अलीगढ़: “टीपू सुलतान” भारत की बहुलवादी राजनीति में एक आदर्श भूमिका के विषय पर अलीगढ़ में एक सेमीनार का आयोजन किया गया। सेमिनार को संबोधित करते हुए पूर्व कर्नाटक के मंत्री व विधायक अल्हाज डॉक्टर क़मरुल इस्लाम ने कहा है कि ‘हजारों साल नर्गिस अपनी बे नूरी पे रोती है, बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीद्वर पैदा’। कवि की यह लाइनें हज़रत टीपू सुल्तान पर पूरी तरह लागू होती हैं। उन्होंने कहा कि वह आजादी की लड़ाई में सिर्फ एक योद्धा ही नहीं बल्कि भारत को ईस्ट इंडिया कंपनी से बचाने वाले अंतिम रक्षक थे।
न्यूज़ नेटवर्क समूह प्रदेश 18 के अनुसार उन्होंने सेमिनार को संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय इतिहास के महान राजा शहीद टीपू सुल्तान गंगा-जमुनी संस्कृति के सबसे बड़े वाहक थे, वह आजादी की लड़ाई में सिर्फ एक योद्धा ही नहीं बल्कि भारत को ईस्ट इंडिया कंपनी से बचाने वाले अंतिम रक्षक थे। आज की पीढ़ी को उनकी विचारधारा से अवगत कराने की जरूरत है।सेमिनार के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कानून विभाग के शिक्षक प्रोफेसर शकील अहमद समदानी ने कहा कि टीपू सुल्तान एक महान राजा के साथ साथ भारत की मिली जुली संस्कृति के भी अमीन थे, जिसे अंग्रेज सरकार भी खत्म नहीं कर सकी।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति जनरल जमीरूद्दीन शाह ने कहा कि सर सैय्यद अहमद खान की इच्छा थी कि यहां के छात्रों के एक हाथ में कुरान, दूसरे में फ़लसफ़ा और सिर पर कलमा तय्यबा का ताज हो। हम इसमें केवल कुछ बदलाव लाना चाहते हैं। एक हाथ में कुरान और दूसरे हाथ में फ़लसफ़ा की जगह कम्पयूटर लाना समय की महत्वपूर्ण आवश्यकता बन गई है।
इस अवसर पर अन्य वक्ताओं ने कहा कि अब नई पीढ़ी की जिम्मेदारी है कि हज़रत टीपू सुल्तान को वह स्थान दिलाएं, जिसके वे हकदार हैं. शहीद टीपू सुल्तान की याद में हर साल देश भर में कई सेमिनार आयोजित किए जाते हैं, जिन सभी का उद्देश्य उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करना होता है। मौजूदा समय में देश में जिस तरह के हालात हैं, ऐसे में टीपू सुलतान की शिक्षाओं को सार्वजनिक करने की जरूरत है।