अमरीका औरआलमी सियासत …मेरी नज़र से

आमिर अली ख़ान –मशहूर फ़लसफ़ी मानटकस ने एक बार कहा था “Power Corrupts and Absolute Power Corrupts Absolutely ” और अमरीका पर , जो अपनी बेपनाह फ़ौजी और मआशी ताक़त के ज़ोअम मैं बदमसत हाथी की तरह दुनिया को रोंदता रहा है, ये क़ौल मुकम्मल तौर पर सादिक़ आता है।

दर असल दूसरी जंग-ए-अज़ीम ने जहां मग़रिबी ताक़तों को कालोनीयों से महरूम करदिया वहीं दुनिया का वाहिद सुपरपावर समझा जाने वाला अमरीका के ज़हन में ये बात भी बिठा दी है कि एशीया वा अफ़र का और दीगर बररे अज़मों के पिसे हुए मुल़्क , एक तरह से उसकी कॉलोनी हैं औरवह दुनिया का पुलिस मैन है। इसी ख़ुद सताई के नतीजे में वो पिछले निस्फ़ सदी से दुनिया भर में दाख़िली और बैरूनी सतह पर होने वाले तसादुम और ख़ूँरेज़ी के वाक़ियात में रास्त या बिरासत तौर पर मुलव्विस रहा है ।

मगर बीसवीं सदी के नौवीं दहाई में सोवीयत यूनीयन की तक़सीम और बिखराओ के बाद जब अमरीका एक मुतलक़ अना न और वाहिद सोपर पावर बन गया तो इस ने अपनी सारी क़ुव्वत और और सारा ज़ोर आलम-ए- इस्लाम के ख़िलाफ़ अपनी उस इंतिक़ामी कार्रवाई में लगा दिया जिसकी तैयारीयों में पूरी मग़रिबी ईसाईयत पंद्रहवीं सदी ( सलीबी जंग में शिक्षित के बाद )से ही मसरूफ़ थी।

अमरीका की आलमी सियासत का अगर मैं इख़तिसार के साथ अहाता करना चाहूं तो मैं ये कह सकता हूँ कि,उसकी ख़ारिजा पालिसी और आलमी सियासत का मर्कज़ वमहवर बल्कि असल हदफ़ अगर कुछ रहा है तो वो इस्लाम ओर अहल इस्लाम रहा है। मुम्किन है आप इसे मुबालग़ा आराई पर मबनी ख़्याल तसव्वुर करें ,मगर पिछली चार पाँच दहाईयों का अगर बनज़रे ग़ाइर जायज़ा लें तो यक़ीनन आप भी मेरे ख़्याल से इत्तिफ़ाक़ करते नज़राइं गे।

इस्लाम ओर अहले इस्लाम के ख़िलाफ़ मआशी ,तहज़ीबी ,और मज़हबी साख पर दर पै हमले, तुर्की ,लीबिया,इंडोनेशिया,मिस्र, फ़लस्तीन, सऊदी अरब ,यमन और सोमालीया जैसे ममालिक में इस्लाम पसंदों की सरकूबी , इराक़ वाफ़ग़ान की तबाही ,गवांता ना मोबे और अब्बू ग़रीब जैसे जेलों में मुस्लमानों के साथ वहशयाना मज़ालिम और इंसानियत सोज़ सुलूक और फिर ज़राए इबलाग़ में उसकी तशहीर ,निक़ाब और दीगर इस्लामी शाइर पर अंगुश्त नुमाई , सोइज़रलैंड में मस्जिदों के मीनारों की तामीर पर पाबनदी, अमरीका में औरतों की इमामत का शोशा , वक़फ़े वक़फ़े से क़ुरान-ए- मुक़द्दस और पैग़ंबर –ए-इस्लाम के ख़िलाफ़ तौहीन आमेज़ हरकात, उसके ए सी मुनज़्ज़म सलीबी मंसूबे के हिस्से हैं।

अपने तवील मुद्दती मंसूबे के तेहत वस्त एषाया में क़दम जमाने केलिए अमरीका को किसी जवाज़ की ज़रूरत थी जो इस ने 9/11की सूरत में हासिल कर लिया और इस बहाने अफ़्ग़ानिस्तान को अपने जंगी जुनून का निशाना बनाते हुए वहां मुस्तक़िल क़दम जमाने की कोशिश जारी है ताकि अफ़्ग़ानिस्तान को एक मुस्तक़िल ज़ोन बनाकर वस्त एषया को अपने ज़ेर तसल्लुत लाया जा सके ।इराक़ कुव्वतो इस ने पहले ही तबाह वबरबाद कर दिया है,इराक़ी तेल की दौलत उसके क़बज़े में आचुका है,अब इसका उगला हदफ़ पाकिस्तान ,ईरान और शाम है जिस पर रास्त या बा अलवा सत्ता तौर पर हमला करने के फ़िराक़ में लगा हुआ है।

