अमरीका और उसकी नाकाम ख़ारजा पालिसी…. मेरी नज़र से

आमिर अली ख़ान- अमरीकी ख़ारजा पालिसी को नाकाम ख़ारजा पालिसी का मजमूआ कहा जाय तो ग़लत नहीं होगा, इस वक़्त पूरी दुनिया में अगर कोई मुल़्क अपनी ही ख़ारजा पालिसी के तईं सब से ज़्यादा तज़बज़ुब (कशमकश) का शिकार र है तो वो अमरीका है जो बैनुल अक्वामी पालिसी के हवाले से एक ख़तरनाक दोराहे पर खड़ा है।तबदीली के नारे के सहारे इक़तिदार पर क़ाबिज़ होने वाले बारक ओबामा ने भी अपने पेशरो सदर बुश के नक़श-ए-क़दम पर चल कर अमरीकी पालिसीयों को तबाही के दहाने पर पहुंचा दिया है।

चीन के साथ तायवान के मसले पर तनाज़ा हो या मशरिक़ी यूरोप में ऐन्टी मिज़ाईल सिस्टम की तंसीब के मुआमले पर रूस के साथ कशीदगी,जॉर्जिया पर सयासी तसल्लुत का मसला हो या शुमाली कोरिया को आँख दिखाने मुआमला,अपने हमसाया ममालिक लातीनी अमरीका के वेनज़वीला और बोल्यो की दाख़िली सियासत में उथल पुथल पैदा करने की कोशिश हो या ब्राज़ील की मआशी तरक़्क़ी में रखना अंदाज़ी की सई,( कोशिश) दहश्तगर्दी के नाम पर इस्लाम ओर अहले इस्लाम के ख़िलाफ़ कार्रवाई का मुआमला हो या अपने हलीफ़ इस्लामी ममालिक के दाख़िली मसाइल में टांग उड़ाने की बेजा ख़ाहिश , अरबी , फ़ारसी में दराड़ डालने की कोशिश , तक़रीबन हर महाज़ पर अमरीका को मुंह की खानी पड़ी है।

इराक़ को तबाह करने के बाद भी ना वो इराक़ में (wMD) कीमीयाई असलाह काकोई सुराग़ लगा सका और नाही वो इराक़ी तेल के ज़ख़ाइर पर क़बज़ा करसका,अपनी पूरी ताक़त व तवाइनाई के साथ अफ़्ग़ानिस्तान पर हमला करने के बाद अब तक ना वो तालिबान का ख़ातमा करसका और ना है वहां कठपुतली हुकूमत के क़ियाम के ज़रीया अपने असल मक़ासिद को हासिल करसका। मगर गिरे तो गिरे टांग अपनी ऊंची के मिस्दाक़ अमरीकी हुक्मराँ ना अपनी ग़लतीयों से कोई सबक़ लेने तिया रहें और ना ही अपने हिट धर्म रवैय्ये में कोई तबदीली लाने को राज़ी ।जहां तक उसामा बिन लादन को क़तल कर दने के बाद अपनी पीठ थप थपाने का ताल्लुक़ है तो इस मुआमले में भी अमरीका अपने मक़सद के हुसूल में उसामा से दो क़दम पीछे ही रहा है।

साल 2004के एक आडीयो पैग़ाम में उसामा बिन लादन ने कहा था .. हम अमरीका को इतना लहूलुहान करदेंगे कि वो दीवालीया होकर रह जाऐगा,हमारा काम बस इतना है कि किसी भी जगह एक कपड़ा लहरा कर इस पर अलक़ायदा लिख दें जिसे देखते ही फ़ौजी जनरल वहां दौड़ पड़ेंगे और उसके नतीजे में अमरीका का जानी ,माली और सयासी नुक़्सान होता रहेगा.. बिन लादन की ये पैशन गोई दरुस्त साबित हुई और इराक़ ,अफ़्ग़ानिस्तान की जंगों और यमन ,सोमालीया औरपाकिस्तान में ड्रोन हमलों से अमरीका के फ़ौजी अख़राजात में ना सिर्फ इज़ाफ़ा हुआ बल्कि जंगी अख़राजात के नतीजे में आज अमरीकी मईशत दीवालीया होने के क़रीब पहुंच चुकी है।

