अल्लाह तआला के नामों के बारे में बुजुर्गों ने कहा है कि अल्लाह त’आला के तीन हजार नाम हैं। एक हजार अल्लाह के सिवा कोई नहीं जानता और एक हजार वे हैं, जो फरिश्तों के सिवा कोई नहीं जानता और एक हजार वे जो पैगम्बरों से हम तक पहुंचे हैं, जिनमें से तीन सौ तौरेत में, तीन सौ जबूर में, तीन सौ इन्जील में
मशहूर है कि कुरआन में 99 (निन्यानवें) नाम ऐसे हैं, जो सब पर जाहिर हैं और एक नाम ऐसा है, जो गुप्त रखा है जो ‘इस्मे आजम’ है। विभिन्न सहाबए अकराम ने इसे ‘इस्मे आजम’ के जो संकेत दिए हैं, वे किसी एक नाम से नहीं हैं।
मुख्तलिफ नामों को इस्मे आजम बताया गया है, जिससे इस फैसले पर पहुंचना आसान है कि हर नाम ‘इस्मे आजम’ है और हर नाम किसी की जात से सम्बद्ध होकर वह नाम उसके लिए ‘इस्मे आजम’ का काम देता है। और खुदा के सब नाम अच्छे ही अच्छे हैं, तो उसको उसके नामों से पुकारा करो।
हदीस शरीफ में आया है कि रसूल-ए-पाक सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इरशाद फरमाया कि-
अल्लाह त’आला के ‘अस्मा-ए-हुस्ना’ जिनके साथ हमें दुआ मांगने का हुक्म दिया गया है, 99 वें हैं। जो शख्स इनको याद कर लेगा और उनको पढ़ता रहेगा वह जन्नत में जाएगा।
इस हदीस में जिन 99 नामों का जिक्र है, उनमें से जियादातर नाम कुरआन करीम में दिए गए हैं। केवल कुछ नाम ऐसे हैं, जो बिल्कुल उसी रूप में कुरआन में नहीं हैं, लेकिन उनका भी इशारा, जिससे वे नाम निकले हैं, क़ुरआन में दिए हैं, जैसे ‘मुन्तक़िम’ तो क़ुरआन में नहीं है मगर ‘ज़ुनतिक़ाम’ क़ुरआन में आया है।
अल्लाह त’आला के ‘अस्मा-ए-हुस्ना’ जिनका जिक्र आयत ‘व लिल्लाहिल अस्मा उल हुस्ना फदऊहो बिहा’ (और अल्लाह के सब ही नाम अच्छे हैं, उन नामों से उसको पुकारो) में आया है, इस निन्यानवें नामों पर मुशतमिल नहीं हैं, बल्कि इनके जियादा और नाम क़ुरआन व हदीस में आए हैं, उनके साथ दुआ करनी चाहिए, लेकिन अपनी ओर से कोई ऐसा नाम जो क़ुरआन व हदीस में नहीं आया है, नाम के तौर पर नहीं ले सकते अगरचे उसका अर्थ ठीक भी हो।