अल्लाह तआला की दो अहम सिफतें रहमान और रहीम हैं। हर अच्छे काम की इब्तिदा करते वक्त बन्दे को ज़ुबान से अदा करने के लिए अल्लाह और इसके रसूल (स०अ०व०) की तरफ से हिदायत की गई है। इस से बेशुमार फायदे हासिल होते हैं। यह दो सिफते बिस्मिल्लाह हिर्रहमानिर रहीम का जुज है। यह सिफतें सूरा फातेहा में भी शामिल हैं। सूरा फातेहा पढ़ते वक्त मुसल्ली कई बार नमाज में दोहराता है। इससे साफ जाहिर है कि अल्लाह तआला की यह दो सिफतें किस कदर अहम और जरूरी हैं। बंदे को इसकी गहराई और गीराई का अच्छी तरह से इल्म होना लाजिमी है।
अल्लाह अपनी हर सिफत का असर बंदे की जिंदगी में देखना चाहता है। बंदा उसी वक्त रहमत की यह सिफत अपने दिल में उतार सकता है जब समझ-बूझ कर इसे पढ़े और दुआ करे कि वह अल्लाह के बंदो के लिए सरापा रहमत बन जाए। किसी बेरहम और संगदिल इंसान को खुदा नहीं मिलता और न ही वह खुदा का बंदा बन सकता है।
रहमान व रहीम दोनों लफ्ज रहमत से बने हैं और अल्लाह की सिफत है। रहमान मुबालगा का सेगा हैं जिसके मायनी है बेइंतिहा मेहरबान। इसमे जोशे रहमत का पहलू गालिब है और यह इशारा है इस बात की तरफ कि इंसान की तखलीक उसके गजब के नतीजे में नहीं बल्कि जोशे रहमत के नतीजे में हुई है और उसकी यह रहमत निहायत वसीअ और हमागीर है जिनसे इंसानों का कोई गिरोह या मखसूस फिर्का या मखसूस कौम नहीं बल्कि पूरी इंसानियत फैजयाब हो रही है और इतना ही नहीं बल्कि तमाम मखलूकात और पूरी कायनात के पेशेनजर यह नाम अल्लाह के लिए खास हो गया है और रहमान के नाम से उसी को पुकारा जाता है गोया इस लफ्ज की हैसियत इस्मे इल्म की सी है इसलिए खुदा की सिफत रहमत को नुमायां करने के लिए रहीम का इजाफा निहायत मौजूं हुआ।
रहीम इस्मे सिफत है और इस पहलू को जाहिर करती है कि उसकी रहमत मुस्तकिल और दायमी है। इससे इस बात की तरफ इशारा करना मकसूद है कि इंसान की तखलीक न सिर्फ उसकी रहमत के जोश में आने से हुई बल्कि वह इस पर बराबर अपनी रहमत की बारिश कर रहा है और जो लोग उसके रास्ते पर चलेंगे उन्हें वह अबदी तौर पर अपनी रहमत से नवाजेगा। यह बात अच्छी तरह से मालूम होना चाहिए कि रहीम राम के मुतरादिफ समझना सही नहीं क्योंकि रहीम अल्लाह वहदहू की सिफत है जबकि राम एक राजा या मज़हबी पेशवा का नाम है।
रहमत को दो-दो अलग-अलग इस्मों से क्यों ताबीर किया गया? इसलिए कि कुरआने मजीद अल्लाह के तसव्वुर का जो नक्शा जेहन नशीन करना चाहता है उसमें सबसे ज्यादा नुमायां और छाई हुई सिफत रहमत ही की सिफत है। बल्कि कहना चाहिए कि तमामतर रहमत ही है और मेरी रहमत दुनिया की हर चीज को घेरे हुए है।
