अभी सिर्फ 30 साल की हूँ लेकिन मुझसे मोदी सरकार क्यों डरती है? – राणा अय्यूब

मौजूद दौर में चारो तरफ मीडिया की भूमिका पर तरह तरह के सवाल उठाये जा रहे हैं। मीडिया की निष्पक्षता पर सवालिया निशान लगाये जा रहे हैं। ऐसे समय में आज जामिया मिल्लिया इस्लामिया के एम. ए. अंसारी ऑडिटोरियम में मजामीन डॉट कॉम के द्वारा जामिया के उर्दू विभाग के सहयोग से एक परिचर्चा “सामाजिक सौहार्द के संदर्भ में मीडिया की भूमिका” के विषय पर आयोजित की गयी।

इस परिचर्चा में जाने माने पत्रकार फैसल अली, शबनम हाश्मी, सबा नक़वी, अनिल चमरिया, डॉ ज़फरुल इस्लाम, डॉ अख्तरुल वासे और राणा अय्यूब जैसे अनेक लोग मौजूद थे। परिचर्चा में भाग लेने आई खोजी पत्रकार राणा अय्यूब दर्शकों के आकर्षण का केंद्र रहीं। गुजरात दंगों के दौरान खोजी पत्रकार राणा अय्यूब ने बेहतरीन पत्रकारिता करते हुए दंगों के ऐसे तथ्य सामने लाये जो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कैमरों में क़ैद नहीं कर पाये थे।

परिचर्चा में अपनी बात रखते हुए राणा ने मीडिया के बड़े वर्ग पर निष्पक्षता से अपनी जिम्मेदारी ना निभाने का आरोप भी लगाया। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि इसी साल अप्रैल में गुजरात दंगों पर आधारित एक किताब “गुजरात फाइल्स” प्रकाशित हुई। जिसका विमोचन उन्होंने अप्रैल माह में ही किया था जहाँ लगभग चार सौ लोग मौजूद थे लेकिन अगली सुबह इस किताब के रिलीज़ होने की खबर किसी भी अख़बार में नहीं मिली। राणा ने कहा यह दर्शाता है कि हमारा मीडिया किस हद तक निष्पक्षता से काम कर रहा है।

अपने साथ हाल में घाटी एक और घटना का ज़िक्र करते हुए पत्रकार राणा ने कहा कि पिछले महीने मुझे क़तर में भातिये दूतावास द्वारा एक कार्यक्रम में बोलने से पहले रोक दिया गया। मोदी सरकार को आड़े हाथ लेते हुए उन्होंने यह भी कहा कि मैं अभी सिर्फ 30 साल की हूँ लेकिन मुझसे मोदी सरकार इस क़दर भयभीत क्यों है? मुझे विदेशों में भी बोलने से रोक रही है। राणा अय्यूब की हाल में गुजरात दंगों पर आधारित किताब “गुजरात फाइल्स” प्रकाशित किताब का उर्दू तर्जुमा भी इस परिचर्चा के दौरान रिलीज़ हुआ। अंत में अल्पसंख्यक समुदाय को चेतवानी देते हुए राणा ने कहा कि समय आ गया है कि आप जाग जाएँ वरना आप मुर्दा क़ौम के रूप में दुनिया में जाने जाने लगेंगें।