अमरीका और अमरीकी सियासत मेरी नज़र सी

आमिर अली खान –  कहते हैं कि इंसानी ज़िंदगी सफ़रदर सफ़र का एक ऐसा दायरा है जिस के आग़ाज़-ओ-इख़तताम के दौरान में बहुत दिलचस्प वाक़ियात व मोशाहिदात वाबस्ता होते हैं। और शायद यही वजह है कि बे शुमार शख़्सियतों के सफ़र नामे उनके तजुर्बात ,मुशाहिदात और वाक़ियात का आईना होते हैं जिसमें अहल-ए-नज़र गर्दिश –ए- ज़माना का चेहरा देख लेते हैं । दरअसल हुकूमत अमरीका की दावत पर गुज़शता माह हम ने तक़रीबन तीन हफ़्ता तवील अमरीकी शहरों का दौरा किया ,जहां हमें कई एक दिलचस्प वाक़ियात और मुशाहदात के ख़ुशगवार तजुर्बे का एहसास हुआ,जिसे हम अपने क़ारईन के सामने रखने के मक़सद से उसे ज़बत तहरीर में ला रहे हैं।

ऐसा नहीं है कि ये अमरीका का मेरा पहला दौरा था …..मैं उस से पहले भी मुख़्तलिफ़ अस्बाब की बुनियाद पर कई बार वहां जा चुका हूँ ,मगर इस बार चूँकि हुकूमत अमरीका ने बज़ात-ए-ख़ुद अमरीका के मुख़्तलिफ़ शहरों का दौरा कराने केलिए मुंतख़ब किया था इस लिए मैं चाहताहों कि मैं इन हक़ायक़ का इन्किशाफ़ करुं कि हुकूमत अमरीका इंटरनैशनल वज़ीटरलीडरशप प्रोग्राम के नाम पर दुनिया भर से हर साल 4000 से ज़ाइद मुमताज़ शख़्सियतों का इंतिख़ाब करके उन्हें अपने अख़राजात पर अमरीका का दौरा क्यों कराती है ?

 

वो कौनसे मक़ासिद हैं कि जिसके लिए ज़वाल पज़ीर मईशत अमरीका आज भी हर साल मज़कूरा शख़्सियतों के पीछे 5 करोड़ 40 लाख डालर ख़र्च करती है ? वो कौनसे तरीका-ए-कार हैं जिसके तेहत मुख़्तलिफ़ शोबा-ए-हियात वाबस्ता अफ़राद का इस प्रोग्राम केलिए इंतिख़ाब किया जाता है और क्यों ? आख़िर वो कौनसी वजूहात हैं जो हुकूमत-ए-अमरीका 1940 से इस प्रोग्राम को पाबंदी के साथ रूबा अमल लारही है और सब से अहम नुक़्ता ये कि क्या अमरीकी हुकूमत इस प्रोग्राम के ज़रीया अपने असल मक़ासिद को हासिल कर सका है ? या नहीं ! ये और इस तरह के कई सवालात जो मेरे ज़हन वा अफ़कार के पर्दे पर उभरते रहे हैं ,अपने इस सफ़र नामे के ज़रीये इस का जवाब देने की कोशिश करूंगा।

सब से पहले तो हम आप कोय बता दें कि इंटरनैशनल वीज़ीटर लीडरशिप प्रोग्राम में शिरकत केलिए दुनिया भर में मौजूद अमरीकी सफ़ा रत खाने की जानिब से इंतिख़ाब अमल में आता है जहां अमरीकी महिकमा-ए-ख़ारजा के ख़ारिजी ख़िदमात के ऑफीसर स अपने मुताल्लिक़ा ममालिक में मौजूद मुख़्तलिफ़ शोबा-ए-हियात से ताल्लुक़ रखने वाले बाअसर अफ़राद का बहुत ही गौरव फ़िक्र के बाद इंतिख़ाब करते हैं। ये प्रोग्राम यवाएस डिपार्टमैंट आफ़ स्टेट की जानिब से 1940मैं तर्तीब दिया गयाहै जिस का मक़सद अमरीका और दीगर ममालिक के दरमयान बाहमी इफ़हाम-ओ-तफ़हीम पैदा करना है ,बाअल्फ़ाज़ दीगर इस प्रोग्राम के मक़ासिद में अमरीका के तईं दूसरे ममालिक के अफ़राद में जो ग़लत फहमियां (जो दरअसल हक़ीक़त पर मबनी होती हैं) पाई जाती हैं उसे दूर करना है। और मज़कूरा महिकमा इस मक़सद की तकमील केलिए दुनिया भर से उन मुमताज़ शख़्सियतों का इंतिख़ाब करता है जो अपने अपने शोबे में असरोरसूख़ के हामिल तसव्वुर किए जाते हैं।

