अल्लाह तआला की नवाजिशें और हमारा फर्ज

(मौलाना अशहद रशीदी ) हजरत अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रजि0) से मंकूल है कि नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) से नकल करते हुए इरशाद फरमाते हैं कि अल्लाह तआला नेकियों को भी लिखता है और बुराइयों को भी, फिर आप ने इसकी वजाहत करते हुए फरमाया कि जो शख्स नेकी का इरादा करे और फिर उसको अंजाम न दे सके तो अल्लाह तआला (महज इदरादा-ए-खैर पर ही) मुकम्मल अज्र व सवाब अता फरमाएगा। और अगर उसने इस कारे खैर को अंजाम दे दिया तो अल्लाह तआला उसको दस गुना से लेकर सात सौ गुना तक अज्र व सवाब से नवाजेगा और उस पर मजीद इजाफा भी कर सकता है (इसके बरखिलाफ) जिस शख्स के जेहन में बुराई और गुनाह करने का इरादा पैदा हो और वह (खौफे खुदा की वजह से) उसको न करे तो अल्लाह तआला उसके आमाल नामे में अज्र व सवाब लिखेगा और अगर उसने इस मासियत को अंजाम ही दे दिया तो आमाल नामे में सिर्फ एक ही बुराई लिखी जाएगी।

तशरीह:- अल्लाह तआला के एहसानात अनगिनत और नेमते लामतनाही है वह हर घड़ी अपने बंदो पर फजल व अता की बारिश बरसाता रहता है, जिंदगी के हर गोशे में इंसान उसकी नेमतों से लुत्फ अंदोज होता है, कोई पल और कोई मिनट ऐसा नहीं गुरता कि जिसमें इंसान खुदाए वहदहू लाशरीक के एहसान व करम, अता व बख्शिश के मजे न ले रहा हो। हकीकत तो यह है कि खुदाई नेमतों को शुमार करना भी इंसान के बस की बात नहीं है जैसा कि अल्लाह का इरशाद है-‘‘तुम चाहने के बावजूद भी अल्लाह की नेमतों को शुमार नहीं कर सकते।’’(इब्राहीम-34)

माल व दौलत, जाह व हशमत, इज्जत व अजमत और आल व औलाद जैसी बेशुमार दुनियावी नेमतों से बढ़कर अल्लाह तआला का एक और अजीम उखरवी एहसान और लुत्फ व करम का मामला उम्मत के साथ है, जिसका इस हदीस में जिक्र किया जा रहा है।
नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) फरमाते हैं कि अल्लाह तआला अपने बंदो को आगाह करते हुए कहता है कि ऐ लोगो! तुम जो कुछ भी करते हो वह बेकार नहीं जाता बल्कि तुम्हारे आमाल चाहे अच्छे हों या बुरे, उनको अल्लाह की तरफ से मुकर्रर कर्दा फरिश्ते लिखते हैं, अच्छाइयां भी तहरीर की जाती हैं और बुराइयों को भी लिखा जाता है।

लेकिन जब कोई शख्स खैर और नेकी की तरफ बढ़ता है तो अल्लाह की रहमत का दरिया जोश में आ जाता है और सिर्फ नेकी का इरादा करने पर ही अज्र व सवाब अता फरमा देता है चाहे इंसान इरादा करने के बाद किसी वजह से उस नेक काम को अंजाम न दे सके और अगर तौफीके खुदावंदी से वह उस नेक काम को अंजाम दे लेता है तो अल्लाह तआला उसके बदले में दस गुना से लेकर सात सौ गुना तक अज्र व सवाब अता फरमाता है, इसी पर बस नहीं है बल्कि इसके बाद भी जिसकी नेकियों में चाहता है बेहिसाब इजाफा करता चला जाता है। एक तरफ तो यह लुत्फ व करम और इनायात हैं और दूसरी तरफ दरगुजर की इंतिहा करते हुए इरशाद फरमाता है कि बुराई और गुनाह का इरादा करने वाले शख्स के आमाल नामे में महज इरादा-ए-मासियत पर गुनाह दर्ज नहीं किया जाता और इस उम्मीद पर उसको मोहलत दी जाती है कि शायद उसके दिल में अल्लाह का खौफ पैदा हो जाए, और वह अपने इरादे से बाज आ जाए।

