अवाम की अक्सरीयत मज़हबी इंतेहापसंदी की मोख़ालिफ़

हर क़ौम की अपनी एक मुनफ़रiद शनाख़्त होती है। कोई क़ौम अपने इन्फ़िरादी तशख़्ख़ुस को खो दीती है तो इस की तहज़ीब भी ख़तम हो जाती है। हिंदुस्तान की शनाख़्त उस की मिली जुली तहज़ीब से है। इन ख़्यालात का इज़हार डाक्टर आबिद हुसैन साबिक़ सफ़ीर हिंद बराए अमरीका ने आज यहां सालार जंग म्यूज़ीयम ऑडीटोरियम में रूहानियत सैकूलर इज़म और हिंदुस्तान की मुशतर्का तहज़ीब उर्दू के हवाला से क़ुली क़ुतुब शाह तौसीई ख़ुतबा देते हुए किया जिस का एहतिमाम शोबा-ए-उर्दू यूनीवर्सिटी आफ़ हैदराबाद और क़ौमी कौंसल बराए फ़रोग़ उर्दू ज़बान ने मुशतर्का तौर पर किया।

तक़रीब की सदारत प्रोफेसर रामा कृष्णा रामा स्वामी वाइस चांसलर यूनीवर्सिटी आफ़ हैदराबाद ने की जबकि प्रोफेसर सी एच हनुमंत राउ चांसलर यूनीवर्सिटी आफ़ हैदराबाद ने मेहमान ख़ुसूसी की हैसियत से शिरकत की। डाक्टर आबिद हुसैन ने अपने ख़ुतबा में कहा कि अगर हम हिंदुस्तान की मिली जुली तहज़ीब को हमारी ज़िन्दगियों से दूर करदें तो हमारी पहचान भी इसी तरह कहीं गुम होजाएगी जैसे मिस्र-ओ-रुम की तहज़ीबी शनाख़्त ख़तम होगई है। इस मुल्क में हिन्दू मुस्लिम इत्तिहाद की सताइश दुनिया भर में की जाती रही।अरबों तुर्कों और ईरानियों से हिंदुस्तानियों ने बहुत कुछ सीखा।

हिंदुस्तानियों और मुस्लमानों की यकजाई से बहुत सी नई चीज़ें पैदा हुईं जिन में ज़बान उर्दू भी शामिल है। एक दूसरे के साथ रहते हुए हम ने अपने सारे झगड़े ख़तम किए और एक होने की ताक़त पैदा की । आज़ादी मुल्क में उर्दू शोरा-ने भी नाक़ाबिल फ़रामोश रोल अदा किया। उन्हों ने कहा कि ये एक हक़ीक़त भी है कि हमारे इस इत्तिहाद में रखने भी डाले गए। इन का ये इस्तिदलाल था कि ये ज़माना जिद्दत पसंदी का है जिस पर गामज़न होते हुए हम तरक़्क़ी की मनाज़िल तए कर सकते हैं।

यही वजह है कि हिंदुस्तानी दस्तूर में तमाम शहरियों को मसावी हुक़ूक़ अता किए गए। उन्हों ने कहा कि आज ज़रूरत इस बात की है कि मज़हबी जुनून को कम किया जाय और आगे बढ़ा जाय। ये भी सहीह है कि कुछ लोगों ने मज़हबी इंतिहापसंदी का मुज़ाहरा किया मगर ख़ुशी की बात ये है कि एसे लोगों की अक्सरियत है जो उस की नफ़ी करते हैं। उन्हों ने कहा कि गुजरात फ़सादात मुक़द्दमा के जिस जज ने चीफ मिनिस्टर के ख़िलाफ़ पहला फैसला दिया वो कोई मुस्लमान नहीं बल्कि ब्रहमन थे।

गुजरात क़तल-ए-आम पर पार्ल्यमंट 70 दिनों तक नहीं चल पाई जबकि उस वक़्त पार्ल्यमंट में मुस्लमान अरकान की तादाद बहुत ही क़लील थी। डाक्टर आबिद हुसैन ने कहा कि हिंदुस्तान की ये ख़ूबी है कि जहां कुछ ज़ालिम हैं वहीं मज़लूमों की हिमायत करने वालों की तादाद ज़्यादा है।

उन्हों ने कहा कि मज़हब का कट्टरपन दोनों तरफ़ से है जो ना ही रूहानियत है और ना ही इंसानियत है। उन्हों ने कहा कि हमें तास्सुब से परे(उपर) उठना होगा। प्रोफेसर बैग एहसास ने ख़ैर मुक़दम किया और मेहमानों का तआरुफ़ पेश किया।