आमिर अली खान- इस्लामी इन्क़िलाब के आला तरीन क़ाइद आयत उल्लाह सय्यद अली ख़ामना ई ने ग़ैर जानिबदार तहरीक की सोलहवीं चोटी कान्फ़्रैंस से ख़िताब करते हुए शुरका(उपस्थिति) से ख़ाहिश की कि फ़लस्तीन के मसला पर ख़ुसूसी तवज्जा मर्कूज़ करें।
उन्हों ने हुकूमत इसराईल की ताईद करने वाले अमरीका पर ज़ोर दिया कि वो फ़लस्तीन के मुस्तक़बिल का फ़ैसला करने के लिए इस्तिसवाब आम्मा (जनमत संग्रह)की ईरानी तजवीज़ क़बूल करलें। ईरान के आला तरीन क़ाइद ने याद देहानी की कि फ़लस्तीन पर 60 साल से ज़्यादा अर्सा से सैहोनियों का खूँरेज़ क़बज़ा बरक़रार है और सैहूनी ममलकत पर इल्ज़ाम आइद किया कि वो गुज़श्ता बरसों में कई जंगें कर चुकी है,
क़तल-ए-आम और सरकारी ज़ेर सरपरस्ती दहश्तगर्दी में मुलव्विस है। ख़ामना ई ने पुरज़ोर अलफ़ाज़ में कहा कि अब अमरीका और बाअज़ मग़रिबी ममालिक की आमिरीयत(तानाशाही) पसंदाना रवैय्या और दादागिरी नहीं चलेगी । नाम ममालिक अमरीका की आलमी पुलिस के रोल को ख़त्म करने का ऐलान करेंगे ।
उन्हों ने मज़ीद कहा कि ईरान किसी सूरत में अपने ऐटमी प्रोग्राम से पीछे नहीं हटेगा बल्कि अमरीका ये साफ़ तौर पर समझ ले कि ईरान का न्यूक्लियर प्रोग्राम सिर्फ़ बर्क़ी हुसूल के लिए है । ईरान इस न्यूक्लियर प्रोग्राम के ज़रीया ऐटमी हथियार नहीं बनाना चाहता लेकिन वो अपने ऐटमी तवानाई प्रोग्राम के ज़रीया बर्क़ी के हुसूल की कोशिश तर्क नहीं करेगा ।
मग़रिबी ममालिक ख़ुद तो न्यूक्लियर हथियार रखने के गै़रक़ानूनी रास्ते पर चल रहे हैं । दूसरों को न्यूक्लियर तवानाई और इस के फ़वाइद से महरूम करदेना चाहते हैं । इस तरह की आमिरीयत(तानाशाही) और तसल्लुत पसंदी अब नहीं चलेगी । उन्हों ने अमरीका को शदीद तन्क़ीद का निशाना बनाया और कहा कि न्यूक्लियर तवानाई हमारा हक़ है ।
और हम किसी हाल अपने हक़ को हासिल करके रहेंगे ।उन्हों ने आलम मग़रिब पर इल्ज़ाम आइद किया कि वो जबर की शिकार फ़लस्तीनी क़ौम के बजाय सैहूनी ममलकत की ताईद और दिफ़ा कर रहा है। उन्हों ने सैहूनी ममलकत की ताईद जारी रखने के ख़िलाफ़ हुकूमत अमरीका को इंतिबाह देते हुए कहाकि इस ताईद की क़ीमत अमरीकी अवाम को मुख़्तलिफ़ नुक़्सानात की शक्ल में अदा करनी पड़ रही है।
उन्हों ने व्हाइट हाऊस पर ज़ोर दिया कि वो सैहूनी ममलकत के बारे में अपनी पालिसी पर नज़र सानी करे। उन्हों ने ग़ैर जानिबदार तहरीक के रुकन ममालिक से कहाकि वो धमकाने वाली ताक़तों से मरऊब ना होँ और ख़ुद अपने मफ़ादात से वाबस्ता रहें। उन्हों ने याद देहानी की के सारफ़ीत और सरमायादारी के नज़रियात नाकाम होचुके हैं। दुनिया में नए तग़य्युरात आरहे हैं जिन्हें इस्लामी शऊर की बेदारी कहा जा सकता है।
