अल्लाह बेहतर तदबीर करने वाला

और यहूदीयों ने भी (मसीह अलैहिस्सलाम को क़तल करने की) खु़फ़ीया तदबीर की और (मसीह अलैहिस्सलाम को बचाने के लिए) अल्लाह ने भी खु़फ़ीया तदबीर की और अल्लाह सब से बेहतर (और मव‌सर) खु़फ़ीया तदबीर करने वाला है। (सूरा आल इमरान।५४)

यहूदीयों ने हज़रत मसीह अलैहिस्सलाम के क़त्ल की जो मक्काराना साज़िश की थी, अल्लाह ताआला की तरफ़ से उसको नाकाम बनाने की जो तदबीर की गई उसे मकर से ताबीर फ़र्मा दिया, जिस में कोई नुक़्स नहीं है।

क्यूंकि तक़रीबन हर ज़बान में बिला इस्तिस्ना‍ -ए‍- एसे मुश्तर्क अलफ़ाज़ पाए जाते हैं, जो मुतअद्दिद मआनी पर दलालत करते हैं और एहल-ए-ज़बान इन अलफ़ाज़ को बिलाताम्मुल उनके मुख़्तलिफ़ माअनों में इस्तेमाल करते रहते हैं, लेकिन जब वही लफ़्ज़ किसी दूसरी ज़बान में इस्तेमाल होने लगता है तो वो अपने असली मुख़्तलिफ़ माअनों में से किसी एक मानी में मशहूर हो जाता है।

अब जब हम उसे उसकी असली ज़बान में मुस्तामिल होते हुए पाते हैं तो इसका वही एक मानी जो हमारे ज़हन नशीन होचुका होता है, चस्पाँ करने की कोशिश करते हैं और जब वो चस्पाँ नहीं होता तो परेशान हो जाते हैं।

उसकी एक मिसाल लफ़्ज़ मकर है, इस का मानी हीलासाज़ी भी है और यही लफ़्ज़ अरबी में सिर्फ़ तदबीर करने और किसी की पिनहां साज़िश को खु़फ़ीया तरीक़े से नाकाम बना देने के मानी में भी इस्तेमाल किया जाता है।

लेकिन उर्दू में हम उस लफ़्ज़ मकर को सिर्फ़ धोका दही और फ़रेब कारी के मानी में इस्तेमाल करते हैं। फिर जब इस फे़अल की निसबत ज़ात बारी की तरफ़ होती है तो हमारा ज़हन बिलावजह तरह तरह के शकूक-ओ-शुबहात की आमाजगाह बन जाता है, हालाँकि जब इस का फ़ाइल वो ज़ात मुक़द्दस हो जो हर ऐब, हर नुक़्स और नाज़ेबा फे़अल से पाक है तो हम लफ़्ज़ मकर का मानी सिर्फ़ तदबीर या वो खु़फ़ीया तरीक़ा जिस से दुश्मनाँ हक़ के शैतानी मंसूबों को ख़ाक में मिलाना मक़सूद होता है, करेंगे। इस तरह अब किसी किस्म का शक बाक़ी नहीं रहता।