दीगर अरब ममालिक के हुक्मराँ तो अपनी इक़तिदार की तहफ़्फ़ुज़ केलिए लरज़ते काँपते अमरीकी पनाह में आ चुके हैं जोकि अमरीका की एक धमकी पर पहली फ़ुर्सत में सुरंगों हो जाऐंगे ,चूँकि अमरीका ने तीवनस ,मिस्र और लीबिया का ट्रेलर चलाकर उन अरब हुकमरानों को ये बावर करा चुका है कि ,अब तुम्हारी बारी है अलबत्ता अमरीका केलिए ईरान है जो फ़िलहाल उसके गले की हड्डी बना हुआ हैजिसे वो ना निगल पार हा है ना उगल पा रहा है। अमरीका पिछले कई बरसों से दुनिया को ये बावर कराने में मसरूफ़ है कि ईरान ऐटमी बम बना रहा है जिस से वो सारी दुनिया केलिए ख़तरा बन जाऐगा।

मगर ईरानी न्यूक्लियर प्रोग्राम के हवाले से 18जनवरी 2010को न्यूयार्क में मुनाक़िदा इजलास में रूस और चीन की मुख़ालिफ़त से ये वाज़िह होगया था कि रूस चीन समेत दुनिया के दीगर ममालिक भी ये समझ चुके हैं कि अमरीका झूटी कहानियां सुना सुना कर ईरानी न्यूक्लियर प्रोग्राम के ख़िलाफ़ फ़िज़ा तैय्यार कर रहा है,ठीक इसी तरह जिस तरह मरहूम इराक़ी सदर सद्दाम हुकूमत के ख़िलाफ़ केमिकल हथियार की तैय्यारी की फ़र्ज़ी कहानियां गढ़ी गई थीं और अक़्वाम मुत्तहदा की असलाह मुआइना कार टीम की जानिब से इस रिपोर्ट की पीशकशी के बाद भी कि,इराक़ में कैमीकल थयारों का कोई वजूद नहीं है,इस ने इक़वा मुत्तहदा औरबैन अल-अक़वामी क़वानीन की ख़िलाफ़ वरज़ य करते हुए इराक़ को तबाह-ओ-ताराज करदिया।

सवाल ये है कि,9वीं सदी के निस्फ़ अवाख़िर से है अमरीका अपनी ताक़त के ज़ोअम में कमज़ोर बिलख़सूस मुस्लिम ममालिक के ख़िलाफ़ जो मुसलसल तहरीक चला रहा है,क्या वो जमहूरीयत ,इंसानियत ,बैन-उल-अक़वामी अदालत, और अक़्वाम मुत्तहदा के मुंह पर तमांचा नहीं है?महिज़ तेल के ज़ख़ाइर पर क़बज़ा करने और इसराइल कवासतहका म अता करने अमरीका ने 20मार्च 2003.को इराक़ पर अपनी एक लाख तीस हज़ार फ़ौजों के साथ हमला करदिया।इंसानियत चीख़ती रही , सारी दुनिया आह वफ़ग़ांकरती रही मगर अक़वाम-ए-मुत्तहिदा अमरीका की गोद में बैठ कर हैवानियत का नंगा नाच देखता रहा।दूसरी जंग-ए-अज़ीम के बाद 24अक्तूबर 1945को अक़्वाम मुत्तहदा का क़ियाम अमल में आया ,लेकिन अगर में ये कहूं कि 1945से अब तक अक़वाम-ए-मुत्तहिदा सिर्फ “ अमरीकी दाश्ता ’’ का किरदार अदा किया है तो ग़लत नहीं होगा।

अगर अमरीका को किसी मुल़्क की पालिसी अच्छी नहीं लगी तो वो उसे अपने इशारों पर चलने मजबूर करदिया, जब कभी उसे किसी मलिक का क़ाइद पसंद नहीं आया तो उसकी हुकूमत का तख़्ता उलट दिया ,जब किसी मलिक के क़वानीन उसकी आँखों की शहतीर बन गए तो ज़राए इबलाग़ के ज़रीया उसके ख़िलाफ़ आलमी सतह पर प्रोपेगंडा कियागया,जब कभी किसी मुल़्क की तरक़्क़ी इस से हज़म नहीं हुई तो इस मलिक के ख़िलाफ़ मआशी नाका बंदी करते हुए इस का जीना हराम करदिया ओरया सब वो अक़वाम-ए-मुत्तहिदा के ज़रीया करवाता रहा और इस इदारे में शामिल नाम निहाद आलमी बिरादरी अपने अपने मुफ़ादात के ख़ातिर अमरीकी सियासत का मोहरा बनते रहे ।

