अमरीका और अमरीकी सहाफ़त मेरी नज़र से

आमिर अली खान – मौजूदा दौर में जिस चीज़ ने सब से ज़्यादा वुसअत ,असरपज़ीर और अवामी तवज्जा हासिल की है,वो बिलाशुबा ज़राए इबलाग़ यानी मीडिया है। यही वजह है कि आज के दौर में नज़रयाती ,मआशी ,सयासी और सक़ाफ़्ती जंगें ,मैदान जंग में नहीं बल्कि मीडिया के ज़रीया लड़ी जा रही हैं । पहले अफ़्वाज के ज़रीया हमला करते हुए जिस्मों पर हुक्मरानी की जाती थीं, अब ज़राए इबलाग़ के ज़रीया यलग़ार करते हुए ज़हनों व दमाग़ पर हुक्मरानी की जाती है ।

दरअसल दौरा अमरीका के तीसरे मरहले में हमारा पढ़ाओ IOWA CITY था जहां दौरान कियाम (2 ता 8सितंबर) इस बारौनक और ख़ूबसूरत शहर में अमरीकी ओहदेदारोंने हमारी मुलाक़ात अमरीकी ज़राए इबलाग़ से वाबस्ता अफ़राद से करवाई जिस का मक़सद आलमी ज़राए इबलाग़ के तनाज़ुर में अमरेकी ज़ाराइअ इबलाग़ का जायज़ा लेना था,यहां पर हमारी मुलाक़ात और बात जिन मुस्लिम सहाफ़ीयों से हुई इन में अक्सरियत का ताल्लुक़पाकिस्तान से था जबकि अंग्रेज़ सहाफ़ीयों से ताल्लुक़ रखने वालों में अक्सरियत यहूदीयों की थी। इसलिए आज मैं ने अमरीकी ज़राएइबलाग़ कोही अपनी तहरीर का मौज़ू बिना यह है और इस बात का जायज़ा लेने की कोशिश की है कि अमरीकी तारीख में पहली तरमीम (irst amendment) के ज़रीया जब मीडिया को आज़ादी दी गई तो इस आज़ादी का किस तरह बेदिरेग़ इस्तिमाल किया गया और किस तरह देखते ही देखते एक छोटी सी क़ौम ने पूरे अमरीका में ज़राए इबलाग़ का एक जाल बिछा दिया ।

मैंने अपने इस तहरीर में ये बताने की कोशिश की है कि आख़िर किस तरह दुनिया भर में मजमूई तौर पर सिर्फ 1,32,96,100 आबादी रखने वाली क़ौम-ए- यहूद आज ना सिर्फ अमरीका बल्कि आलमी ज़राए इबलाग़ पर कंट्रोल रखती है? आलमी ज़राए इबलाग़ परउनकी इजारादारी और कंट्रोल का ये आलम है कि ये अगर फ़ैसला करलें कि बारक ओबामा वैलन है तो कल पूरी दुनिया में उसामा ज़िंदाबाद और ओबामा हाय हाय के नारे लग जाऐंगे, ये वो लोग हैं जो ये फैसला करते हैं इराक़-ओ-अफ़्ग़ान औरपाकिस्तान के हज़ारों इंसानी नाशों से वो चार तुंद वे ज़्यादा कीमती हैं जो वोह शिंगटन के चिड़िया घर में ज़ुकाम का शिकार हैं ,और दूसरे रोज़ पूरी दुनिया तेनदुवे के बुख़ार में मुबतला होजाती है। आप यक़ीन कीजिए ,ये वो लोग हैं जोया फैसला करते हैं किस किस्म के ज़राए इबलाग़पर कौन सी ख़बर,कौनसी बात या तस्वीर शाय होगी या नशर होगी? किस ख़बर को ज़्यादा को-ओ-रेज देना है और किस ख़बर से अवाम को बेख़बर कर देना है? ये उनकी मर्ज़ी परइन्हिसार करता है।

इस हवाले से मज़ीद तफ़सीलात से गुरेज़ करते हुए इख़तिसार के साथ हम आपकोयह बतादें कि 21वीं सदी में अमरीकी ज़राए इबलाग़ ,मालीयाती इदारे ,मआशी और दिफ़ाई मामा लात मै यहुदी ग़लबे की ठीक वही सूरत-ए-हाल है जो 1929 मैं जर्मनी में थी। आज इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और प्रिंट मीडिया की 99 फीसद सनअत पर यहूदीयों का क़बज़ा है ।इसी तरह फ़िल्मी सनअत के 95फीसद हिस्से पर भी यहूदी सरमाया कारही क़ाबिज़ है। प्रिंट मीडिया, मैग्ज़ीन्स ,अख़बारात ,कमेवनेटी रेडीयो और इनटरटनमेनट के तमाम बड़े ज़राए पर इंही का कंट्रोल है। ज़राए इबलाग़ से वाबस्ता अफ़राद केलिए यहां बाज़ाबताएक एसी तंज़ीम मौजूद है जो सहाफ़त से वाबस्ता अफ़राद के मफ़ाद केलिए सरगर्म रहती है ये दरअसल मीडीया फ़र्म की एक ज़ेली तंज़ीम है जिसके ज़्यादा तर मुलाज़मीन मुस्लिम ममालिक ,मशरिक़-ए-वुसता और करणे अफ्रीका के इलाक़ों में मसरूफ़ हैं,यही वो तंज़ीम है जो दुनिया भर में ख़ास कर मुस्लिम ममालिक में इंसानी हुक़ूक़ और शहरी हुक़ूक़ के हवाले से सरगर्म तंज़ीमों की मदद क्या करती है और उनकी सरगर्मीयों पर नज़र रखती है।