इसलिए अगर वह अल्लाह से डरते हुए उस गुनाह को अंजाम देने से रूक जाता है तो उसके आमाल नामे में गुनाह के बजाए सवाब तहरीर किया जाता है। लेकिन अगर कोई शख्स अपने गलत इरादे को अमली जामा पहनाते हुए गुनाह कर बैठता है तो आमाल नामे में सिर्फ एक ही बुराई तहरीर की जाती है। जरा अल्लाह के फजल व करम का मुशाहिदा तो कीजिए इताअत के इरादे पर भी अज्र, उसको करने पर दस गुना और सात सौ गुना, और कभी बेहिसाब अता फरमाता है और नाफरमानी व मासियत के इरादे पर कुछ नहीं। इरादा करने के बाद गुनाह से बच जाने पर भी अज्र और मासियत में मुब्तला हो जाने पर सिर्फ एक ही गुनाह दर्ज करना यह अल्लाह तआला के वह एहसानात हैं कि जिन को हमेशा इंसानों को अपने जेहन व दिमाग में रखते हुए भलाइयों और नेकियों की तरफ बढ़ना चाहिए, बुराइयों और गुनाहों से बचते रहना चाहिए।

आमाल की किस्में:- ऊपर की हदीस शरीफ की रौशनी में इंसान से सादिर होने वाले आमाल की चार किस्में बनती हैं-
1. अच्छे आमाल:- उलेमा इस बात पर मुत्तफिक है कि हर नेक अमल के बदले में अल्लाह दस गुना सवाब अता फरमाएगा चाहे किसी ने भी उसको अंजाम दिया हो बशर्ते कि खुलूस दिल के साथ महज अल्लाह तआला के लिए उस काम को किया गया हो जैसा कि इरशादे बारी है- ‘‘नेकी लेकर आने वाले को दस गुना अज्र दिया जाएगा।’’ (सूरा बकरा-161)

कुछ नेक आमाल ऐसे हैं कि जिनके बदले में दस गुना से ज्यादा अज्र व सवाब का एलान किया गया है, यह फजल यकीनन इसी अमल के साथ खास होगा जिसके साथ इसको जिक्र किया गया है जैसा कि अल्लाह के रास्ते में सदका व खैरात करने का अज्र व सवाब जिक्र करते हुए इरशाद फरमाया गया है-‘‘ जो लोग अपने माल को अल्लाह की राह में खर्च करते हैं उनके माल की मिसाल उस दाने की सी है जिससे सात बालियां उगती हो हर बाली के अंदर सौ सौ दाने हो।’’ (सूरा बकरा-261)

अताए खुदावंदी और नबी-ए-रहमत की करम नवाजी:- नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) अपनी उम्मत पर रहमते खुदावंदी की साये को दराज करने और उम्मत को बेशबहा अज्र व सवाब से मालामाल करने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने दिया करते और हर घड़ी अल्लाह के हुजूर उम्मत के लिए दस्त बदुआ रहा करते थे इसलिए एक रिवायत में हजरत नाफे (रजि0) हजरत इब्ने उमर (रजि0) से नकल करते हुए इरशाद फरमाते हैं-‘‘जब यह आयत नाजिल हुई जिसमें अल्लाह तआला ने अपने रास्ते में खर्च करने वालों के अज्र व सवाब को जिक्र करते हुए इरशाद फरमाया कि वह लोग जो अपने माल अल्लाह के रास्ते में खर्च करते हैं उनकी मिसाल उस दाने की सी है जिससे सात बालियां निकली हो।