इसलिए यह जरूरी था कि खुसूसियत के साथ उसकी सिफती और फेअली दोनों हैसियतें वाजेह कर दी जाएं यानी उसमें रहमत है क्योंकि वह रहमान है और सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि हमेशा उससे रहमत का जहूर हो रहा है। क्योंकि रहमान के साथ वह रहीम भी है। लेकिन अल्लाह की रहमत क्या है? कुरआन कहता है- कायनात हस्ती में जो कुछ भी खूबी व कमाल है वह इसके सिवा कुछ नहीं है कि रहमते इलाही का जहूर है। इस सिलसिले में सबसे पहली हकीकत जो हमारे सामने नुमायां होती है वह कायनात हस्ती और उसकी तमाम चीजों का इफादा फैजान है यानी हम देखते हैं कि फितरत के तमाम कामों में कामिल, नज्म व यकसानियत के साथ मुफीद और करामद होने की खासियत पाई जाती है और अगर बहैसियत मजमूई देखा जाए तो ऐसा मालूम होता है गोया यह तमाम कारगाहे आलम सिर्फ इसीलिए बना है कि हमें फायदा पहुंचाए और हमारी हाजत रवाइयों का जरिया हो। ‘‘और आसमानों व जमीन में जो कुछ भी है वह सब अल्लाह ने तुम्हारे लिए मुसख्खर कर दिया है (यानी उनकी कुवते और तासीरे इस तरह तुम्हारे इस्तेमाल में दे दी गई हैं कि जिस तरह चाहो काम ले सकते हो) बिला शुब्हा उन लोगों के लिए जो गौर व फिक्र करने वाले हैं इस बात में (मारफत हक की) बड़ी ही निशानियां हैं।’’
हम देखते हैं कि कायनात हस्ती में जो कुछ भी मौजूद है और जो कुछ भी जहूर में आता है उसमें से हर चीज कोई न कोई खास्सा रखती है और हर हादिसा की कोई न कोई तासीर है और फिर हम यह भी देखते हैं कि यह तमाम ख्वास व मोअस्सरात कुुछ इस तरह वाके हुए हैं कि हर खास्सा हमारी कोई न कोई जरूरत पूरी करता और हर तासीर हमारे लिए कोई न कोई फैजान रखती है।
सूरज, चांद, सितारे, हवा, बारिश, दरिया, समुन्दर, पहाड़, सबके ख्वास व फवायद हैं और सब हमारे लिए तरह-तरह की राहतो और आसाइशों का सामान पहुंचा रहे हैं-‘‘यह अल्लाह ही की कारफरमाई है कि उसने आसमानों और जमीन को पैदा किया और आसमान से पानी बरसाया, फिर उसकी तासीर से तरह-तरह के फल तुम्हारी गिजा के लिए पैदा कर दिए। इसी तरह उसने यह बात भी ठहरा दी कि समुन्दर मे जहाज तुम्हारे जेरे फरमान रहते और हुक्मे इलाही से चलते रहते हैं और इसी तरह दरिया भी तुम्हारी कारबरआरियों के लिए मुसख्खर कर दिए गए और(फिर इतना ही नहीं बल्कि गौर करो तो) सूरज और चांद भी तुम्हारे लिए मुसख्खर कर दिए गए हैं कि एक खास ढंग पर गर्दिश में है और रात व दिन का इख्तिलाफ भी (तुम्हारे फायदे के लिए) मुसख्खर है।
गरज कि जो कुछ तुम्हें मतलूब था वह सब कुछ उसने अता कर दिया। अगर तुम अल्लाह की नेमते शुमार करना चाहो तो वह इतनी है कि हरगिज शुमार न कर सकोगे। बिला शुब्हा इंसान बड़ा ही नाइंसाफ बड़ा ही नाशुक्रा है।’’
जमीन को देखो इसकी सतह फलों और फूलों से लदी हुई है। तह में मीठे पानी के सोते बह रहे हैं, गहराई से चांदी सोना निकल रहा है वह अपनी जसामत में अगरचे गोल है लेकिन उसका हर हिस्सा इस तरह वाके हुआ है कि मालूम होता है एक मुस्तह फर्श बिछा दी गई है-‘‘ वह परवरदिगार जिसने तुम्हारे लिए जमीन इस तरह बना दी है कि फर्श की तरह बिछी हुई है और इसमें कतअ मुसाफत की (हमवार) राहे पैदा कर दी।
