अमेरीकी हुक्काम का रवैय्या

अमेरीका में एक बार फिर बाली वुड सुपर स्टार शाहरुख ख़ां को दो घंटों तक एयर पोर्ट पर रोक लिया गया और उन्हें गैर ज़रूरी सवालात वगैरह से परेशान करने की कोशिश की गई । शाहरुख ख़ान के साथ एसा पहली मर्तबा नहीं हुआ है । वो इससे पहले भी अमेरीकी ओहदेदारों और खासतौर पर इमीग्रेशन हुक्काम की इस तरह की हरकतों का शिकार हो चुके हैं।

उन्हें माज़ी में भी एयर पोर्ट पर रोकते हुए जामा तलाशी के अमल से गुज़रने पर मजबूर किया गया था और अब फिर एक मर्तबा उन को एयर पोर्ट पर रोक लिया गया और उन से मुख़्तलिफ़ सवालात के बावजूद आली ओहदेदारों की हिदायत मिलने के बाद ही रिहा किया गया ।

शाहरुख ख़ां रिलायंस मुकेश अंबानी ग्रुप के सदर नशीन मुकेश अंबानी की शरीक ए हयात नेता अंबानी और कुछ दूसरों के साथ एक ख़ानगी तय्यारा में न्यू हेवन एयर पोर्ट पहूंचे थे । उन के तमाम साथियों बिशमोल नेता अंबानी को फ़ौरी तौर पर क्लीयेरेंस दे दिया गया था लेकिन शाहरुख को वहां रोक कर दो घंटों तक उन्हें ज़हनी अज़ियत में मुबतला किया गया ।

इमीग्रेशन हुक्काम की इस हरकत पर ख़ुद अमेरीका में एक यूनीवर्सिटी के हुक्काम हरकत में आए और उन्होंने होमलैंड सीक्योरीटी और दीगर मुताल्लिक़ा महकमों के ओहदेदारों से बात चीत की । इसके अलावा कौंसिल जनरल हिंदूस्तान को इस में मुदाख़िलत करनी पड़ी जिस के बादशाह रुख़ ख़ान को वहां से जाने की इजाज़त दी गई ।

कौंसिल जनरल की मुदाख़िलत पर इमीग्रेशन हुक्काम ने कहा कि चूँकि शाहरुख ख़ान का नाम एक मुश्तबा फ़हरिस्त में शामिल है इस लिए उन्हें क्लीयेरेंस देने से क़ब्ल आला ओहदेदारों से इजाज़त लेना ज़रूरी था इस लिए उन्हें रोका गया ताहम इस वाक़्या पर महकमा माज़रत ख़्वाही करता है ।

ये एक तरह का मामूल बन गया है कि हिंदूस्तान की वे आई पी शख्सियतों और आली ओहदेदारों को एयर पोर्टस पर हतक आमेज़ सुलूक का शिकार किया जाए और जब ये मसला आली सतह तक पहूंच जाए तो रस्मी तौर पर माज़रत ख़्वाही कर ली जाए । शायद यही वजह है कि हिंदूस्तान ने आज शदीद रद्द-ए-अमल का इज़हार करते हुए कहा कि उसे मुआमलात में महिज़ रस्मी माज़रत ख़्वाही काफ़ी नहीं है और इस मसला को अमेरीका में आला सतह पर रुजू किया जाएगा ।

इस सिलसिला में वज़ीर ख़ारिजा एस एम कृष्णा ने हिंदूस्तानी सफ़ीर निरूपमा राय को हिदायत दी है ।

किसी अमेरीकी एयर पोर्ट पर किसी हिंदूस्तानी के साथ ये पहला मौक़ा नहीं है कि इस तरह का रवैय्या इख्तेयार किया गया । इससे क़ब्ल साबिक़ सदर जमहूरीया हिंद डाक्टर ए पी जे अब्दुल कलाम को भी जामा तलाशी के अमल से गुज़रने पर मजबूर किया गया था । इसी तरह साबिक़ वज़ीर दिफ़ा मिस्टर जॉर्ज फ़र्नांडीस को इसी अमल से गुज़ारा गया जिस की शिकायत उन्हों ने ख़ुद अमेरीकी हुक्काम से की थी ।

