(मौलाना जुल्फिकार अहमद नक्शबंदी) नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने इरशाद फरमाया है कि जो शख्स निकाह पर कुदरत न रखता हो उसे रोजा रखना चाहिए। क्योंकि रोजा उसके लिए वजा है। वजा का मतलब शहवत को तोड़ने वाला या खत्म करने वाला है। रोजा रखने का मकसूद भूका रहना यानी पेट खाली रखना है जिससे तकब्बुर और शहवत दोनों का तोड़ होता है।
एक बार हजरत बायजीद बस्तामी (रह0) फाका के फजायल बयान फरमा रहे थे कि किसी ने पूछा – हजरत! यह भी कोई फजीलत की चीज है। आपने फरमाया – हां, अगर फिरऔन को फाका से साबका पड़ता तो वह खुदाई का दावा न करता।’’ इससे मालूूम हुआ कि यह खरमस्तियां सब पेट भरा होने की बिना पर होती हैं।
जिस नौजवान को पहले रोजा रखने की आदत न हो उसे चाहिए कि हर महीने की तेरह, चैदह, पन्द्रह तारीख को अयामे बीज के रोजे रखें। जब आदत पुख्ता हो जाए और शहवत पूरी तरह न टूटे तो फिर पीर और जुमेरात के दो रोजे रखें। फिर जब यह आदत भी पक्की हो जाए और मजीद रोजा रखने की जरूरत महसूस हो तो सोम दाऊदी रखे। यानी एक दिन रोजा और दूसरे दिन इफ्तार। यह मामूल सब से बेहतर है। यह बात याद रहे कि पहले दिन रोजा रखने से शहवत पर कोई असर नहीं पड़ता जबकि मुसलसल कई दिन रोजे का मामूल बना लेने से शहवत टूट जाती है। फिर एक काम यह भी करे कि सेहर और इफ्तार में पेट भरकर न खाए वरना मकसद फौत हो जाएगा।
नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) का इरशाद है- वजू मोमिन का अस्लहा है। लिहाजा शैतानी हमले से बचने के लिए वजू बेहतरीन इलाज है। नौजवान लोग अगर बावजू रहने को अपनी आदत बना लें तो इबादत करना उनके लिए आसान हो जाए। वजू से इंसान को बातिनी जमइयत भी नसीब होती है और परेशान ख्याली से निजात मिल जाती है।
शहवत पर कंट्रोल करने का एक बेहतरीन इलाज यह भी है कि बारगाहे खुदावंदी में फरियाद की जाए कि मेरे मौला! मैं कमजोर हूं, मेरी मदद फरमा। मुझे गुनाह में मुलव्विस होने से महफूज फरमा। नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) से बहुत सी दुआएं मंकूल है। हजरत अबू उमामा (रजि0) से मरवी है कि नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) के पास एक नौजवान आया और उसने जिना की इजाजत तलब की।
सहाबा ने इस सवाल को सख्त नापसंद किया और उसे डांटा। नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने उस नौजवान को अपने करीब बुलाकर फरमाया क्या तुम अपनी मां से किसी का जिना करना पसंद करते हो। उसने कहा- नहीं। फिर आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने पूछा क्या तुम अपनी बेटी के साथ किसी का जिना करना पसंद करते हो? नौजवान ने कहा- नहीं। फिर आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने पूछा- क्या तुम अपनी बहन के साथ किसी का जिना करना पसंद करोगे? नौजवान ने कहा- नहीं। आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने पूछा क्या अपनी फूफी के साथ जिना करना पसंद करोगे?उसने कहा- नहीं। आपने (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने फरमाया- क्या अपनी खाला के साथ किसी का जिना करना पसंद करोगे? उस नौजवान ने कहा- नहीं।
फिर आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने इरशाद फरमाया- तुम जिससे जिना करोगे वह किसी की मां होगी, बेटी होगी, बीवी होगी, फूफी होगी, खाला होगी। जिस तरह तुम यह पसंद नहीं करते, इसी तरह दूसरे लोग भी जिना को अपनी महरम औरतों के लिए पसंद नहीं करते। इसके बाद आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने अपना दस्ते शफकत उस नौजवान के सीने पर रखकर फरमाया- ऐ अल्लाह! इसके गुनाह माफ फरमा, दिल को पाक फरमा और उसकी शर्मगाह की हिफाजत फरमा।
इस दुआ का असर यह हुआ कि उस नौजवान के दिल में फिर कभी जिना का ख्याल भी नहीं पैदा हुआ।
हदीस में आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) से और भी दुआएं मंकूल है उनको मांगने से बहुत फायदा होता है। इसलिए आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने दुआ फरमाई कि ऐ अल्लाह! मैं तुझ से हिदायत, तकवा, पाकदामनी और गना का सवाल करता हूं। (मुस्लिम, मिश्कात) कभी कभी आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) यह दुआ फरमाते कि- ऐ अल्लाह! मैं तुझ से सेहत, पाकदामनी, खूबी और तकदीर पर राजी रहने की दरख्वास्त करता हूं। (मिश्कात) कभी यह दुआ फरमाते- ऐ अल्लाह! मुझे सीधे रास्ते की रहनुमाई फरमा और नफ्स की बुराई से अपनी पनाह अता फरमा। (तिरमिजी, मिश्कात) बाज हदीस में यह दुआ भी मंकूल है- ऐ अल्लाह! मैं बेअखलाक, बुरेआमाल और बुरी ख्वाहिशात से तेरी पनाह चाहता हूं। (तिरमिजी) बाज हदीस में यह दुआ भी आई है- ऐ अल्लाह! मैं औरतों के फितने से तेरी पनाह चाहता हूं।
सल्फे सालेहीन के हालाते जिंदगी से पता चलता है कि वह भी कुबूलियत दुआ के अवकात में शहवत के फितने से अल्लाह तआला की पनाह मांगते थे। हजरत बायजीद बस्तामी (रह0) पर एक रात शहवत का गलबा हुआ। आपने दो रिकात नफिल पढ़कर अल्लाह तआला से दुआ मांगी। आप फरमाते है कि इसके बाद मरे लिए औरत और दीवार में कोई फर्क न रहा। यह बात जेहननशीन रहे कि दुआएं पढ़ने से कुबूल नहीं होती बल्कि दुआएं मांगने से कुबूल होती है।
दुआ मांगने का मतलब यह है कि इंसान सरापा दुआ बन जाए। आंख नहीं रोई तो दिल रो रहा हो, दिल की गहराई से फरियाद निकल रही हो कि ऐ मेरे मालिक! मैं कमजोर हूं तू कव्वी है हर कमजोर कव्वी को मदद के लिए पुकारता है। लिहाजा मैं तुझ से फरियाद करता हूं कि मुझे औरत के फितने से महफूज फरमा और मेरी शहवत को मेरे काबू में कर दे। फिर इसके नतीजे देखिए।
सच्चे परवरदिगार का सच्चा कुरआन गवाही दे रहा है- कौन है जो बेकरार की दुआ कबूल करता है जब वह उसको पुकारे।
——–बशुक्रिया: जदीद मरकज़