अमेरीका और अफ़्ग़ानिस्तान की सूरत-ए-हाल

अफ़्ग़ानिस्तान में क़ुरआन मजीद की बेहुर्मती का मसला संगीन रुख इख्तेयार करता जा रहा है। रोज़ाना एहितजाजी मुज़ाहिरों, हमले और फायरिंग से जंग ज़दा मुल़्क की सलामती को मज़ीद ख़तरा लाहक़ हो गया। वज़ारत-ए-ख़ारजा के दफ़्तर में दो अमेरीकी फ़ौजी ओहदेदारों की हलाकत से अंदाज़ा होता है कि अमेरीका और नाटो ने अफ़्ग़ानिस्तान में अपने ख़िलाफ़ एक बड़ा महाज़ खड़ा कर लिया है।

शुमाली सूबा कंदवज़ में मज़ीद 7 अमेरीकी सिपाही उस वक़्त ज़ख़मी हुए जब एहतिजाजियों ने उनके अड्डा पर एक ग्रेनेड फेंका। तालिबान से क़तर में मुज़ाकरात करने वाले अमेरीका को अफ़्ग़ानिस्तान में अब इस ताक़त की नाराज़गी का सामना है। बिगराम फ़िज़ाई पट्टी पर क़ुरआन मजीद और दीगर दीनी किताबों को नज़र-ए-आतिश करने के वाक़्या के बाद अगर चीका नाटो के सरबराह अमेरीकी डीफेंस सेक्रेटरी और सदर अमेरीका बारक ओबामा ने भी माज़रत ख़्वाही की है मगर मज़हबी दिल आज़ारी और इहानत इस्लाम का मुआमला अहल-ए-ईमान के लिए नाज़ुक होता है।

दानिस्ता तौर पर अमेरीकी अफ़्वाज और दीगर इस्लाम दुश्मन ताक़तें इस तरह की हरकतों के ज़रीया मुस्लमानों के मज़हबी जज़बात को भड़काते हैं। अफ़्ग़ानिस्तान में गुज़शता एक हफ़्ता से हालात बेक़ाबू हो गए हैं। हालात पर क़ाबू पाने के लिए पुरअमन कोशिश करने के बजाय अमेरीकी और इत्तेहादी अफ़्वाज ने ताक़त का इस्तेमाल करके सूरत-ए-हाल को मज़ीद अबतर बना दिया।

इन्सेदाद-ए-दहशत गर्दी के ओहदेदारों ने अफ़्ग़ान वज़ारत-ए-दाख़िला की इमारत के अंदर दो नाटो ओहदेदारों की हलाकत के बाद इसके ज़िम्मेदारों को गिरफ़्तार करके अंधा धुंध् कार्यवाहीयां करके एहतिजाजियों को मज़ीद मुश्तइल कर रहे हैं। सदर अफ़्ग़ानिस्तान हामिद करज़ई को चाहीए कि वो सूरत-ए-हाल पर फ़ौरी तवज्जा दे कर अफ़्ग़ानिस्तान में अमन‍ और इस्तेहकाम के दुश्मनों को हालात का फ़ायदा उठाने की इजाज़त ना दें।

अमेरीकी ओहदेदारों की हलाकत की तालिबान ने ज़िम्मेदारी क़बूल नहीं की है तो इसका मतलब यही है कि अफ़्ग़ानिस्तान के हर शहरो में अमेरीकी ताक़तों के ख़िलाफ़ ग़म-ओ-ग़ुस्सा पाया जाता है। इसके लिए ख़ुद अमेरीका और इसके इत्तेहादी मुल्कों को ये सोचने का मौक़ा मिल रहा है कि आया उनकी जारहीयत पसंदी के नताइज भयानक होंगे।

अफ़्ग़ानिस्तान की सरज़मीन उस वक़्त आग के गोले में तब्दील होती दिखाई दे रही है। यहां मुख़्तलिफ़ आलमी और बैरूनी ताक़तों के मुफ़ादात पाए जाते हैं। इसके लिए अफ़्ग़ानिस्तान की सरज़मीन को अपने मुफ़ादात की जंगों के लिए इस्तेमाल करते हुए उसे मैदान-ए-जंग में तब्दील कर दिया गया है। अफ़्ग़ानिस्तान में हर दौर में जंगें होती हैं।