तो नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने दुआ करते हुए फरमाया- ऐ अल्लाह! मेरी उम्मत के अज्र व सवाब में और इजाफा फरमा तो अल्लाह तआला ने यह आयत नाजिल फरमाई कि वह लोग जो अल्लाह को बेहतरीन कर्ज देते हैं (सदका और खैरात करते हैं) उनके अज्र में कई गुना इजाफा कर दिया जाएगा तो नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने फिर दुआ की कि ऐ अल्लाह! मेरी उम्मत के अज्र में और इजाफा फरमा तो अल्लाह तआला ने आप की दुआ को कुबूल करते हए यह आयत नाजिल फरमाई कि सब्र करने वालों को यानी अपनी ख्वाहिशात को पीछे डाल कर तमाम नेक आमाल को अंजाम देने वालो और मुंकिरात से बचने वालों को बेहिसाब अज्र व सवाब दिया जाएगा।’’

अल्लाह तआला के फजल व अता, बख्शिश व करम लामतनाही और उसकी नेमतें लातादाद है यकीनन इंसान अपनी पूरी जद्दोजेहद लगाकर भी इसकी हकीकत तक पहुंचने की ताकत नहीं रखता। कुर्बान जाइए! उस नबी बरहक के कि जिसने हर मौके पर अपनी उम्मत को याद रखा और अल्लाह तआला की रहमतों और उखरवी सआदतों के हुसूल के लिए अल्लाह के हुजूर में सिफारिशात पेश फरमाते रहे।

गुनाह और अल्लाह की नाफरमानी:- ऊपर की हदीस की रौशनी में उलेमा इस बात पर मुत्तफिक है कि मासियते खुदावंदी और नाफरमानी के बदले में सिर्फ एक ही गुनाह आमाल नामे में लिखा जाता है। अल्लाह तआला दरगुजर से काम लेते हुए गुनाह को दो गुना या इससे ज्यादा बढ़ाने के बजाए सिर्फ एक ही बुराई तहरीर फरमाता है। इसलिए अल्लाह का इरशाद है-‘‘ वह शख्स जो बुराई का कुसूरवार हो उसको सिर्फ मासियत के बराबर ही बदला दिया जाएगा और ऐसे लोगों पर जुल्म व ज्यादती नहीं की जाएगी।’’ (अल इनाम-161)

लेकिन कभी-कभी वक्त के अहम होने या जगह के बाअजमत होेने की वजह से मासियत की शनाई और बुराई बढ़ जाती है और एक नाफरमानी की वजह से आमालनामे में कई गुना बुराई दर्ज की जाती है। इसलिए मुकद्दस मकामात और मुबारक लम्हात में गुनाहों से बचने की भरपूर कोशिश करनी चाहिए। साल के बारह महीनों में से दो चार महीने जो अशहर हरम कहलाते हैं उनमें जिस तरह नेक अमल का सवाब बेपनाह है उसी तरह उनकी हुरमत को पामाल करके मासियत का गुनाह भी बेइंतिहा है।

इसलिए अल्लाह का इरशाद है-‘‘ अल्लाह के यहां एक साल बारह महीनों का गिना जाता है, अल्लाह की किताब का यह कानून है कि जिस दिन से उसने जमीन व आसमान पैदा फरमाए तब से अल्लाह का यह हुक्म जारी है और उनमें से चार महीने अदब और ताजीम के है सीद्दा सच्चा दीन सिर्फ यही है, अदब के महीनों में जुल्म न होने दो कि इसमें खुद तुम्हारा नुक्सान है।’’ (तौबा-36)

अशहर हरम में दीगर गुनाहों के साथ-साथ खासतौर पर जुल्म व नाइंसाफी के गुनाह से बचने की तलकीन ऊपर की आयत में की गई है। जुल्म अपने मफहूम के एतबार से बड़ा उमूम रखता है दूसरे के हक को दबाना नाहक ज्यादती करना जिस तरह जुल्म है, इसी तरह अपने आप को शहवात और ख्वाहिशाते नफ्स का गिरवीदा बना देना भी जुल्म है, यह अमल अगरचे साल के बारह महीने मजमूम और नापसंदीदा है लेकिन इसकी शनाअत अशहर हरम में बेपनाह बढ़ जाती है। इसलिए मुफस्सिरे कुरआन हजरत कतादा (रजि0) मजकूरा आयत के सिलसिले में इरशाद फरमाते हैं-‘‘ जान लो कि अशहर हरम में जुल्म करना बमुकाबला दीगर अयाम के बड़ा गुनाह और जुर्म अजीम है।’’