बहरहाल जारीया साल हिंदूस्तानी शोबा-ए-सहाफ़त से जुमला पाँच अफ़राद का इंतिख़ाब किया गया था जिसमें रोज़नामा सियासत से इस नाचीज़ के इलावा रोज़नामा अख़बार मशरिक़ कलकत्ता के एगज़ीकीटो ऐडीटर मिस्टर तनवीर उल-हक़ ,उर्दू टाईम्स मुंबई के मनीजिंग ऐडीटर और पार्टनर , मिस्टर इमतियाज़ अहमद, स्पैशल करसपानडनट मुस्तक़बिल मिस्टर सय्यद महमूद नवाज़ और रोज़नामा मिलाप उर्दू के इंटरनैशनल अफ़ीरके ऐडीटर मिस्टर ऋषि सूरी शामिल थी।दिलचस्प बात ये है कि इस दौरे से क़बल सिवाए मिस्टर तनवीर उल-हक़ के ,में मज़कूरा तमाम शख़्सियात से बिलकुल नावाक़िफ़ था और हम ने कभी एक दूसरे की सूरत भी नहीं देखि थि मगर दिल्ली से सात समुंद्र पार का तवील सफ़र और तक़रीबन एक माह तवील क़ियाम अमरीका के दौरान वो शनासाई और वो ताल्लुक़ पैदा हुआ कि अब जब तक मिले ना थे ,ना मिलने का था मलाल.और अब ये मलाल है कि तमन्ना निकल गई वाली बात होगई ।

प्रोग्राम के मुताबिक़ हम लोग 10 सितंबर 2011 को अमरीकी दार-उल-हकूमत वाशनगन डी सी पहुंच गए जहां एक आलीशान होटल में हमारे क़ियाम का इंतिज़ाम किया गया था। इस प्रोग्राम में अमरीका के चार बड़े शहरों को हमारे दौरे शामिल किया गया था ,जिसमें वाशिंगटन,टमपा फ़्लोरीडा,आयवटासटी,और न्यूयार्क शामिल थे और वाशिंगटन हमारे सफ़रका पहला पढ़ाओ था।वाशिंगटन डी सी को अमरीकी दस्तूर में वफ़ाक़ी ज़िला की हैसियत दी गई है जोकि इसे दार-उल-हकूमत की हैसियत से ख़िदमात अंजाम देने दीगर रियास्तों से अलैहदा करती है ।इस शहर को 1790मैं अमरीकी दार-उल-हकूमत होने का एज़ाज़ हासिल हुआ।अविराज तक वाशिंगटन सब से बड़े सयासी मर्कज़ की हैसियत रखता है जहां क़ौमी अओरबीन अल-अक़वामी सियासत की बिसात बिछाई जाती रही हैं।

यही वो शहर है जहां से दो बड़े अख़बारात वाशिंगटन पोस्ट और वाशिंगटन टाइम्स निकलते हैं। इन अख़बारात के बारे में कहा जाता है कि दुनिया भरके अख़बारात ख़बरें छापते हैं ओरया ख़बरें बनाते हैं। ये वो शहर है जहां दुनिया के बड़े बड़े तालीमी इदारों में शामिल ,जॉर्ज वाशिंगटन यूनीवर्सिटी ,हॉवर्ड यूनीवर्सिटी ,अमरीकन यूनीवर्सिटी वग़ैरा मौजूद हैं। जुमला,91,833 नफ़ूस पर मुश्तमिल आबादी वाले इस शहर में बड़े पैमाने पर तरक़्क़ीयाती काम 1800 में शुरू किया गया था जिस का सिलसिला अभी तक जारी है। वाशिंगटन के दौरे के दौरान मेरे एक दोस्त ने मुझ से पूछा आपको क्या लगता है ,अमरीका जो उस वक़्त इक़तिसादी और फ़ौजी एतबार से सुपरपावर बना हवाहै, उसकी इन कामयाबीयों के पसे पर दह कौनसे अवामिल कारफ़रमा हैं ? मैंने कहा मेरे ख़्याल से उसकी ताक़त का राज़ अमरीका की बुनियाद डालने वाले और अमरीका पर ख़िदमत करने वाले चालाक सियासतदां और सरकारी मुलाज़मीन हैं क्योंकि ये वो लोग हैं जिन्हों ने अमरीकी अवाम को मासूम बताकर अपना हर किस्म का लोहा मनवा रहे हैं।

आम अमरीकी शहरी को सिर्फ में में और मैं के चंगुल में मुबतला कर के ये लोग सारा काम चला रहे हैं। दिल मिले ना मिले हाथ मिलाते रहिये के मिस्दाक़ अमरीकी अवाम एक दूसरे को सलाम (विश्) करते हैं। कोई किसी से ज़्यादा दोस्ती या क़ुरबत नहीं रखता , ना सिर्फ ये अवाम को यहूदी सहाफ़ी अपने साज़िशी हिस्सा के तौर पर वही ख़बरें मुख़्तलिफ़ तरह से पहुंचाते हैं कि वो उन पर एतबार करते रहे हैं और कर रहे हैं। मेरे आइन्दा के मज़ामीन में मेरे मुशाहदात से आप को वाक़िफ़ कराउं गा । उम्मीद करता हूँ कि वो आप को पसंद आयेंगी ।(जारी)