आलमी बिरादरी की इस्तिलाह भी अमली तौर पर सिर्फ अमरीका और उसके सामराजी मंसूबों में शरीक मग़रिबी और योरोपी मुल्कों केलिए मख़सूस हो कर रह गई है ,बाक़ी दुनिया का इस बिरादरी में कोई किरदार नहीं।मुनाफ़िक़ बर्दारों पर मुश्तमिल इस आलमी बिरादरी का किरदार उस वक़्त मज़ीद वाज़िह होगया था जब इराक़ पर हमले इबतिदाई चंद हफ़्ते बाद इराक़ी मुज़ाहमत कारों ने कई अमरीकी टैंक ,हैलीकाप्टर और क़रीब एक सौ अमरीकीयों को हलाक कर दिया और चंद को क़ैद करलिया और जब इन अमरीकी क़ैदीयों की तस्वीरें और इंटरव्यू अल-जज़ीरा टेलीविज़न ने जारी किया तोआलमी बिरादरी के होश अड़गए और अमरीका फ़ौरन Geneva Convention की दहाई देते हुए कहने लगा कि जंगी क़ैदीयों की तस्वीर साज़ी या तज़लील अख़लाक़ी जुर्म है।मगर अब्बू ग़रीब जेल और गवांता नामो बे में मौजूद क़ैदीयों के साथ अमरीकी सुलूक को वो क्या नाम देगा।

अब्बू ग़रीब क़ैदख़ाने में इराक़ी क़ैदीयों के साथ अमरीकी फ़ौजीयों के इंसानियत सोज़ मज़ालिम पर तबसरा करते हुए , मलेशियाॱएॱ की इस्लाम पसंद पार्टी pan-malaysian Islamic Party के जनरल सेक्रेटरी ने कहा था अमरीका एक ऐसा मुलक है जो दुनिया को हमेशा इंसानी हुक़ूक़ की नसीहत करता है,मिग्रा स कमीनगी के मुज़ाहिरे ने उसके दोग़ले पन के रवैय्ये को और भी वाज़िह कर दिया है उसे आप दोगली पालिसी पर मबनी सियासत नहीं तो और क्या कहेंगे ,न्यूक्लियर प्रोग्राम के मुआमले में एक तरफ़ शुमाली कोरिया के साथ मुज़ाकरात के ज़रीया मसले को सुलझाने की कोशिश की जारी है जबकि दूसरी तरफ़ इसी मसले पर ईरान को धमकी और ताक़त के ज़रीया अपनी बात मनवाने की कोशिश की जा रही है।

इस वक़्त अफ़्ग़ानिस्तान में अमरीका की सियासत की दो अमली का सिलसिला जारी है,एक तरफ़ वो मुज़ाकरात का नाटक करता है तो दूसरी तरफ़ दहश्तगर्दी के नाम पर बेगुनाह मुस्लमानों पर बम भी बरसा रहा है। हालाँकि अमरीकी लगत में मुज़ाकरात और सुलह इसके सिवा कुछ नहीं कि थोड़ी सी मोहलत लेकर मद्द-ए-मुक़ाबिल को कमज़ोर कर किया जाई।

पिछले साल 28जनवरी को जब बर्तानिया में अमरीका तालिबान मुज़ाकरात की कोशिश जारी थी , और इस मुज़ाकरात की गूंज अभी फ़िज़ा मेंही थी कि अमरीकी फ़ौजीयों ने सूबा हलमंद में हमले की तैय्यार यां शुरू करदें जिस से अमरीका की दोगली पालिसी का पर्दा चाक हो गया और मुज़ाकरात नाकाम होगई।इसी तरह हमदर्दी औरआलमी इमदाद के नाम प्रभी अपने मुफ़ादात की तकमील अमरीकी सियासत का हिस्सा रहा है,उसकी एक ताज़ा तरीन मिसाल हेटी में पेश आए ख़ौफ़नाक ज़लज़ला है जहां जनवरी में आए तबाहकुन ज़लज़ले के बाद अमरीका ने वहां अपने 10,000फ़ौजी रवाना कर दिए ,जिस पर आलमी सतह परइस शकूक-ओ-शुबहात का इज़हार किया गया कि बज़ाहिर इन फ़ौजीयों का इमदादी कामों को अंजाम देना है मगर इतनी बड़ी तादाद में अमरीकी फ़ौजीयों की हेटी आमद अमरीका के तसल्लुत पसंदाना अज़ाइम के सिवा कुछ नहीं ।इसी तरह एक मिसाल पाकिस्तान की दीजासकती है।