मुताल्लिक़ा ममालिक में इस तंज़ीम से ताल्लुक़ रखने वाले सहाफ़ी अगर किसी परेशानी यह ख़तरे का इमकान ज़ाहिर करे तो इसके लिए फ़ौरी तौर पर हिफ़ाज़ती इक़दामात किए जाते हैं ।अगर प्रिंट मीडिया की बात की जाय तो अमरीका में अब इस शोबा को ज़वाल पज़ीरकहा जा सकता है,चूँकि ज़राए इबलाग़ के नए नए ज़राए ,इंटरनेट ,मोबाइल फ़ोन ओरएस एम उस की सहूलत ने लोगों को अख़बारात और मैगज़ीन से दूर करना शुरू कर दिया है,हालाँकि अमरीकी अवाम के बारे में कहा जाता है कि हर पढ़ा लिखा अमरीकी अख़बारज़रूर ख़रीदता है जबकि आम अमरीकी यौमिया 6 घंटे टी वी ज़रूर देखता है मगर अख़बारात की इन्हितात पज़ीरी का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि 1980की दहाई में यहां 50 बड़े अख़बारात की इशाअत हुआ करती थी जबकि अब सिर्फ 5 बड़े अख़बारात इशाअत की दौड़ में शामिल हैं और इस में भी दो अख़बारात के मालकीन का ताल्लुक़ गैर अमरीकी से है।

यानी हम ये कि सकते हैं कि आने वाले दिनों में प्रिंट मीडिया के दौर का ज़वाल या इख़तताम सब से पहले अमरीका से होगा।प्रिंट मीडिया के ज़वाल को देखते हुए मज़कूरा क़ौम के मख़सूस अफ़राद ने मीडिया के जदीद ज़राए पर क़बज़ा करने की कोशिश की और इसमें भी वो कामयाब रहे। इंटरनेट की ईजारने तो ज़राए इबलाग़ प्र काबिज़ अफ़राद केलिए अवाम तक रसाई के रास्ते मज़ीद आसान कर दिए ,ख़ासकर सोशल नेटवर्किंग साईट ,मसलन फेसबुक ,टोइटर,अरकेवट जैसे सोशल नेटवर्किंग के सहारे वो ना सिर्फ दुनिया भरके लोगों तक रसाई हासिल कररहे हैं बल्कि ग़ैर महसूस तरीके से वो लोगों की ज़ाती मालूमातभी हासिल कर लेते हैं,जिसका इस्तिमाल वो अपने मख़सूस मक़ासिद केलिए करते हैं ।मेरीमालूमात के मुताबिक़ ,इंटरनेट पर उसे ब्लॉगर्स की हौसलाअफ़्ज़ाई की जाती है जो मशरिक़ वुसता ,अरब और दीगर मुस्लिम ममालिक की सयासी ,मआशी ,मज़हबी और समाजी हालात पर मुसलसल ब्लॉग लिखते रहते हैं ।

ताहम मेरा मानना है कि सोशल नेटवर्किंग के जो मनफ़ी असरात मुरत्तिब होसकते हैं यह जो हो रहे हैं उसे का सब से ज़्यादा असर ख़ुद अमरीका और अमरीकी अवाम पर होगा।आज हालत ये है कि यहां की रियासतें तो मुत्तहदा कहलाती हैं मगर अवामी सतह पर कोईइत्तिहाद नज़र नहीं आता ,उनके आपसी ताल्लुक़ात सिर्फ़ हाय हलो तक महिदूद है, मायूसीऔर डिप्रेशन का ये आलम है कि यहां के तकरीबन हर टैली वीज़न चैनल पर मायूसी से बचाओ की तदाबीर और इस से बचने केलिए दवाओं के इश्तिहार की भरमार है । सोशल नेटवर्किंग के हवाले से मुझे उस वक़्त एक बर्तानवी इनटलेजनस ओहदेदार का वो जुमलायाद आ रहा है जिसमें उन्हों ने कहा था कि आज अगर हिटलर ज़िंदा होता तो सोशल नेटवर्किंग के ज़रीया वो पूरी दुनिया पर क़बज़ा कर लेता सोशल नेटवर्किंग के साथ साथ एफ एम रेडियो भी यहां ज़राए इबलाग़ का एक ताक़तवर तरीन हिस्सा है ओर ये आम अमरीकियों तक रसाई का आसान ज़रीया साबित हुआहै । रेडियोके इलावा इस एम उस को भी ख़बरों की तरसील और फैलाओ का ज़रीया बनाया जाता है जैसा कि अफ्रीका में इस एम इस के ज़रीया लोगों को किसी मख़सूस प्रोग्राम और चैनल देखने की तरग़ीब दी जाती रही है।

