अल्लाह की ख़ुशनूदी के तलबगार

पस मैंने ख़बरदार कर दिया है तुम्हें एक भड़कती आग से। इसमें नहीं जलेगा मगर वो इंतिहाई बदबख़्त, जिसने (नबी करीम स०अ०व०) को झुठलाया और (आप से) रुगिरदानी की। और दूर रखा जाएगा इससे वो निहायत परहेज़गार जो देता है अपना माल अपने (दिल) को पाक करने के लिए और इस पर किसी का कोई एहसान नहीं जिसका बदला उसे देना हो।

बजुज़ इसके कि वो अपने बरतर परवरदिगार की ख़ुशनूदी का तलबगार है। और वो ज़रूर (इससे) ख़ुश होगा। (सूरतुल लैल।४१ता२१)
जब अल्लाह तआला ने बरवक़्त उन्हें ख़बरदार कर दिया है, इसके बावजूद जो राहे हक़ इख्तेयार नहीं करता और ग़लत रास्ता पर चल कर सीधा जहन्नुम में जा गिरता है तो इससे ज़्यादा बदबख़्त और शकी कौन हो सकता है।

यहां “अशक़ा” से मुराद उमय्या बिन ख़लफ़ और इसके ज़ुमरे के वो रौसाए मक्का हैं, जिन्होंने दानिस्ता दावत हक़ को झुठलाया और महिज़ इनाद और तास्सुब की बिना पर बातिल पर अड़े रहे। एक तरफ़ अशक़ा है जिसका तरीका-ए-कार हक़ की तक़ज़ीब और इस्लाम से रुगिरदानी है, इसके मद्द-ए-मुक़ाबिल वो शख़्स है जो तक़वा और पारसाई में आली तरीन मुक़ाम पर फ़ाइज़ है, जो दावत हक़ को कामयाब बनाने के लिए बसद मुसर्रत अपना सारा माल-ओ-मता क़ुर्बान करने के लिए आमादा होता है।

दोनों का अंजाम यकसाँ नहीं हो सकता है। उनके अंजाम में इतना ही बाद है, जितना उनके फ़िक्र-ओ-अमल में तफ़ावुत है।
अक़्लीम तक़वा-ओ-पारसाई का ये ताजदार अपना माल जिस दरिया दिली से ख़र्च कर रहा है, वो किसी का एहसान उतारने के लिए नहीं, किसी की नेकी और हुस्न-ए-सुलूक का मुआवज़ा अदा करने के लिए नहीं, उसकी नीयत इन तमाम आलाईशों से पाक है।

उसकी ये क़ुर्बानी सिर्फ़ अल्लाह की रज़ा-ओ‍-ख़ुशनूदी के लिए है।