उन्हों ने कहाकि अमरीका और इसराईल की अल -तरतीब शुमाली अफ़्रीक़ा और मशरिक़ वुसता में नाकामी इसी हक़ीक़त की अक्कासी (इजहार) है। उन्हों ने आलमी ताक़तों को न्यूक्लियर टैक्नोलोजी पर इजारा दारी क़ायम रखने की कोशिशों पर शदीद तन्क़ीद की और कहाकि दुनिया के दीगर ममालिक न्यूक्लियर टैक्नोलोजी के सीवीलीयन इस्तिमाल की कोशिश करते हैं तो यही ताक़तें इस में कई रुकावटें पैदा करती हैं।
उन्हों ने कहाकि हालाँकि यही आलमी ताक़तें हैं जो न्यूक्लियर टैक्नोलोजी को असलहा की तैय्यारी के लिए इस्तिमाल कर रही हैं लेकिन दीगर ममालिक को इस टैक्नोलोजी के पुरअमन इस्तिमाल से रोकती हैं। उन्हों ने कहा कि न्यूक्लियर हथियार ना तो किसी मुल्क को सयानत की ज़मानत देते हैं और ना उस की ताक़त में इज़ाफ़ा करते हैं बल्कि ये हथियार ख़ुद उन के रखने वाले मुल्क और दूसरे ममालिक के लिए यकसाँ तौर पर ख़तरा हैं।
उन्हों ने एक बार फिर ईरान के इस इद्दिआ (दावा) का इआदा किया कि वो न्यूक्लियर तवानाई का इस्तिमाल सिर्फ़ तवानाई की क़िल्लत दूर करने के लिए इस्तिमाल करना चाहता है जिसका उसे न्यूक्लियर अदम फैलाओ मुआहिदा पर दस्तख़त करने वाले मुल़्क की हैसियत से हक़ हासिल है।
उन्हों ने कहाकि ईरान के दुश्मन अच्छी तरह जानते हैं कि वो ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम को झूट बोल कर मुतनाज़ा बनारहे हैं क्योंकि वो न्यूक्लियर ईंधन तैय्यार करके उसे फ़रोख़त करना चाहते हैं और ये तिजारत सिर्फ़ चंद मग़रिबी ममालिक के हाथों में है।
इस्लाम के बारे में उन्हों ने वज़ाहत करते हुए कहाकि इस्लाम ने ईरान को सिखाया है कि नसली, लिसानी और सक़ाफ़्ती इख़तिलाफ़ात के बावजूद बनी नौ इंसान फ़ित्रतन यकसाँ हैं जो उन से तक़वा, इंसाफ़, रहम दिल्ली, मेहरबानी और तआवुन का तक़ाज़ा करती है
। ये आलमगीर इंसानी फ़ित्रत है जिन से गुमराह कुन अज़ाइम से महफ़ूज़ रहा जा सकता है। ये ख़ुसूसीयात इंसान की तौहीद की सिम्त रहनुमाई करती हैं और इलाही तालीमात का निचोड़ हैं। उन्हों ने कहाकि अक़वाम-ए-मुत्तहिदा एक ग़ैर मंतक़ी , ग़ैर मुंसिफ़ाना और मुकम्मल तौर पर एक ग़ैर जमहूरी इदारा और निज़ाम है।
इस की सलामती कौंसल में खुली आमिरीयत(तानाशाही) इख़तियार की जाती है। इस पर अमरीका और इस के हलीफ़ ममालिक का क़बज़ा है जो पूरी दुनिया को धमकीयां देते हैं और पूरी दुनिया पर अपनी मर्ज़ी मुसल्लत करना चाहते हैं।
उन्हों ने अमरीकी सियासतदानों को दोस्ताना मश्वरा दिया कि वो सैहूनी ममलकत की ताईद तर्क करदें जिस ने अमरीका को भी दुनिया भर में नफ़रत अंगेज़ बनादिया है।