इसी तरह हज के दिनों में हरमैन शरीफैन के हुदूद में गुनाह का इर्तिकाब करना उसकी शनाअत और बुराई को कई गुना ज्यादा बढ़ा देता है।

हरम के जायरीन से गुजारिश:- हज के दिन करीब है अल्लाह के वह बंदे जिनको तौफीक से नवाजा गया है वह हरमैन शरीफैन की जियारत की सआदत हासिल करेंगे, जाने वाले खुशी और मसर्रत से लबरेज जज्बात के साथ सरजमीन मुकद्दस की तरफ रवाना होते हैं, लोग जाने वालों से दुआओं की दरख्वास्त करते हैं और हर जायर यह तमन्ना दिल में लेकर इस मुबारक सफर पर रवाना होता है कि मुकद्दस मकामात पर हाजिरी देकर अल्लाह से उसकी रहमत का तलब गार बनूंगा, आमाल नामे में नेक अमल का इजाफा होगा अल्लाह का कुर्ब और उसकी रजा हासिल होगी लेकिन वहां पहुंचने के बाद शैतान और नफ्स के द्दोके में आकर जब इंसान मक्का में, मिना में, अरफात और मुजदुल्फा में या मदीना मुनव्वरा में गुनाहों और मासियत में मुब्तला होता है तो उसका आमालनामा गुनाहों की स्याही से लबरेज हो जाता है।

एक एक मासियत के बदले में कई कई गुना बुराइयां तहरीर की जाती हैं थोड़ी सी लगजिश और छोटे से गुनाह के एवज जुर्म अजीम लिखा जाता है। मुकद्दस मकामात पर किए जाने वाले गुनाहों की शनाअत बेपनाह बढ़ जाती है। इसलिए हजरत उमर बिन खत्ताब (रजि0) हरम मक्की में किए जाने वाले गुनाह की बुराई बयान करते हुए इरशाद फरमाते हैं-‘‘ मक्का के अलावा किसी भी जगह पर सत्तर नाफरमानियां करना मुझे पसंद है बमुकाबला इस एक नाफरमानी के जो मक्का में की जाए।’’ यानी मक्का में किया जाने वाला एक गुनाह उन सत्तर गुनाहों से बढ़कर के है जो दुनिया के किसी और गोशे में किया जाए।

हजरत मुजाहिद (रह0) फरमाते हैं-‘‘जिस तरह मक्का में नेकियों का अज्र व सवाब कई गुना बढ़ाकर किया जाता है उसी तरह मासियत की शनाअत भी कई गुना बढ़ जाती है।’’ मक्का में यह हरमैन शरीफैन के हुदूद में किए जाने वाले किसी एक गुनाह की शनाअत कितनी ज्यादा बढ़ जाती है इसका अंदाजा हजरत इब्ने जरीज (रह0) के इस कौल से लगाइए-‘‘मुझे यह खबर पहुंची है कि मक्का में किया जाने वाला एक गुनाह सौ गुनाहों के बराबर है और नेकियों में भी इसी तरह इजाफा किया जाता है।’’

ऊपर की रिवायात और कौल की रौशनी में जायरीन से दरख्वास्त की जाती है कि हर-हर कदम पर अपने आप को गुनाहों से बचाने और मासियत से दूर रहने की कोशिश करें, बाजारों में घूम कर इसी तरह नामहरमों की तरफ बिला वजह नजरे उठाकर अपने आप को हलाकत में मुब्तला न करें। जमाअत की पाबंदी करते हुए हर नमाज हरम शरीफ में पढ़ने की कोशिश करें।