कभी ये जंगें ये बड़ी ताक़तें अपने कारिंदों के ज़रीया खु़फ़ीया अंदाज़ में लड़ी हैं तो कभी अफ़्वाज को एक दूसरे के ख़िलाफ़ ला खड़ा किया गया। अफ़्ग़ानिस्तान और इसके पड़ोसी मुल्कों के अवाम ने गुज़श्ता चार दहों के दौरान दो बड़ी और तवील जंगें देखी हैं। इनमें से एक जंग सोवीयत यूनीयन के ख़िलाफ़ रूसी अफ़्वाज के साथ लड़ी गई थी और दूसरी जंग हनूज़ नाटो अफ़्वाज के साथ जारी है।

तालिबान ने अफ़्ग़ानिस्तान की सरज़मीन को बड़ी ताक़तों के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए इस्तेमाल किया अब ये सरज़मीन बैरूनी ताक़तों के मुफ़ादात की जंगों में तबदील हो गई है। अफ़्ग़ानिस्तान में जो कई जंगजू ग्रुप्स पर मुनक़सिम इलाक़ा था अब यहां इन जंगजुओ‍ं की बाक़ी ताक़तें इत्तेहादी अफ़्वाज का साथ दे कर मुक़ामी बाशिंदों को परेशान कर रही हैं।

गुज़श्ता 10 साल के दौरान जंग की तबाहियों और इसके बाद ख़ूँरेज़ी और अमेरिका ने अफ़्ग़ानिस्तान के मुआशरे के ताने बाने को बुरी तरह बिखर कर रख दिया है। सदर अफ़्ग़ानिस्तान हामिद करज़ई को अपने अवाम की अव्वलीन फ़िक्र करनी है मगर उन्होंने सदारत की ज़िम्मेदारीयों को सिर्फ मग़रिबी ताक़तों की ख़ुशनुदी तक महिदूद कर लिया है।

दहश्तगर्दी के ख़िलाफ़ नाम निहाद जंग की आड़ में अमेरीका ने अफ़्ग़ानिस्तान में जारहीयत पसंदी के ज़रीया अवाम की ज़िंदगी को अजीर्ण बना दिया। लिए एक और ख़ौफ़नाक सूरत-ए-हाल ये पैदा हुई है कि तालिबान ने उन्हें क़ुरआन मजीद की बेहुर्मती वाक़्या के ख़िलाफ़ मग़रिबी ताक़तों पर हमले करने के लिए ज़ोर दिया है जबकि आइन्दा गरमीयों तक 30 हज़ार अमेरीकी अफ़्वाज, अफ़्ग़ानिस्तान से निकल जाएंगी जबकि बाक़ी 68 हज़ार अफ़्वाज 2014-ए-तक यहांसे चली जाएंगी।

उसेमें अफ़्ग़ानिस्तान में क़ुरआन सोज़ी और दीगर दिल आज़ार वाक़्यात के ज़रीया बदअमनी पैदा करने के पीछे बड़ी साज़िश हो सकती है। अफ़्ग़ानिस्तान को अगर एक बड़ी ख़ानाजंगी का अंदेशा हो तो ये ख़ुद अफ़्ग़ान बाशिंदों की फ़िक्रमंदी का बाइस होगी क्योंकि इन दस बरसों में अमेरीका और ना ही मुक़ामी सियासतदानों ने अफ़्ग़ानिस्तान में सयासी इस्तेहकाम पैदा करने के हालात पैदा नहीं किए।

अदम सयासी इस्तेहकाम की वजह से तालिबान ने हालिया क़ुरआन सोज़ी वाक़िया को परतशद्दुद बनाते हुए अपने मज़बूत वजूद का एहसास दिला दिया है। अमन की बहाली के लिए तालिबान से मुज़ाकरात की कोशिश करने वाले ओबामा नज़म-ओ-नसक़ को आइन्दा एहतियात से काम लेना होगा।

वाईट हाउस की अदम दिलचस्पी या अफ़्ग़ानिस्तान के मसला को एहमीयत ना देने पर सूरत-ए-हाल अबतर हो जाएगी। मज़हबी जज़बात को भड़काने वाली हरकतों से गुरेज़ करते हुए अफ़्ग़ानिस्तान से अमेरीकी अफ़्वाज के इनख़ला तक सयासी-ओ-मुआशरती इस्तेहकाम लाना अमेरीका और इसके हलीफ़ मुल्कों की ज़िम्मेदारी है।

अफ़्ग़ानिस्तान से मुत्तसिल पाकिस्तान के कबायली इलाक़ों जैसे बलोचिस्तान और पाकिस्तान के दीगर इलाक़ों में बदअमनी भी तशवीशनाक बात है। अमेरीका और इसके साथी मुल्कों को अफ़्ग़ानिस्तान में ख़ूँरेज़ी और अमेरिका के वाक़्यात को रोकने के लिए अपनी आलमी ज़िम्मेदारीयों को मल्हूज़ रखना ज़रूरी है।