अल्लाह की नेअमतें उस की राह में ख़र्च करो

ए ईमान वालो! तुम्हें ग़ाफ़िल ना कर दें तुम्हारे अम्वाल ( संपत्तियां ) और ना तुम्हारी औलाद अल्लाह के ज़िक्र से और जिन्होंने ऐसा किया तो वही लोग घाटे में होंगे। और ख़र्च कर लो उस रिज़्क से जो हम ने तुम को दिया, इस से पेशतर कि आ जाए तुम में से किसी के पास मौत तो (उस वक़्त) वो ये कहने लगे कि ऐ मेरे रब! तूने मुझे थोड़ी मुद्दत के लिए क्यों मोहलत ना दी, ताकि में सदक़ा (व खैरात) कर लेता और नेकों में शामिल हो जाता। (सूरा अल मुनाफिकुन ९,१०)

फ़र्ज़ंद इन इस्लाम को मुनाफ़क़ीन के तरीका-ए-कार से इजतिनाब (बचने) की ताकीद फ़रमाई जा रही है कि उन लोगों को उन के अम्वाल ने और उन की औलाद ने अपने ख़ालिक़ की याद से ग़ाफ़िल कर दिया है। ऐ मुसलमानो! तुम ऐसा ना करना। जिस शख़्स को दुनिया की दिलचस्पियां अपने परवरदिगार की बंदगी और इताअत से महरूम कर देती हैं, वो इंसान सरासर ख़सारे और घाटे में है। हक़ीक़ी नफ़ा हासिल करने वाले वो लोग हैं, जो अपनी फ़ानी ज़िंदगी के लम्हात अपने रब की याद और अपने प्यारे रसूल(स‍०अ०व०)की गु़लामी और मुहब्बत में बसर करते हैं।

अल्लाह तआला ने जो नेअमतें तुमको अता फ़रमाई हैं, उन्हें उसकी राह में ख़र्च करो और ख़र्च करने में लीत-ओ-लाल और ताख़ीर ( देरी) से काम ना लो। ऐसा ना हो कि मौत का वक़्त आ जाए और तुम कफ ‍ए‍ अफ़सोस मलते रह जाओ। उस वक़्त तुम्हारी आँखें खुलीं और इस तवील ( लंबे) सफ़र के लिए कोई ज़ाद राह मुहय्या ना करने का तुम्हें एहसास सताने लगे।

तुम एड़ीयां रगड़ रगड़ कर इल्तिजा करो कि एक मर्तबा ये मौत टल जाए, थोड़ा सा वक़्त मिल जाए, ताकि मैं अल्लाह तआला की राह में जी भर कर अपना माल ख़र्च कर लूं और इसके नेक बंदों में शामिल हो जाऊं। फिर इस के बाद मौत आए तो मैं बसद मुसर्रत(खुशी के साथ) पयाम अजल को क़बूल कर लूंगा।