अमेरिका में राज्य से लड़ता एक राष्ट्र

पिछले काफी समय से दुनिया में एक बार फिर नए तरीके से डर, नफरत, अविश्वास और हिंसा ने अपना मुखर प्रभुत्व दिखाया है. और एक बार फिर यह लोकतान्त्रिक रूप से हुआ है. ये सभी घटक जमा हुए हैं बहुसंख्यकवाद के साये में, और विशुद्ध पॉपुलिस्ट तरीके से लोकतंत्र की आत्मा का इनके द्वारा अपहरण कर लिया गया है.

भारत समेत दुनिया के दुसरे लोकतान्त्रिक देशों की आज ये सच्चाई है. यह सन्दर्भ लोकतान्त्रिक संस्थानों पर भी एक सवाल उठता है, कि उन्होंने लोकतंत्र को कैसे मानवीय मूल्यों के विरुद्ध जाने दिया. एक अवधारणा के तौर पर भी आज लोकतंत्र के ऊपर सवाल उठ चुका है.

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति बन जाने से पहले चुनाव के दौरान और उसके बाद जिस तरह की मानवीय एकजुटता अमेरिका के लोगों ने दिखाई है, वे अपने आप में अनुपम और अभूतपूर्व है. ये इसलिए भी क्योंकि भारत समेत जहाँ भी नफरत की राजनीति की बुनियाद पर बहुसंख्यकवाद ने लोकतंत्र को जीता है, वहां पर कुछ नागरिक समूहों, और कुछ चुनिंदा लोगों के अलावा किसी ने भी मानवीय गरिमा, बराबरी, इंसाफ के लिए आवाज़ नहीं उठाई.

समाज के विघटन की नई रीत ने अपने आपको सता के केंद्र में स्थापित किया. यहाँ तक पहुँचने से पहले अमेरिका में बर्नी सैंडर्स के रूप में जन-लोकप्रिय राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को मिले समर्थन ने पहली आशा की किरण दिखाई थी. सेनेटर बर्नी सैंडर्स एक यहूदी परिवार में पैदा हुए, और वह पहले अमेरिकी नेता हैं जिन्होंने राष्ट्रपति का टिकट हासिल करने के लिए अमेरिका में सबसे शक्तिशाली ज़ाइनिस्ट लॉबी के सामने हाथ फैलाने से इनकार कर दिया. उन्होंने मुस्लिम विरोधी हिंसा और नफरत का सख्ती से विरोध किया.

कॉर्पोरेट के दखल के कारण बर्नी सैंडर्स को राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने का मौक़ा नहीं मिला और उनकी जगह हिलेरी क्लिंटन आई. जिन्हें हिलेरी पसंद नहीं थीं, उन्होंने भी डोनाल्ड ट्रम्प की खुली नफरत भरी राजनीति को चुनौती देने के लिए हिलेरी को वोट दिया. वह चुनाव हार गई.

डोनाल्ड ट्रम्प के चुनाव जितने के बाद से मुस्लिम विरोधी हिंसा में तेज़ी आई, जैसे कि नरेंद्र मोदी के भारत में प्रधानमंत्री बनने के बाद. अमेरिका की जनता ने इसे कोई दूसरा नाम नहीं दिया, और इसे मुस्लिम विरोधी हिंसा ही कहा, और खुल कर इसके खिलाफ सामने आये.

अमेरिका की जनता ने भारत के अधिकतर आरएसएस विरोधियों की तरह मुस्लिम विरोधी हिंसा नाम लेने में कोई हिचक नहीं दिखाई. जिस प्रकार भारत के सेक्युलर, समाजवादी, वामपंथी, महिलावादी, गांधीवादी, अम्बेडकरवादी, प्रगतिशील के रूप में परिचय देने वाले वर्ग के अधिकाँश लोगों को भारत में मुस्लिम विरोधी हिंसा को स्वीकार करने में आज भी परेशानी है. वे सभी किसी प्रकार के संतुलन को स्थापित करते हुए अपने आपको मुस्लिम विरोधी हिंसा के विरुद्ध खड़ा हुआ नहीं देखना चाहते हैं. शायद उनके मन के भीतर भी वही मुस्लिम विरोधी हिंसा के बीज हैं, जो उन्होंने अपने बाहरी आवरण से छुपा रखे हैं.

