बेशक जो लोग अपने रब को देखे बगैर डरते हैं, उन के लिए (अल्लाह की) मग़फ़िरत और बडा अज्र है। तुम अपनी बात आहिस्ता कहो या बुलंद आवाज़ से (इस से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता) बेशक वो ख़ूब जानने वाला है जो कुछ सीनों में है। (नादानो!) क्या वो नहीं जानता (बंदों के अहवाल को) जिस ने (उन्हें) पैदा किया है वो बहुत अंदर कि चिज देखने वाला हर चीज़ से बाख़बर है। (सूरत मलिक)
अल्लाह ताला से डरने वालों को दो इनामों से नवाज़ा जाता है, एक तो ये कि अगर इंसानी कमज़ोरी के सबब उन से कोई गुनाह हो जाए तो अल्लाह ताला इसे माफ कर देता है और जो नेक काम उन्हों ने किए हैं, उन पर उन्हें बहुत बडा अज्र कबीर दिया जाता है।
कोई छुप कर बात करे या बुलंद आवाज़ से, अल्लाह ताला के सामने सब बराबर हैं। वो सब को जानता है, बल्कि तुम्हारे दिल में जो ख़्यालात ओर वीचार अनगड़ाईयां ले रहे हैं, इनहें भी वो जानता है। ईमान वाले इस हक़ीक़त को मानते हैं और काफिर लोग इसे नही मानतें।
इस आयत से काफिरों की इस ग़लतफ़हमी को खत्म किया जा रहा है कि अल्लाह ताला को उन के करतुतों कि खबर नहीं। फ़र्मा दिया कायनात की हर चीज़ का जब वो ख़ालिक़ है, हर चीज़ में हालात के मुताबिक मुख़्तलिफ़ सलाहीयतें, खासियतें और असरात उसी ने रखे हैं तो फिर ये कैसे मान लिया जाए कि उसे ख़बर भी ना हो कि कोई क्या कर रहा है, इस की दी हुई ताकतों से किस तरह काम ले रहा है, ये बडी हि ताज्जुब की बात है। सहिह अकल उस को तस्लीम नहीं करती।