और अब तो अमरीकी अवाम अपने आपसी गुफ़्तगु के दौरान इस बात का बरमला एतराफ़ कररहे हैं कि उनकी हुकूमत की सारी तवज्जा ख़ारिजी सियासत पर मर्कूज़ हो जाने की वजह से उनके दाख़िली मसाइल ,मसलन ग़ुर्बत ,बेरोज़गारी ,महंगाई और इफ़रात ज़र में इज़ाफ़ा हुवा है। इसके इलावा मज़कूरा जगहो मप्र लड़ाई के दौरान शहरीयों की हलाकत और अमरीकी फ़ौजीयों के हाथों क़ैदीयों के साथ वहशयाना सुलूक से अमरीकी शबिया भी बुरी तरह मोतासिर होई। सयासी तजज़िया कारों का ख़्याल है कि अमरीका उसामा बिन लादन के फेंके हुए उस जाल में फंस गया,जिस का मक़सद उसे जंगों में उलझाकर उस की ताक़त को कमज़ोर करना था ,उसामा को यक़ीन था कि जिस तरह अफ़्ग़ानिस्तान में जंग के बाद साबिक़ सोवीयत यूनीयन कमज़ोर हो गया था,इसी तरह अमरीका को भी कमज़ोर किया जा सकता है।

2003मैं इराक़ के ख़िलाफ़ जंग को अमरीकी ख़ारजा पालिसी का इंतिहाई तबाहकुन फ़ैसला तसव्वुर किया जाता है क्योंकि इस से ना सिर्फ 9/11 के बाद अमरीका को हासिल होने वाली आलमी हिमायत और हमदर्दी ख़तम होगई बल्कि दुनिया भरके करोड़ों मुस्लमानों में ये एहसास पैदा होगया कि अमरीका की जंग इस्लाम ओर अहले इस्लाम के ख़िलाफ़ है और सदर बुश के दौर में इन्सिदाद-ए-दहशत गर्दी सीकोरीटी ग्रुप के सरबराह रह चुके ,रिचर्ड क्लार्क ये लिखने पर मजबूर हो गए कि …हम अपने दुश्मनों के हाथों में खेलते रहे जिन्होंने जान बूझ कर ऐसी कार्यवाहीयां अंजाम दिं कि हम इन का जवाब उनके अंदाज़ों के मुताबिक़ दें ,जिस से हमारी मईशत को शदीद नुक़्सान पहुंचा और पूरी दुनिया में हमारे ख़िलाफ़ नफ़रत में इज़ाफ़ा हुआ।

दर असल अमरीका की ख़ारजा पालिसी साज़ों की सारी तो जा ,ख़ासकर 9/11के बाद सकीवरीटी और सलामती के इर्दगिर्द ही मर्कूज़ होगर रह गई और स्टेट डिपार्टमैंट जो कि रियासत हाय मुत्तहदा के ख़ारिजी उमूर का इंतिज़ामी मर्कज़ है,उसकी सिर्फ रस्मी हैसियत रह गई,चूँकि अमरीकी ख़ारजा पालिसी की तदवीन में हुकूमत के दूसरे अदारी मसलन वाईट हाऊस और महिकमा दिफ़ा ही अहम तरीन और अमली किरदार अदा करता रहा है,जबकि इस मुआमले में स्टेट डिपार्टमैंट के रोल निभाने का वक़्त आख़िरी और रसमन होताहै ओरीक़नन ये मौजूदा सयासी सिस्टम की कमज़ोरी के सबब है।आप इस हक़ीक़त का अंदाज़ा इस बात से लगा सकते हैं कि 2006मैं स्टेट डिपार्टमैंट केलिए सिर्फ़ 9बिलीयन डालर का बजट मुख़तस किया गया था ,जबकि उसके मुक़ाबिल महिकमा दिफ़ा केलिए 419बिलीयन डालर मुख़तस किए गए थी,इस से अंदाज़ा किया जा सकता है कि अमरीकी पालिसी किन मसाइल और किस तरह की लॉबी की असीर है।यहां पर अगर में ये कहूं कि अमरीकी पालिसी की तदवीन और इस पर अमल आवरी में यहां मौजूद मुख़्तलिफ़ तरह की लॉबी का बहुत बड़ा रोल होताहै तो शायद ग़लत नहीं होगा।