एक ख़ातून हिंदूस्तानी सिफ़ारतकार के साथ एयर पोर्ट पर इसी तरह का रवैय्या इख्तेयार किया गया और अब शाहरुख ख़ान को दूसरी मर्तबा निशाना बनाया गया । इस तरह के वाक़्यात का वक़्फ़ा वक़्फ़ा से होना महिज़ इत्तेफ़ाक़ नहीं हो सकता । अमेरीका का ये कहना भी इत्मीनान बख्श नहीं हो सकता कि इस के डाटा में कुछ नाम ऐसे हैं जो इन नामों से मुमासिलत रखते हैं इस लिए उन्हें इस अमल से गुज़ारा जाता है ।

अममेरीकी हुक्काम इतनी अहम और बड़ी शख्सियतों के इलावा फ़िल्मी शख्सियतों से नावाक़िफ़ नहीं हो सकते कि इनके साथ इस तरह का रवैय्या इख्तेयार किया जाए । इलावा अज़ीं अगर उन के अपने सिस्टम और डाटा में कुछ नक़ाइस हैं तो उसे दूर करना ख़ुद उन का काम है और इस नुक़्स की बुनियाद पर एक से ज़ाइद मर्तबा एक ही मुल़्क की अहम और अवामी शख्सियतों को इस तरह के हतक आमेज़ रवैय्या से गुज़ारना काबिल‍ ए‍ कुबूल नहीं हो सकता ।

जिस तरह हिंदूस्तान ने कहा कि इस तरह के वाक़्यात पर महज़ रस्मी की माज़रत ख़्वाही भी काफ़ी नहीं हो सकती और इस मसला को सेक्रेटरी आफ़ स्टेट हिलारी क्लिन्टन और फिर सदर ओबामा से भी रुजू किया जाना चाहीए । जिस तरह इमीग्रेशन हुक्काम की रस्मी से माज़रत ख़्वाही काफ़ी नहीं हो सकती इसी तरह हिंदूस्तान का भी इस तरह के वाक़्यात पर महज़ ज़बानी जमा ख़र्च काफ़ी नहीं है और हिंदूस्तान को ऐसे वाक़्यात पर सख़्त गैर एहतिजाज करते हुए मसला को आली हुक्काम तक पहूँचा कर उस की यकसूई करनी चाहीए ।

अमेरीका एक तरफ़ तो हिंदूस्तान को अपना फ़ित्री हलीफ़ और एक बेहतरीन दोस्त क़रार देता है लेकिन दूसरी जानिब इसके साबिक़ सदर वज़ीर ए दिफ़ा और मक़बूल आम फ़िल्मी शख्सियत को इस तरह की हरकतों से एक से ज़ाइद बार निशाना बनाया जाता है तो हुकूमत की जानिब से कोई कार्रवाई नहीं की जाती ।

हुकूमत अमेरीका को चाहीए कि वो अपने मह्कमाजात को खासतौर पर हिदायात जारी करते हुए हिंदूस्तान के साथ ताल्लुक़ात की अहमियत को वाज़िह करे और अगर उनके अपने सिस्टम और डाटा में कुछ खामियां और नक़ाइस हैं तो उन्हें दूर करने के इक़्दामात किए जाएं।

अमेरीका को ये बात भी ज़हन नशीन रखनी चाहीए कि बारहा इस तरह के वाक़्यात के नतीजा में दोनों मुल्कों के अवाम के माबेन भी ताल्लुक़ात मुतास्सिर हो सकते हैं और इख्तेलाफ़ात अगर अवामी सतह पर शिद्दत इख्तेयार कर जाएं तो हुकूमती सतह पर भी मुतास्सिर हुए बगैर नहीं रह सकते । हकूमत-ए-हिन्द की भी ज़िम्मेदारी है कि वो हुकूमत अमेरीका को इस हक़ीक़त से वाक़िफ़ करवाए ताकि मुस्तक़बिल में इस तरह के वाक़्यात का इआदा होने ना पाए ।