अल्लाह् तआला हर चीज़ का जानने वाला है

वो (अल्लाह तआला) जानता है जो कुछ आसमानों और ज़मीन में है, नीज़ वो जानता है जिसे तुम छिपाते हो और जिसे तुम ज़ाहिर करते हो, और अल्लाह तआला ख़ूब जानता है जो सीनों में (पोशीदा) है। (सूरा अल तग़ाबुन।४)

उसकी बेपायां क़ुदरत में उसकी हिक्मत का मंज़र पेश कर रहे हैं। यहां इसके इल्म की गहराई और वुसअत का अंदाज़ा भी मुम्किन नहीं। बुलंदीयों और पस्तियों में कोई छोटी से छोटी चीज़ भी ऐसी नहीं, जिसका उसे इल्म ना हो।
अगर उसको ख़शख़ाश के बारीक से दाने का इल्म ना हो जो ज़मीन के तारीक शिकम में बो दिया जाता है तो वो उगे कैसे,बड़ा कैसे हो, इस पर फूल कैसे आएं और वो पक कर तैयार कैसे हो। इंसान का मुक़ाम सारी मख़लूक़ात में आली-ओ-अर्फ़ा है, इसलिए इसका ज़िक्र हर मौके पर ख़ुसूसीयत से किया जाता है।

यहां भी फ़रमाया कि आसमानों और ज़मीन की हर चीज़ को जानने वाला, ऐ इंसान तुझे भी जानता है और कोई काम‌ इससे छिपा
हुआ नहीं तू हज़ार पर्दों के पीछे छिप कर भी कोई काम करेगा, तब भी उसको इसका इल्म है, बल्कि जो ख़्याल तेरे निहांख़ाना दिल में अभी अंगड़ाईयां ले रहा है, इससे भी वो पूरी तरह बाख़बर है।

इसलिए सरकशी का अंदाज़ तर्क कर दोव, इताअत-ओ-इन्क़ियाद को अपना शआर बना लो, इसी में तुम्हारी भलाई और दोनों जहानों की फ़लाह का राज़ पोशीदा है।

क़ुरआन-ए-करीम हर मुनासिब मुक़ाम पर इंसान को ये अहसाद लाता है कि तो अशरफ़-उल-मख़लूक़ात है। जो शक्ल-ओ-सूरत तुझे दी गई है, वो भी बेनज़ीर है। जो फ़हम-ओ-शऊर तुझे बख्शा गया है, उसकी भी मिसाल नहीं। फे़अल-ओ-तर्क की जो आज़ादी तुझे दी गई है, किसी और मख़लूक़ को नहीं दी गई।

अब तेरा भी फ़र्ज़ है कि अपने करीम रब को पहचान, अपनी ज़िंदगी को इसके अहकाम के सांचे में ढाल, उसकी नेअमतों का शुक्र अदा कर। तेरा ख़ुदा तुझ से राज़ी हो जाएगा!