मसला ये है कि आम अमरीकी ज़राए इबलाग़ की ख़बरों पर आँख बंद कर के भरोसा कर लेते हैं ,उन्हें इस से कोई ग़रज़ नहीं कि कौनसी ख़बर कितनी मुसद्दिक़ा यह ग़ैर मुसद्दिक़ा है,वो वही देखते और सुनते हैं आलमी ज़राए इबलाग़ पर क़ाबिज़ अफ़राद उन्हें दीखाना और सुनाना चाहते हैं । यहां में एक मिसाल देना चाहूंगा , 8सितमर 2011 को जिस वक़्त में अमरीका जाने की तय्यारी कररहा था एक अमरीकी न्यूज़ चैनल पर एक फ़र्ज़ी मुम्किना दहश्तगर्द हमले की इत्तिला दी गई we have credible, yet unconfirmed report of possible terror attack हमारे पास भरोसे मंदता ताहम ग़ैर मुसद्दिक़ा ख़बर मिली है कि अनक़रीब दोबारा दहश्त गर्द हमले होंगे इस ख़बर में जुमलों के हेरफेर से किसतरह अवाम को बेवक़ूफ़ बनाने की कोशिश की गई है ,उसका अंदाज़ा लगाना ज़्यादा मुश्किल नहीं है,मगर अमरीकी अवाम को यक़ीन दिलाने केलिए इसी तरह लफ़्ज़ों का खेल खेला जाता रहा है ।

मन घड़त खबरें ,फ़र्ज़ी कहानियां और जुमलों की अय्यारी की यहां एक एक मिसाल दूंगा, नेटवर्किंग साईट पर एक कहानी “Gay Girl In Damascus” के उनवान से तवील अरसे तक शाय होती रही ,इस कहानी के तुएं पूरी दुनियां में ज़बरदस्त तजस्सुस पाया गया औरलोग हमेशा इस क़िस्त वार कहानी का इंतिज़ार करते रहे मगर बाद में जब तहक़ीक़ की गई तो वो एक अमरीकी मर्द andy carvin निकला। बहरहाल आमद बरसर-ए-मतलब. अगर मैं यहां पर एक ताक़तवर तरीन तंज़ीम AIPAC का तज़रकरा ना करूं बात अधूरी रह जाऐगी,IPAC यानी अमरीकन इसराइल पब्लिक अफ़ेरज़ कमेटी,ये दरअसल इसराइल की अमरीका में एक अहम तरीन,मज़बूत और मुनज़्ज़म तरीन लॉबी है जो अमरीकी सियासत प्रका फ़ी असरोरसूख़ रखती है।

बताया जाता है कि अमरीका की जो बाअसर शख़्सियात हैं यह जो अहम सयासी यह मालीयाती ओहदों पर फ़ाइज़ होते हैं,उन्हें ये तंज़ीम फ़ौरी तौर पर इसराइल के दौरा की पेशकश करती है और इस पेशकश सेमुताल्लिक़ा अफ़राद इनकारकरने की हमाक़त भी नहीं करते। अमरीकी ओहदेदारों से बात चीत के दौरान हमें ये मालूम हो इक्का यहां की अहम शख़्सयात ,मैक्सिको जो कि यहां से काफ़ी करीब है , का दौरा करें ना करें ,इसराइल कादोरा करना अपने लिए फ़र्ज़ ऐन तसव्वुर करते हैं । इस में कोई दो राय नहीं कि अमरीकी पॉलीसी साज़ इदारों परे हो दी लॉबी काग़लबा है, अमरीकी ओहदेदारों से होने हमारी होने वाली बात चीत के दौरान एक ओहदेदारने इस हक़ीक़त का एतराफ़ किया और कहा हाँ अमरीकी ख़ारिजा पॉलीसी का झुकाओ इसराइल की तरफ़ है बहरहाल मेरे कहने का लब लबाब ये है कि अमरीकी ज़ारा इबलाग़ आज़ाद हो कर भी आज़ाद नहीं है चूँकि यहां के तक़रीबा तमाम बड़े मीडिया फ़र्म परे हौदियों की मलकीत है इसलिए वो जिसे नहीं चाहेंगे वो कभी खबरनहीं बनेगी और जिसे चाहेंगे वो चंद सकनड में ख़बर बन कर पूरी दुनिया में फैल जाइगि –