मैन ने इस से पहले अपने मज़ामीन में ,सिर्फ एक लॉबी AIPAC का तज़किरा किया था जो इसराइलियों और इसराइल हामी अमरीकीयों पर मुश्तमिल है,मगर आप कोय जान कर ताज्जुब होगा कि इसतरह के 34,000 लॉबिंग फर्म्स वाशिंगटन में मौजूद हैं जो अपने अपने मफ़ादात केलिए शब-ओ-रोज़ सरगर्म रहते हैं। इस हवाले से साबिक़ सदर Dwight Eisenhower ने अपने इक़तिदार के आख़िरी दौर में अमरीकीयों को ख़बरदार किया था कि वो इस तरह के लॉबिंग फर्म्स से होशयार रहीं जो अमरीका की ख़ारजा पालिसी पर असरअंदाज़ होने कोशिश करते र है हैं ,ख़ास कर दिफ़ाई उमूर से मुताल्लिक़ इंडस्ट्रीज़ पर असरअंदाज़ होने वाले लॉबी से चौकन्ना रहने का उन्होंने मश्वरा दिया था। बताया जा ताहे कि इसतरह के लॉबी फर्म्स , अमरीकी कांग्रेस के अरकान ,एगज़ीकीटोबरानच के ओहदेदार और वफ़ाक़ी हुकूमत से ताल्लुक़ रखने वाले दीगर ओहदेदारों पर,मज़दूर यूनीयन ,पराईओट कंपनीयों,नसली और मज़हबी गिरोहों की जानिब से असरअंदाज़ होते हैं ।

ये वो लोग औरवह ग्रुप हैं जो अमरीका की पालिसी साज़ी में किसी ना किसी तरह से अपना ग़ैरमामूली हिस्सा अदा करते रहे हैं।मगर तमाम तजज़िया निगारों का इस बात पर इत्तिफ़ाक़ है कि तमाम लॉबिंग ग्रुपस में सब से ज़्यादा मुनज़्ज़म और अमरीकी पालिसी पर असरअंदाज़ होने की सलाहीयत रखने वालों में सीहोनी लॉबी ग्रुप, जैसे अमरीकन इसराइल पब्लिक अफयर्स कमेटी (IPAC) और क्रिस्चन यूनाइटेड फ़ार इसराइल (CUFI ) वग़ैरा शामिल है।वाज़िह रहे कि दीगर ममालिक की तरह यहां हिंदूस्तानी लॉबी भी मौजूद है जो हिंदूस्तानी मफ़ादात केलिए सरगर्म रहती है।मेरे दौरे के दौरान वर्जीनिया में इंडियन लॉबी ग्रुप से भी हमारा तआरुफ़ किराया गया ,इस ग्रुप के सरबराह मिस्टर सनजए पूरी हैं जो यवाएस इंडियन पोलीटिक्ल ऐक्शण कमेटी की क़ियादत करते हैं ।

वाज़िह रहे कि वाशिंगटन में सरगर्म इंडियन लॉबी ने हिंद अमरीका न्यूक्लियर मुआहिदे की हिमायत केलिए अमरीकी कांग्रेस अरकान पर दबाओ बना ने में अहम तरीन रोल अदा किया था।इस मौक़ा पर जर्नलिस्ट्स के साथ भी हमारी मीटिंग का एहतिमाम किया गया था,जहां बड़े बड़े जर्नलिस्ट मौजू दथी।यहां हमें एक India-us relation नामी किताब दी गई जो हिंद अमरीका ताल्लुक़ात पर मुश्तमिल है ,इस किताब मेंअपने वक़्त के नामवर जर्नलिस्ट जैसे , के ऐस बाचपाई ,संजय बारू (सहाफ़ी फिर बाद में वज़ीर-ए-आज़म मनमोहन सिंह के साबिक़ मीडीया एडवाइज़र ), मिस्टर वाजपाई के दौर-ए-इक्तदार में क़ौमी सलामती मुशीर रह चुके मिस्टर बृजेश मिश्रा ,साबिक़ सफ़ीर अमरीका बराए हिंद मिस्टर नरेश चंद्रा और मिस्टर जमशेद गोदरेज जैसी बाअसर शख़्सियात के मज़ामीन मौजूद हैं ,जो हिंद अमरीका असटरीटजक ताल्लुक़ात को समझने में काफ़ी मुआविन हैं।