यवाएस स्टेट डिपार्टमैंट की एक आदाद-ओ-शुमार के मुताबिक़ ,अमरीका ने 1951से लेकर हालिया अर्से तक यवाएस ऐड की जानिब से सिर्फ तालीम ,सेहत और मईशत के हवाले से पाकिस्तान को जुमला 7अरब डॉलर्स इमदाद दी है। ताहम इमदाद बराए इमदाद होतो भला किसे एतराज़ होसकताहै मगर सारी दुनिया जानती है अमरीका सिर्फ़ माली इमदाद नहीं देता बल्कि इसके साथ अपनी पालिसीयां भी मुसल्लत करवाता है और इमदाद (जिसे आप ख़ैरात भी कह सकते हैं) सिर्फ उसी सूरत मेंदीजाती है जब मुताल्लिक़ा हुक्मराँ आई ऐम एफ़ ,वर्ल्ड बैंक या दीगर इमदाद देने वाले मुल्कों की पालिसीयों पर अमल दरआमद को यक़ीनी बनाए , और अगर कोई ज़राभी चोंचरां करे तो अगले ही लम्हे उसकी गर्दन नापने की कोशिश की जाती है और पाकिस्तान की हालिया सूरत-ए-हाल इसकी एक बेहतरीन मिसाल है।

दरअसल ये एम्दाद हि तो है जो किसी के भी गले में तविक गु़लामी डालने का सब से बड़ा ज़रीया साबित होता है।पिछले चंद सदीयों की तारीख़ पर आप नज़र डालें तो मालूम होगा कि पूरी मग़रिबी दुनिया इस्लाम ओराहल इस्लाम के ख़िलाफ़ मुत्तहदा मुक़फ़ के तहत इक़दामात रूबा अमल लाती रही मगर उसके बरअक्स मुस्लिम ममालिक दाख़िली और बैरूनी दोनों सतह पर इख़तिलाफ़ात और बखराओ का शिकार हो गए या कर दिए गए ।ये ममालिक पूरी दुनिया के मुस्लमानों केलिए नमूना अमल बन सकते थे मगर उन्होंने अपने इक़तिदार के तहफ़्फ़ुज़ केलिए नसल परस्ती ,क़ौम परस्ती और अरब सोशलिज़्म के नारे बुलंद किए ,नतीजा ये निकला कि मुस्लमानों को जहां से मज़हबी ग़ैरत वहमीत ,इस्लामी तर्ज़ुमा शर्त और मग़रिबी अज़ाइम से नबरद आज़माई के फार्मूले मिल सकते थे ,वहां उन्हें आमिराना और मुलूकाना हुकूमत के ज़ेर साया प्रवान चढ़ने वाली क़ियादत मिली जो मग़रिबी ताय्युश पसंदी और अमरीकी गु़लामी का तविक अपने गले में डालना बाइस नजात तसव्वुर करती रही।

मगर अब वो दिन गए जब अमरीका अपनी मुनाफ़िक़ाना सियासत के ज़रीया मुस्लमानों पर अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ हुक्मराँ मुसल्लत करते रहे ,अब मुसलमानान आलम में बेदारी पैदा होरही है और उन में भी सयासी शऊर पुख़्ता होरहा है,कम-अज़-कम तीवनस की हालिया इंतिख़ाबी नताइज तो उसी हक़ीक़त की तरफ़ इशारा कररहे हैं जहां अमरीकी चाल उल्टा पड़ता नज़र आरहा है। दूसरी तरफ़ अफ़्ग़ानिस्तान में भी अमरीकी शिक्षित के आसार वाज़िह होते जा रहे हैं जहां अमरीकी सदर बारक ओबामा ने जानी और माली नुक़्सानात की ताब ना लाते हुए फ़ौजी इनख़ला-ए-के मंसूबे का ऐलान कर दिया है,मगर अफ़्ग़ानिस्तान में अमरीका की शक्त के निहायत दूर रस असरात मुरत्तिब होंगी।

अफ़्ग़ान जंग में अमरीकी शिकस्त का जो फ़ौरी नतीजा सामने आइगा वो ये होगा कि अमरीका का आलमी बादशाहत का ख़ाब शर्मिंदा ताबीर नहीं हो पावगा और वो अमरीका जिस ने ख़लीज की जंग में अमरीकी न्यू वर्ल्ड आर्डर का जो ख़ाब देखा था वो अफ़्ग़ानिस्तान के सहराओं में हमेशा केलिए दफ़न हो जाऐगा ओर ये शिकस्त असल में अमरीकी ज़वाल का नुक्ता आग़ाज़ साबित होगी ।