अमरीका चुनावः क्या मुसलमानों के समर्थन के बिना जीत पाएंगे ट्रम्प?

अमरीकी चुनाव में रिपबल्किन पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार डोनल्ड ट्रंप मुस्लिमों को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। अपनी रैलियों में मुसलमानों के अमरीका आने में रोक लगाने पर ट्रम्प ने मुस्लिमों के साथ साथ उन लोगों को भी नाराज़ किया है जो मुस्लिमों को भी इस देश ही हिस्सा मानते हैं।

वैसे तो अमेरिका और यूरोप में मुसलमानों पर हमेशा उंगलियां उठती रही हैं कि वह चरमपंथ को बढ़ावा देते हैं। दुनिया में कहीं भी जब कोई तो आतंकी हमला होता है तो लोगों को भीड़ में सिर्फ मुसलमानों को ही शक की निगाहों से देखा जाता रहा है। लोगों की इसी बात का फायदा डोनाल्ड ट्रंप ने खूब उठाया है और मुसलमानों के खिलाफ अपनी सोच को मुख्यधारा की सोच बनाने की कोशिश की है। पहले जो बातें दबी ज़ुबान में कही जाती थीं अब वो खुलकर कही जाने लगी हैं।

ट्रंप ने अपनी जुबान से ज़हर घोलते उगलते हुए मुसलमानों की हरकतों पर पैनी नज़र रखने यहाँ तक की बगैर वारंट मस्जिदों की तलाशी लेने जैसी कई बातें कह उन्हें कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की है। इतना ही नहीं उन्होंने अमरीका में आने वाले मुसलमान की जांच कर यह पता लगाने की बात भी कही की देखा जाना चाहिए कि कहीं उक्त मुस्लिम शरिया क़ानून में यकीन तो नहीं रखता। वक तरफ जहाँ ट्रम्प के समर्थकों का कहना है कि ट्रंप ऐसी बातें बोलते हैं जो किसी की कहने की हिम्मत नहीं पड़ती और ट्रंप अगर मुसलमानों पर रोक लगा देंगे तो आतंकवाद खुद ही खत्म हो जाएगा। लेकिन दूसरी तरफ़ ट्रंप की इन बातों ने पहली बार अमरीका में रहने वाले मुसलमानों को भी मुख्यधारा मेनस्ट्रीम में शामिल होने पर मजबूर किया है।

ट्रम्प के विचार सुन अपने बचाव के लिए सामने आये मुस्लिमों ने हिलेरी क्लिंटन के हक़ में मुहीम शुरू किये हैं। ऐसी ही कोशिशों के चलते “साउथ एशियंस फ़ॉर हिलेरी क्लिंटन” के नाम से एक मुहिम की शुरूआत करने वाले वर्जिनिया के मंसूर कुरेशी का कहना है कि ट्रम्प के मुस्लिम विरोधी भाषणों के बाद अमेरिका के 33 लाख मुसलमान जो आज तक कभी मुख्यधारा का हिस्सा नहीं बने थे और वोट भी नहीं डालते थे आज सामने आने लगे हैं और हिलेरी के हक़ में वोट देने के लिए तैयार हैं।

लेकिन सवाल यह है कि क्या मुसलमानों के वोट इतने हैं कि वो सही मायने में चुनाव के नतीजे पर कोई असर डाल सकें? जिसके जवाब में कुरेशी कहते हैं कि मुसलमान कुल आबादी के दो फ़ीसदी हैं और इस बार के चुनावों में ये वोट जीत और हार का फ़ैसला कर सकते हैं। उनके मुताबिक राज्यों में इस्लामिक सेंटर्स और मस्जिदों ने मुसलमानों को एकजुट किया है और अमरीकी मुसलमानों के लिए काम करने वाली एक संस्था के अनुसार 86 प्रतिशत मुसलमान इस बार वोट डालने का इरादा रखते हैं। अमरीका में मुसलमान फ़ौज, पुलिस से लेकर और भी कई अहम ओहदों पर काम कर रहे हैं। लेकिन ट्रंप ने जिस तरह से मेक्सिको से आए सभी लोगों को अपराधी और बलात्कारी का नाम दिया, उसी तरह सभी मुसलमानों को भी आतंकवाद के रंग में रंग दिया। जिसका नतीजा ट्रम्प को चुनावों में देखने को मिलेगा।