अमरीकी फ़ौजीयों की ज़ोबूँहाली

वाशिंगटन। यकम जनवरी ( यू एन आई) अमरीकी सियासतदानों के अज़ाइम की तकमील के लिए अपना सब कुछ क़ुर्बान करदेने वाले सैंकड़ों अमरीकी साबिक़ फ़ौजी ज़ोबूँहाली से दो-चार और डिप्रेशन और शराबनोशी का शिकार हैं। उन्हें ये शिकायत है कि फ़ौजीयों की फ़लाह केलिए इतना कुछ नहीं किया गया जितना कि क्या जाना चाहीए था।
1970 के अशरे में वेतनाम की जंग के इख़तताम के बाद अमरीकी फ़ौजीयों की एक बड़ी तादाद वतन वापिस लौटी थी। जिन में से कई एक को कई दहाईयां गुज़र जाने के बावजूद ये शिकायत है कि इन का ख़्याल नहीं रखा जा रहा।

इन्ही में से एक हैं साबिक़ ख़ातून फ़ौजी ब्रेंडा स्मिथ जिन का कहनाहै कि साबिक़ फ़ौजीयों की फ़लाह केलिए इतना कुछ नहीं किया जाता , जितना कि क्या जाना चाहिये। ख़्याल रहे कि इराक़ से तक़रीबन तमाम अमरीकी फ़ौजी वतन वापस आचुके हैं। हालाँकि ये सवाल अपनी जगह अब भी बरक़रार है कि लाखों बेगुनाह इराक़ीयों को लुकमा-ए-अजल बनाने और हज़ारों अमरीकी जवानों से हाथ धोने के बावजूद अमरीका अपने मक़सद में कितना कामयाब रहा है ।

दूसरी तरफ़ अफ़्ग़ानिस्तान से 2014-तक ज़्यादा तर फ़ौजीयों की अपने घरों को वापसी मुतवक़्क़े है। ऐसे में ये सवाल यक़ीनन उन्हें भी परेशान करेगा कि इन का मुस्तक़बिल कितना महफ़ूज़ है। ब्रेंडा स्मिथ अमरीकी बहरीया में शामिल होने वाली चंद अव्वलीन ख़वातीन में शामिल हैं। वो 1963 से 1966- तक बाक़ायदा फ़ौज और बादअज़ां आठ साल तक रिज़र्व फ़ौज का हिस्सा रहीं।