‘‘और यह उसी परवरदिगार की परवरदिगारी है कि उसने जमीन (तुम्हारी सुकूनत के लिए) फैला दी और उसमें पहाड़ों के लंगर डाल दिए और नहरें बहा दी और हर तरह के फलों की दो-दो किस्में पैदा कर दी और फिर यह उसी की कारफरमाई है कि (रात और दिन एक के बाद एक आते रहते हैं और ) रात की तारीकी को दिन की रौशनी ढांप लेती है। बिला शुब्हा उन लोगों के लिए जो गौर व फिक्र करने वाले हैं उसमें (मारफत हकीकत की) बड़ी ही निशानियां है और (फिर देखो) जमीन की सतह इस तरह बनाई गई है कि उसमें एक दूसरे से करीब (आबादी के) कतआत बन गए और अंगूरों के बाग गल्ले की खेतियां, खजूरों के झुंड पैदा हो गए। इन पेड़ों में बाज पेड़ ज्यादा टहनियों वाले हैं बाज गहरे और अगरचे सबको एक ही तरह के पानी से सींचा जाता है लेकिन फल एक तरह के नहीं। हमने बाज पेड़ों को बाज पेड़ों पर फलों के मजा में बरतरी दे दी। बिला शुब्हा समझदारों के लिए इसमें (मारफत हकीकत की) बड़ी ही निशानियां हैं।
‘‘और (देखो) हमने जमीन मे तुम्हें ताकत से तसर्रूफ के साथ जगह दी और जिंदगी के तमाम सामान पैदा कर दिए (मगर अफसोस) बहुत कम ऐसा होता है कि तुम नेमते इलाही के शुक्रगुजार हो।’’ समुन्दर की तरफ नजर उठाओ, इसकी सतह पर जहाज तैर रहे हैं। तह में मछलियां उछल रही है, गहराई में मरजान और मोती नशोनुमा पा रहे हैं। ‘‘और (देखो) यह उसी की कारफरमाई है कि उसने समुन्दर तुम्हारे लिए मुसख्खर कर दिया। ताकि अपनी गिजा के लिए तरोताजा गोश्त हासिल करो और जेवर की चीजे निकालो जिन्हें (खुश नाई) के लिए पहनते हो और तुम देखते हो कि जहाज समुन्दर में मौजे चीरते हुए चले जा रहे हैं और सैर व सयाहत के जरिए अल्लाह का फजल तलाश करो ताकि उसकी नेमत के शुक्रगुजार हो।
हैवानात को देखो, जमीन के चार पाए, फिजा के परिंदे, पानी की मछलियां, सब इसीलिए हैं कि अपने अपने वजूद से हमें फायदा पहुंचाएं, गिजा के लिए उनका दूध और गोश्त, सवारी के लिए उनकी पीछ, हिफाजत के लिए उनकी पासबानी, पहनने के लिए उनकी खाल और ऊन, बरतने के लिए उनके जिस्म की हड्डियां तक मुफीद हैं।
‘‘और चार पाए पैदा कर दिए जिनमें तुम्हारे लिए जाड़े का सामान और तरह-तरह के मुनाफे हैं और उनसे तुम अपनी गिजा भी हासिल करते हो जब उनके गोल शाम को चरकर वापस आते हैं और जब चरागाहों के लिए निकलते हैं तो (देखो) उनके मंजर मैने तुम्हारे लिए खुशनुमाई रख दी है और उन्हीं में वह जानवर भी हैं जो तुम्हारा बोझ उठाकर उन (दूर दराज) शहरों तक पहुंचा देते हैं जहां तक बगैर सख्त मशक्कत के नहीं पहुंच सकते थे। बिला शुब्हा तुम्हारा परवरदिगार बड़ा ही शफकत रखने वाला और साहबे रहमत है और (देखो) घोड़े, खच्चर, गधे पैदा किए गए ताकि तुम उनसे सवारी का काम लो और खुशनुमाई का भी मूजिब हो। वह इसी तरह (तरह-तरह की चीजें) पैदा करता है जिनका तुम्हें इल्म नहीं।’’
‘‘ और चार पायो के वजूद में तुम्हारे लिए (फहम व बसीरत की) बड़ी ही इबरत है उन्हीं जानवरों के जिस्म में हम खून और कसाफतों के बीच पाक-साफ दूध पैदा कर देते हैं जो पीने वालों के लिए बेगुल व गश मशरूब होता है।’’
‘‘और (देखो) अल्लाह ने तुम्हारे घरों को तुम्हारे लिए सकूनत की जगह बनाया और (जो लोग शहरों में नहीं बसते, उनके लिए ऐसा सामान कर दिया कि) चार पायो की खाल के खेमे बना दिए, सफर और अकामत दोनों हालतों में उन्हें हल्का पाते हो। इसी तरह जानवरों की ऊन, रोओ और बालों की तरह-तरह की चीजें पैदा कर दी जिनसे एक खास वक्त तक तुम्हें फायदा पहुंचता है।’’
