इस दुनिया में कई कौमें आयी और गयी हैं अल्लाह सुब्हाना व तआला ने हर एक को उस वक़्त के हिसाब से बहुत सारी सहूलतें फ़राहम किया और फ़ज़ीलत भी अता किया है । हम को भी इस दुनिया में भेजा और ख़ैर उम्मत यानी सबसे बेहतर बनाया लेकिन इसके बावजूद हम इसका हक़ अदा करने की कोशिश बिलकुल नहीं कर रहे हैं जबकि हरतरह का सुकून व चैन हमें दिया गया। दीगर क़ौमों की बनिसबत हमें बेहिसाब नेअमतें हासिल हुई हैं । कम मेहनत के बाद भी नेअमतों की फ़रावानी , उम्मते मुहम्मदिया ( स०अ०व्०) को जो शर्फ़ , फ़ज़ीलत , मुक़ाम और मर्तबा हासिल हुआ वो सबसे बेहतर और अफ़ज़ल है।
क्योंकि ये जो एज़ाज़ हमको मिला है वो किसी क़ौम को नहीं मिला। इस लिए हम तमाम को इस का ख़्याल रखकर ज़िंदगी बसर करना है और साथ ही साथ इस दुनिया की हर बुराई से बचना भी चाहीए । चुनांचे आज इस उम्मते मुहम्मदिया के शर्फ़ व फ़ज़ीलत के मुताल्लिक़ चंद अहादीस तहरीर किए जाएंगे ।
* बुख़ारी शरीफ़ वु मुस्लिम शरीफ़ में हज़रत अबदुल्लाह बिन अब्बास रज़ी० से रिवायत है कि हुज़ूर नबी अकरम स्०अ०व्० ने फ़रमाया : मुझ पर तमाम उम्मतें पेश की गईं पस एक नबी गुज़रने लगे और उनके साथ उनकी उम्मत थी , एक नबी ऐसे भी गुज़रे कि उनके साथ कुछ अफ़राद थे , एक नबी सिर्फ़ तन्हा , मैं नज़र दौड़ाया तो एक बड़ी जमात दिखाई दी मैंने पूछा : आए जिब्रईल अलैहिस्सलाम क्या ये मेरी उम्मत है ? अर्ज़ क्या : नहीं , बल्कि आप उफ़ुक़ की जानिब तवज्जा फ़रमाएं , मैंने देखा तो वो बहुत बड़ी जमात थी ।
अर्ज़ किया : ये आपकी उम्मत है और ये जो सत्तर हज़ार उनके आगे हैं उनके लिए ना हिसाब है ना अज़ाब मैने पूछा किस वजह से ? उन्होंने कहा : ये लोग दाग़ नहीं लगवाते थे , गैर शरई झाड़ फूंक नहीं करते थे , शगुन भी नहीं लेते थे और अपने रब पर मुकम्मल भरोसा रखते थे ।
हज़रत उकाशा बिन मुहसिन खड़े होकर अर्ज़ किए : या नबी अल्लाह (स०अ०व०) अल्लाह तआला से दुआ कीजिए कि वो मुझे भी उन लोगों में शामिल फ़र्मा ले । आप ( स०अ०व्०) फ़रमाए : ऐ अल्लाह तआला इसे उन लोगों में शामिल फ़रमा । फिर दूसरा आदमी खड़ा होकर अर्ज़ किया : यह नबी अल्लाह ( स०अ०व्०) अल्लाह तआला से दुआ कीजिए कि मुझे भी इनमें शामिल फ़र्मा ले । आप ( स०अ०व०) फ़रमाए : उकाशा तुम पर सबक़त ले गए ( मुत्तफ़िक़ अलैहि )।
* तिबरानी में हज़रत उमर बिन ख़त्ताब रज़ी० से मर्वी है कि हुज़ूर नबी अकरम स०अ०व०) ने फ़रमाया है : जन्नत तमाम अंबिया अलैहिस्सलाम पर उस वक़्त तक हराम कर दी गई है जब तक मैं इसमें दाख़िल ना हो जाऊं और तमाम उम्मतों पर उस वक़्त हराम है जब तक कि मेरी उम्मत इस में दाख़िल ना हो जाए (तिबरानी) ।
