अमीरों के राज्य में लाइन में खड़ा होना गरीबों का मुकद्दर

पटना: नोट बंदी को लेकर देश की स्तिथि बद से बदतर होती जा रही है. इसका असर सीधी तौर से आम जन जीवन पर पड़ रहा है. लोग अपने ही मेहनत के पैसों के लिए बेबस भटक रहे है. नोट बदलना तो दूर जमा करवाने पर भी लोगों के पसीने छूट रहे हैं.

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सरकार के इस तानाशाही फैसले से सिर्फ उनलोगों को दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है जो ग़रीबी से जूझ रहे हैं जिन्हें एक वक़्त की रोटी के लिए पुरे दिन मजदूरी करना पड़ता है दुसरे वक़्त के लिए सिवाए मजदूरी के कोई और विकल्प नहीं.
बड़े बड़े शहरों की परेशानी टीवी पर दिखाई जा रही है जबकि ग्रामीण क्षेत्र में शहरों से कई गुना ज्यादा परेशानी है लेकिन इसपर न तो सरकार की और न ही मिडिया की नज़र है जिसकी दुखदर्द को सुन सके. नोटबंदी का सबसे ज़्यादा ख़ामियाज़ा ग़रीब किसान, मजदुर, पान वाले, चाय वाले, ग्वाला, आदि भुगत रहे हैं जो हज़ार रू जमा कराने के लिए दिन भर अपना काम धंधा छोड़ इधर-उधर भटक रहे हैं.
शहरों में रहने वाले लोग इ-मनी का इस्तेमाल कर अपनी जरूरत को पूरा कर ले रहे हैं. पेटीएम जैसे एप का इस्तेमाल कर ट्रेवलिंग और मार्केटिंग कर पा रहे हैं. फिर भी कह रहे हैं कि शहरों के हालात बद्तर है.
अब जरा उन गांव की कल्पना कीजिए जहां शहरों जैसी कोई सुविधा नहीं हैं. ऐसे इलाक़े जहां दूर-दूर तक बैंक के नाम पर एक कमरा मौजूद है. वहां बैंक ज़बरदस्त तरीक़े से अपनी मनमानी कर रहा है.
नोट बदलने की बात तो दूर जमा करवाने पर भी लोगों के पसीने छूट रहे हैं. गांव के बैंको ने नोट बदलना ही बंद कर दिया और अगर जमा करना है तो उसके लिए भी समय निर्धारित कर दिया गया है.
सरकार के इस फैसले से अमीरों को कोई दिक्कत नहीं है, होगी भी क्यों ये तो अमीर हितैषी सरकार जो है. लाइन में खड़ा होना तो सिर्फ ग़रीबो की नसीब में है अमीरों की तो सीधे सरकार से कनेक्सन है. ये लोगों के बीच आमचर्चा है.