काम अब कोई है न आएगा बस इक दिल के सिवा
रास्ते बन्द हैं सब कूचा-ए-क़ातिल के सिवा
बाइसे-रश्क है तन्हारवी-ए-रहरावे-शौक़
हमसफ़र कोई नहीं दूरी-ए-मंज़िल के सिवा
हमने दुनिया की हर इक शय से उठाया दिल को
लेकिन इक शोख़ के हंगाम-ए-महफ़िल के सिवा
तेग़े मुन्सिफ़ हो जहाँ, दारो-रसन हों शायद
बेगुनाह कौन है इस शहर में क़ातिल के सिवा
जाने किस रंग से आयी है गुलिस्ताँ में बहार
कोई नग़मा ही नहीं शोरे-सलासिल के सिवा
(अली सरदार जाफ़री)