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प राष्ट्रपति का पद सँभालने के बाद जिस तरह का विरोध हो रहा है, वे सराहनीय तो है ही साथ ही दुनिया में दुसरे हिस्सों में संघर्ष करने वालों के लिए हिम्मत का स्त्रोत है. लगभग 2 करोड़ 90 लाख से अधिक लोग पूरे अमेरिका में सड़कों पर उतरे डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति के पद की शपथ लेने के फ़ौरन बाद, ये कहते हुए कि वे राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की मुस्लिम विरोधी, महिला विरोधी, शरणार्थी विरोधी, इमिग्रेंट विरोधी और दूसरी नीतियों के खिलाफ एकजुट हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक़, अमेरिका के इतिहास में अब तक का यह सबसे बड़ा मार्च था.

आज अमेरिका में वाइट हाउस के वरिष्ठ कर्मचारी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के खिलाफ इस्तीफा दे चुकें हैं. पर्यावरण परिवर्तन की अमेरिकी नीति में बदलाव के खिलाफ वैज्ञानिक चेतावनी दे चुके हैं. अमेरिका के आम और ख़ास लोग खुले तौर पर अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के खिलाफ बोल रहे हैं. अमेरिका में मुस्लिम  एक्टिविस्ट समूह, यहूदी एक्टिविस्ट समूह, गे एक्टिविस्ट समूह, महिला एक्टिविस्ट समूह, दुसरे नागरिक समूहों एक साथ आज काँधे से कंधा मिलाये खड़े हैं.

हाल ही में 7 मुस्लिम देशों के नागरिकों और शरणार्थियों के अमेरिका आने पर पाबन्दी लगाने के खिलाफ अमेरिकी नागरिक सड़क से लेकर एअरपोर्ट तक पर तख्तियों के साथ मौजूद हैं. संयुक्त राष्ट्र समेत, दुनिया के बड़े नेताओं ने मुस्लिम-बैन के खिलाफ बयान दिए हैं. इसके नतीजे में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने संयुक्त राष्ट्र को दी जाने वाली वितीय सहायता में भारी कटौती का ऐलान किया है.

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने अमेरिका के मुस्लिम-बैन के विरोध में शरणार्थियों का अपना देश में स्वागत किया है. वहीँ इंग्लैंड में विपक्षी लेबर पार्टी के नेता जेरेमी कोर्बिन ने मुस्लिम-बैन के विरोध में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के इंग्लैंड में आने पर पाबन्दी की मांग की है. साथ ही पोप फ्रांसिस कड़े शब्दों में शरणार्थी विरोधी नीति का समर्थन करने वालों को कहा है कि वे ऐसा करते हुए ईसाई नहीं हो सकते. साथ ही अमेरिका की एक अदालत ने ऐतिहासिक रूप से हिम्मत दिखाते हुए, मुस्लिम-बैन के राष्ट्रपति द्वारा जारी आदेश पर रोक लगा दी है.

अमेरिका की जनता ने एकजुटता के साथ जिस संघर्ष की शुरुआत की है, वह दिखाती है कि अमेरिका के नागरिक इस मरती हुई दुनिया के सच्चे जिंदा सिपाही हैं. उनका जन-विरोधी राज्य के खिलाफ संघर्ष बहुतों को उम्मीद दिखायेगा.

अमेरिका के लोगों को उनके इस ऐतिहासिक जिंदा बहादुरी भरे संघर्ष के लिए मुबारकबाद. आज दुनिया के सभी मानव गरिमा, इंसाफ, शांति, सौहार्द और बराबरी में यकीन रखने वालों को इस अमेरिकी राज्य विरोधी अमेरिकी राष्ट्र के समर्थन में एकजुटता के साथ खड़े होने की ज़रूरत है, ताकि दूसरी दुनिया मुमकिन है, का ख्व़ाब पूरा हो सके.

उवेस सुल्तान खान

(सामाजिक कार्यकर्ता हैं, और विदेशी मामलों के जानकार हैं)