नेक अमल का इरादा:- नेक अमल का इरादा करना और उसको अंजाम देने के लिए पक्का अज्म कर लेना भी अल्लाह के नजदीक एक नेकी है। इसलिए सिर्फ खैर के इरादे पर भी आमाल नामे में अज्र व सवाब लिख दिया जाता है लेकिन यह बात जेहन में रखनी चाहिए कि इरादे से मुराद किसी के इसरार करने पर महज जबान से इंशाअल्लाह कह देना या इरादा जाहिर कर देना काफी नहीं है बल्कि दिल से पक्का अज्म करना और पुख्ता इरादा करना मुराद है। इसी पर अल्लाह के यहां से अज्र व सवाब का फैसला होता है इसलिए हजरत अबू हुरैरा (रजि0) नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) का कौल जिक्र करते हुए फरमाते हैं-‘‘ अल्लाह फरमाता है कि जब मेरा बंदा अपने दिल से किसी नेक अमल का पक्का इरादा कर ले तो मैं उसके लिए नेकी और अज्र लिख देता हूं।’’

इसी अज्म को पुख्ता इरादे को अल्लाह के यहां कद्र की निगाह से देखा जाता है। इसलिए हजरत अबू इमरान अल जोनी फरमाते हैं-‘‘फरिश्ते से कहा जाएगा कि फलां बंदे के आमाल नामे में फलां-फलां अमल का अज्र व सवाब लिखो, फरिश्ता कहेगा या रब उसने यह अमल नहीं किया, अल्लाह इरशाद फरमाएगा उसने अगरचे अमल नहीं किया लेकिन उसने नीयत और इरादा जरूर किया था।’’
अपने जमाने के मशहूर आलिम हजरत जैद बिन असलम (रह0) एक शख्स का किस्सा नकल करते हुए फरमाते है कि एक नेक और सालेह आदमी मुख्तलिफ उलेमा के पास यह सवाल लेकिर पहुंचा कि मुझ को कोई ऐसा अमल बताइए कि जिसकी वजह से मैं हर वक्त और हर लम्हा अल्लाह की इबादत में मसरूफ रहूं क्योंकि मैं यह नहीं चाहता कि दिन और रात का कोई गोशा अल्लाह की इबादत के बगैर गुजरे, उसको जवाब देते हुए उलेमा ने फरमाया कि तुम दो काम कर लो तो हर लम्हा अल्लाह की इबादत करने वाले बन जाओगे।

1. जब तक मुमकिन हो नेक अमल करते रहो, 2. और जब तकाजा बशरिया की वजह से उसको छोड़ना पड़ जाए तो छोड़ते वक्त आइंदा करने का अज्म और पुख्ता इरादा कर लो तो उस इरादे की वजह से भी आमाल नामे में बराबर खैर लिखी जाती रहेगी।

बुराई का इरादा:- बुराई का इरादा करने पर ऊपर की हदीस की रौशनी में आमाल नामे में कोई गुनाह तहरीर नहीं किया जा जाता जब तक कि इंसान उस गुनाह को अंजाम न दे दे। क्योंकि अल्लाह तआला गुनाह का इरादा करने वाले को तौबा की मोहलत देता है। और इस बात का मौका देता है कि वह खौफे खुदा की वजह से गुनाह करने से बाज आ जाए। अगर कोई शख्स अल्लाह से डरते हुए अपने मासियत के इरादे से बाज आ जाता है तो उस पर भी अल्लाह तआला के यहां से उसके आमाल नामे में अज्र व सवाब तहरीर किया जाता है।

नोट:-गुनाह का इरादा कर लेने के बाद उसको छोड़ने की तीन वजहें होती हैं-

1. खौफे खुदा जैसा कि ऊपर जिक्र किया गया है उस पर अज्र व सवाब अता किया जाएगा, 2. इंसानों का खौफ-उलेमा फरमाते हैं कि मासियत के इरादे को लोगो के डर की वजह से छोड़ने वाला भी गुनाह का कसूरवार माना जाएगा क्योंकि उसने खौफे खुदा को पीछे छोड़कर मखलूकात के खौफ की वजह से बुराई के इरादे को छोड़ा है, जो शिर्क के दायरे में आता है।, 3. लोगों को दिखाने के लिए रिया की वजह से गुनाह के इरादे से बाज आता है तो वह भी गुनाहगारों में शामिल होगा क्योंकि रिया और दिखावा करना बहर सूरत गुनाह कबीरा है। इसलिए हजरत फुजैल बिन अय्याज (रह0) फरमाते हैं-‘‘ लोगों की वजह से किसी अमल को छोड़ देना यह रिया है और लोगों को दिखाने के लिए कोई अमल करना यह शिर्क है।’’