* मुस्लिम और नसाई में हज़रत अब्बू हुरैरा रज़ी० से रिवायत है कि हुज़ूर नबी अकरम (स्०अ०व्०) ने फ़रमाया : अल्लाह तआला ने मेरी उम्मत से उनकी दिल की बातों यानी वसाविस् ( वसवसा) व ख़्यालात को माफ़ फ़रमा दिया है जब तक वो इस पर अमल ना करे यह ज़बान से ना कहे (मुस्लिम , नसाई और इब्ने माजा )।
* अ॔हमद में हज़रत अबू ज़र और हज़रत अबू दरदा रज़ी० से मर्वी एक रिवायत है कि हुज़ूर नबी अकरम स०अ० व० ने फ़रमाया : मैं क़यामत के रोज़ ज़रूर अपनी उम्मत को दूसरी उम्मतों के दरमियान पहचान लूंगा । सहाबा ने अर्ज़ किया : यह रसुलुल्लाह (स०अ०व०) ! आप कैसे पहचानेंगे ? फ़रमाया मैं उन्हें पहचान लूंगा कि इनका नामा -ए-आमाल दाएं हाथ में दिया जायेगा और उनकी पेशानियों पर सजदों का असर होगा और मैं उन्हें उनके नूर से पहचान लूंगा जो उनके आगे आगे दौड़ रहा होगा (अ॔हमद)।
* तिबरानी में हज़रत अबू उमामा बाहली रज़ी० रिवायत फ़रमाते हैं कि क़यामत के रोज़ रौशन पेशानियों और चमकते हाथ पांव वाले लोगों की एक जमात नमूदार होगी जो उफ़ुक़ पर छा जाएगी इनका नूर सूरज की तरह होगा पस एक निदा देने वाला निदा देगा नबी उम्मी पस इस निदा पर हर नबी मुतवज्जा होंगे लेकिन कहा जायेगा मुहम्मद स०अ०व० और उनकी उम्मत है जो जन्नत में दाख़िल होंगे उन पर कोई हिसाब और अज़ाब नहीं होगा फिर इस तरह की एक और जमात नमूदार होगी जिनकी पेशानीयां और हाथ पांव चमक रहे होंगे ।
इनका नूर चौधवीं चांद की तरह होगा और इनका नूर उफ़ुक़ पर छा जाएगा पस फिर निदा देने वाला निदा देगा और कहेगा नबी ए उम्मी पस इस निदा पर हर नबी मुतवज्जा हो जाएंगे लेकिन कहा जाएगा : इस निदा से मुराद हुज़ूर नबी अकरम ( स०अ०व०) और उनकी उम्मत है पस वो बगैर हिसाब व अज़ाब जन्नत में दाख़िल हो जाएंगे (तिबरानी)
* अब इन तमाम मज़कूरा रिवायात के पढ़ने के बाद हमें ग़ौर व फ़िक्र करने की ज़रूरत है कि हमने अब तक क्या किया है जब कि हमें क्या करना चाहीए था । हम को हुक्म दिया गया था कि आमाल ए सालेहा की कसरत और आमाल-ए-सइआ से इजतिनाब करते हुए अल्लाह और रसुलूल्लाह ( स०अ०व्०) को राज़ी करने की कोशिश करें लेकिन अभी तक हमने ऐसा नहीं किया है ।
अगर हम आज से ही अपने आप को एक बेहतर उम्मत में शामिल करने के कोशिश करें तो यकीनन इसका फ़ायदा ज़रूर होगा और इसकी वजह से हमें मैदान-ए-हश्र में कामयाबी और सरफ़राज़ी हासिल हो जाएगी ।खुलासा कलाम यही है कि रब पर कामिल भरोसा रखना उम्मते मुहम्मदिया ( स०अ०व०) का तरह इम्तियाज़ है ।
अल्लाह तआला से दुआ है कि हम तमाम को अल्लाह तआला पर कामिल भरोसा रखने और ज़ख़ीरा आख़िरत तैयार करने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए । …. आमीन (सैयद ज़ुबैर हाश्मी , उस्ताद जामिआ निज़ामीया)