बहरहाल बात होरही थी अमरीकी ख़ारजा पालिसी पर असरअंदाज़ होने वाले अस्बाब-ओ-अवामिल की,इस सिलसिले में ये बात ज़हन नशीं रहे कि अमरीका की दाख़िली या ख़ारिजी पालिसी में जो सब से बड़ी तबदीलीयां आना शुरू हुईं वो साबिक़ सदर जॉर्ज बुश के दौर-ए-इक्तदार में हुईं ,क्योंकि सदर बुश ने अपनी काबीना और अपने इर्दगिर्द ऐसे अफ़राद को तर्जीह दी जोया तो क़दामत पसंद ईसाई थे या जारिहाना नज़रियात के हामिल ।मसलन नैशनल सीकीवरीटी एडवाइज़र मिस कोन्डा लीज़ा राईस ,वज़ीर दिफ़ा मिस्टर डोनाल्ड रम्सफ़ेल्ड,सैक्रेटरी आफ़ दी स्टेट मिस्टर कोलिन पाउल ,वाइस परसीडनट ऐंड सेक्रेटरी आफ़ दी डीफ़ैंस मिस्टर डक चेनी जैसे क़दामत पसंद और जारेह फ़ित्रत के हामिल अफ़राद उस वक़्त अमरीका की ख़ारजा पालिसी साज़ी और इस पर अमल आवरी में पेश पेश रहे। बताया जाता है कि अमरीका की पूरी तारीख़ में वाइस परसीडनट को कभी भी उतना ताक़तवर मुक़फ़ हासिल नहीं था जितना कि सदर बुश के दौर-ए-इक्तदार में डक चेनी को हासिल था ।

ये डक चेनी ही थे जिस ने अमरीकी खु़फ़ीया तंज़ीम सी आई ए से ज़्यादा बुश इंतिज़ामीया को ये क़ाइल करने पर मजबूर करदिया था कि सद्दाम हुसैन की हुकूमत फ़िलवाक़े अमरीकी सलामती केलिए एक संगीन ख़तरा बन चुका है।अमरीकी तजज़िया कार भी इस बात को तस्लीम करते हींका इन नए क़दामत पसंदों यानी neo-conservativesका बुश नज़म वनसक़ में काफ़ी इसरो रोसोख़ था जिसमें डक चीनी और रम्सफ़ेल्ड और उनके दीगर रफ़क़ा शामिल थी,कहा जाता है कि 9/11हा द से मैं ज़मींबोस होने वाले जुड़वां टावर्स की गर्द अभी बैठी भी ना थी कि नए क़दामत पसंदों ने अमरीका की ख़ारजा पालिसी पर क़बज़ा जमा लिया और उसे एक ऐसे रास्ते पर डाल दिया जिस का मक़सद ना सिर्फ वसीअ तर मशरिक़-ए-वुसता में अमरीकी ग़लबे को मुस्तहकम करना था बल्कि आलमी ताक़त बनने का ख़ाब देखने वाले मुल्कों और हरीफ़ मुल्कों को भी इन अज़ाइम से बाज़ रखना था ।

इन अफ़राद ने पहली Project for the New American Century नामी थिंक टैंक में शमूलीयत इख़तियार की थी , इस थिंक टैंक के बानीयों में वेलियम क्रिस्टल और रोबर्ट कीगन जैसे नज़रिया साज़ शामिल थे ,जिन्होंने बहुत पहले से अमरीका पर ज़ोर देना शुरू करदिया था कि जहां तक मुम्किन होसके अमरीका को दुनिया में अपनी इजारादारी क़ायम रखने की हर मुम्किन कोशिश करनी चाहीए ।इसके लिए उन्हों ने मुख़्तलिफ़ मवाक़े पर ख़ुतूत और मज़ामीन के ज़रीये ज़्यादा से ज़्यादा फ़ौजी अख़राजात ,मुम्किना ख़तरात के ख़िलाफ़ पेशगी और यकतरफ़ा फ़ौजी कार्रवाई और अमरीका के नज़दीक नापसंदीदा मुल्कों की हुकूमतों को ताक़त के ज़रीया तबदील करने की कोशिश करी।ये मिस्टर डक चेनी ही थे जिन्हों ने क़ब्लअज़ीं मरहूम इराक़ी सदर सद्दाम हुसैन की हुकूमत को बुज़ूर ताक़त ख़तम करदेने केलिए राह हमवार की ,

