नई दिल्ली: देश में रह रहे मुस्लिमों के दिल में नफरत की आग जल रही होती तो शायद आज के दिन देश की हर गली खून से भरी हुई मिलती। लेकिन इसे इस्लाम की शिक्षाओं का असर ही कहेंगे कि देश में सर उठा रहे मुस्लिम विरोधी माहौल के बाद भी आज देश के मुस्लिम शान्ति चाहते हैं और हर मसले को इसी तरीके से सुलझाने में यकीन रखते हैं। इसी सोच और सूझबूझ का उदाहरण देखने को मिला बीते दिनों पश्चिम दिल्ली के प्रेम नगर में जहाँ दो मुस्लिम युवकों पर गौरक्षकों की तरफ से किए हमले में जबरदस्त तनाव का माहौल पैदा हो गया था।
घटना के मुताबिक ईद में दी गई कुर्बानी के बाद बचे अवशेषों को इलाके के दो शख्श खालिद और हसन जिनमें से खालिद अली रूक्मन का दामाद है इलाके से दूर फेंकने बोरे में भरकर लेकर जा रहे थे। (इस्लाम में इसे काम को रास्ते के हक़ के तौर पर भी बताया जाता है जिसमें कहा गया है कि कुर्बानी के बाद बचे अवशेषों को इस तरह से फेंका जाए ताकि राहगीरों को तकलीफ न हो।) अवशेषों को फैंकने जा रहे दोनों युवकों को रास्ते में कुछ गौरक्षकों ने घेर लिया और उनकी खूब पिटाई की जिसकी वजह से दोनों शख्श गंभीर रूप से घायल हो गए।
इस बात की खबर जब अली रूक्मन को मिली तो मौके पर पहुंचे रूक्मन ने देखा कि मौके पर जमा हुई भीड़ बदला लेने के लिए तैयार है तो रूक्मन ने तुरंत मामले में दखलंदाज़ी करते हुए भीड़ से कहा कि: “यह मामला उनका और उनके परिवार का है, बाहरी लोगों को इसमें दखल देने की कोई जरूरत नहीं” रूक्मन के इतने लफ्ज़ कहने की देर थी कि तनाव भरे माहौल में गुस्से से भरे लोगों का गुस्सा ठंडा होना शुरू हो गया।
रूक्मन जोकि एक मदरसे में बतौर प्रिंसिपल काम करते हैं ने मीडिया से बात करते हुए कहा: “यहां बसने से 25 साल पहले, मैंने अपने पैतृक शहर गोरखपुर में काफी झगड़े देखे हैं। मैं जानता हूं कि दंगा कैसे शुरू होता है और कैसे दोनों तरफ के लोगों को इससे नुकसान होता है। मैं नहीं चाहता कि और लोगों को इससे कोई तकलीफ हो“