हासिल:- महज गुनाह के इरादे पर आमाल नामे में कोई बुराई तहरीर नहीं की जाती लेकिन अगर किसी शख्स ने अपने मासियत के इरादे को अमली जामा पहनाने के लिए पूरी जद्दोजेहद की और फिर तकदीर के गालिब आ जाने की वजह से वह उस काम को न कर सका तो अब उसका इरादा और जद्दोजेहद के बदले में आमालनामे में गुनाह तहरीर किया जाएगा। इसलिए इरशादे नबवी है-‘‘ अल्लाह तआला ने मेरी उम्मत के दिलों में पैदा होने वाले बुरे ख्यालात को माफ कर दिया है जब तक कि वह उस मासियत को कर न ले या उसको अमली जामा न पहना दे और वह शख्स तो मासियत को अंजाम देने की भरपूर कोशिश करे और फिर उसको करने से आजिज रह जाए तो वह ऐसा ही है गोया उसने उस गुनाह को अंजाम दे दिया है।’’

आम तौर पर लोग किसी मालदार या साहबे मंसब शख्स को देखकर यह आरजू कर बैठते हैं कि अगर मेरे पास पैसा होता या फलां जैसा ओहदा होता तो मैं फलां (गुनाह के) काम कर डालता, इस तरह के कलमात को जबान से निकालने को बुरा भी नहीं समझा जाता लेकिन उलेमा फरमाते हैं कि अगर किसी शख्स ने मासियत और अल्लाह की नाफरमानी का इरादा करते हुए दिल की गहराइयों से पुख्ता अज्म कर लिया तो उसके आमाल नामे में भी गुनाह तहरीर कर दिया जाएगा। इसलिए जबान से उल्टे-सीद्दे कलमात निकालने में निहायत एहतियात बरतनी चाहिए।

ऊपर की हदीस में जिस मासियत के इरादे का जिक्र किया गया है उससे मुराद ख्यालात हैं जिनपर किसी तरह का मवाखजा नहीं किया जाएगा। इसलिए जब यह आयत नाजिल हुई-‘‘ तुम जिन बातों को जाहिर करते हो और जिन को अपने सीनो में छिपाए होते है। उन सब का अल्लाह तआला मुहासिबा करेगा।’’(बकरा-284)

तो सहाबा-ए-कराम (रजि0) बहुत परेशान हुए और नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) की खिदमत में आके अर्ज किया कि हमारे दिलों में कभी कभी ऐसे ख्यालात भी पैदा होते हैं कि जिन को हम जबान पर लाना किसी कीमत पर गवारा नहीं कर सकते और वह ख्यालात दिलों में खुद व खुद पैदा हो जाते हैं, हमारे इरादे को इसमें कोई दखल नहीं होेेता इसके बाद अल्लाह तआला ने दूसरी आयत नाजिल फरमाई-‘‘ ऐ रब! तू हम पर बोझ न डाल उन चीजों का जिन की हम ताकत नहीं रखते।’’ (बकरा-286)

गोया इस दूसरी आयत के जरिए अल्लाह तआला ने उन गलत ख्यालात की माफी का एलान कर दिया जो बिला इरादा और बगैर अज्म के दिल व दिमाग में आ जाएं। इसके बरखिलाफ अगर गुनाह का इरादा दिल में पैदा हो और फिर पुख्ता अज्म की हैसियत अख्तियार कर ले तो यकीनन आमाल नामे में गुनाह दर्ज कर दिया जाएगा। इसलिए अपने अफकार व ख्यालात को पाक रखना निहायत जरूरी और अहम चीज है।

गुनाह के बारे में सोंचना उसके तसव्वुर में खो जाना और फिर बार-बार उसको जेहन में लाना यह इंसान को गुनाह में आखिरकार मुब्तला कर ही देता है। अल्लाह तआला हर तरह के खैर के अमल से उम्मत को मालामाल फरमाए और हर तरह की बुराइयों और मासियत से सबकी हिफाजत फरमाए- आमीन

——————–बशुक्रिया: जदीद मरकज