वाज़िह रहे कि डक चेनी ,पाल वलफ़ोइटज़,डोगलस फ़थ उन 18अफ़राद में शामिल थे जिन्हों ने The Project for the New American Century पर दस्तख़त करते हुए बिल क्लिन्टन परज़ोर डाला था कि वो सद्दाम हुसैन को बज़र वक्वत हुकूमत से बेदखल करदें।और फिर 9/11 हादिसे ने उन्हें अपने अज़ाइम की तकमील का मौक़ा फ़राहम करदिया ।मगर अपनी पालिसी का अमली मज़ाहिर करने केलिए अमरीका ने जिन जंग पसंदाना और तसल्लुत पसंदाना पालिसीयों का आग़ाज़ किया इसके नताइज आलमी सतह पर अमरीका से नफ़रत की सूरत में ज़ाहिर हो रहे हैं।

अमरीका ने माज़ी में वेत नाम पर हमला करके अपनी शबिया ख़राब की थी और अब वो इराक़ वाफ़ग़ान ,यमन ,सोमालीया ,पाकिस्तान और ईरान को तख़्ता मश्क़ बनाकर आलम इस्लाम की नफ़रतें ख़रीद रहा है।वो ना सिर्फ जंग और असलेह के ज़ोर पर मुख़ालिफ़ मुल्कों को ताबे करने मसरूफ़ है बल्कि मआशी और सयासी हथियारों से भी अपने हरीफ़ मुल्कों में तबदीलीयां लाने का मुतमन्नी है।वो जिस मलिक के हुक्मराँ को अपना दुश्मन तसव्वुर करता है उसका तख़्ता उल्टने ,सैंट और कांग्रेस में बाज़ाबता बजट मंज़ूर करता है और तमाम सिफ़ारती क़वानीन-ओ-उसूल की धज्जियां उड़ा कर कभी बिलवासता और कभी बराह-ए-रास्त मुदाख़िलत का मुर्तक़िब होते हुए अपने मुख़ालिफ़ीन की हुकूमतों को गिराने में मुलव्वस रहा है , और इसके लिए कभी फ़ौजी यलग़ार,कभी मआशी दबाओ,और कभी मुताल्लिक़ा मुल्कों के सियासतदानों की ख़रीद-ओ-फ़रोख़्त के ज़रीया अपने मज़मूम मक्का सक की तकमील करता रहा है ।

अपनी मज़मूम और नफ़रतअंगेज़ पालिसी के तहत अमरीका हमेशा ग़रीब और तरक़्क़ी पज़ीर ममालिक में मआशी बोहरान पैदाकरने अक़वाम-ए-मुत्तहिदा का सहारा लेता है ।और उसके बाद भी अगर उसे किसी तरह कामयाबी नसीब नहीं होती तो वो एक तवील मुद्दती मंसूबे के तहत इस मुल्क पर सक़ाफ़्ती यलग़ार करके उसकी बुनियादी निज़ाम को खोखला करने में मसरूफ़ हो जाता है ।

मगर अब दुनिया पर ये वाज़िह होगया है कि दहश्तगर्दी की ख़बीस मुसल्लत ,इंसानी हुक़ूक़ की ख़िलाफ़ वरज़ीयों और हलाकत ख़ेज़ हथियारों के इस्तिमाल की जड़ें अमरीका की इंसानियत मुख़ालिफ़ पालिसीयों में पैवस्त हैं ।सच्च तो ये है कि ,अगर दुनिया के मुख़्तलिफ़ इलाक़ों में अमरीका और उसके मग़रिबी हव्वारियों के इंसानियत सोज़ इक़दामात ना होते तो आज दुनिया के अवाम को सयासी ,इक़तिसादी ,समाजी, सक़ाफ़्ती,और सलामती बोहरानों का सामना ना करना पड़ता और ये दुनिया अमन व सुकोन और ख़ुशहाली का गहवारा होता।