ये बात देश को समझाना जरूरी हो गया था।

और हां जरूरी ये भी है कि रक्षा मंत्री मनोहर परिक्कर, मनोहर कहानियां सुनाना बंद करें। आमिर खान के बारे मे उनके बयान तक तो ठीक था , अब वो ये भी कह रहे हैं कि सेना को हनुमान की तरह अपनी ताकत का अंदाज़ा नही था। क्योंकि सेना 2014 से पहले सो वहीं रही थी कि अपनी काबलियत का अंदाजा उन्हे अब जाकर हुआ , बिल्कुल वैसा ही जैसे लंका दहन करने से पहले हनुमान को जामवंत ने याद दिलाया था कि आपमे असंभव कर गुजरने की काबलियत है। सेना हनुमान सही , मगर आप मनोहरजी जामवंत कतई नहीं। रक्षा मंत्री हैं। बने रहें। पाकिस्तानी रंक्षा मंत्री के साथ बयानबाजी मे प्रतिस्पर्धा न करें। न भूलें , मौजूदा माहौल मे एक भारतीय सैनिक गलती से सीमा पार कर गया है , उसे वापस भी लाना है।
लेखक – अभिसार शर्मा, वरिष्ठ टीवी पत्रकार
(लेखक के निजी विचार हैं)