एक इंसान कितनी ही महदूद और गैर मुतमद्दुन जिंदगी रखता हो लेकिन इस हकीकत से बेखबर नहीं हो सकता कि इसका गर्द व पेश उसे फायदा पहुंचा रहा है, एक लकड़हारा भी अपने झोपड़े में बैठा हुआ नजर उठाता है तो गोया अपने एहसास के लिए बेहतर ताबीर न पाए लेकिन यह हकीकत जरूर महसूस कर लेता है। वह जब बीमार होता है तो जंगल की जड़ी बूटियां खा लेता है, धूप तेज होती है तो पेड़ों के साये में बैठ जाता है, बेकार होता है तो पत्तो की सरसब्जी और फूलों की खुशनुमाई से आंखे सेकने लगता है। फिर यही पेड़ जो अपनी शादाबी में उसे फल बख्शते हैं पुख्तगी में लकड़ी के तख्ते बन जाते हैं, कुुहनगी में आग के शोले भड़का देते हैं।
एक ही मखलूक है जो अपने मंजर से नुजहत व सरूर बख्शती है, अपनी बू से हवा को मोअत्तर करती है अपने फल में तरह-तरह की गिजाएं रखती है, अपनी लकड़ी से सामान मुहैया करती है और फिर खुश्क हो जाती है तो उसके जलाने से आग भड़कती है, चूल्हे गर्म करती है, मौसम को मोतदिल बनाती है और अपनी हरारत से बेशुमार चीजों के पकने पिघलने और तपने का जरिया बनती है। ‘‘ (देखो) वह कारफरमाए कुदरत जिसने सरसब्ज पेड़ से तुम्हारे लिए आग पैदा कर दी। अब तुम उसी से (अपने चूल्हों की) आग सुलगा लेते हो।
और फिर यह वह फायदे हैं जो तुम्हें अपनी जगह मखसूस हो रहे हैं लेकिन कौन कह सकता है कि फितरत ने यह तमाम चीजें किन-किन कामों और किन-किन मसलेहतों के लिए पैदा की है और कारफरमाए आलम कारगाहे हस्ती के बनने और संवारने के लिए उनसे क्या-क्या काम नहीं ले रहा है। ‘‘और तुम्हारा परवरदिगार (इस कार जार हस्ती की कारफरमाइयों के लिए) जो फौजे रखता है उनका हाल उसके सिवा कौन जानता है?’’ फिर यह हकीकत भी पेशेनजर रहे कि फितरत ने कायनाते हस्ती के इफादा व फैजान का निजाम कुछ इस तरह बनाया है कि वह एक साथ, हर मखलूक को यकसां तौर पर नफा पहुंचाता और हर मखलूक की यकसां तौर पर रियायत मलहूज रखता है। अगर एक इंसान अपने आलीशान महल में बैठकर महसूस करता है कि तमाम कारखाना हस्ती सिर्फ उसी की कारबरारियों के लिए हैं और कौन है जो उसे झुटलाने की जुर्रत कर सकता है, क्या फिल हकीकत सूरज इसलिए नहीं है कि उसके लिए हरात पहुंचाए?
क्या बारिश इसलिए नहीं है कि उसके लिए रतूबत मुहैया करे? क्या हवा इस लिए नहीं है कि उसकी नाक तक शकर की बू पहुंचा दे? क्या जमीन इसलिए नहीं है कि हर मौसम और हर हालत के मुताबिक उसके लिए मकाम व मंजिल बने? दरअस्ल फितरत की बख्शाइशों का कानून कुछ ऐसा आम और हमागीर वाके हुआ है कि वह एक ही वक्त में एक ही तरीके से एक ही निजाम के मातहत, हर मखलूक की निगहदाश्त करता और हर मखलूक को यकसां तौर पर फायदा उठाने का मौका देता है। यहां तक कि हर वजूद अपनी जगह महसूस कर सकता है कि यह पूरा कारखाना-ए-आलम सिर्फ उसी की कामजूइयों और आसाइशों के लिए सरगर्म कार है। ‘‘और जमीन के तमाम जानवर और (परदार) बाजुओं से उड़ने वाले तमाम परिंद दरअस्ल तुम्हारी ही तरह उम्मते हैं। (अब्दुल अजीज)
——-बशुक्रिया: ज़दीद मरकज़