बालासोर ( उड़ीसा ) 25 सितंबर ( पी टी आई ) हिंदूस्तान ने आज इंतिहाई असरी टैक्नालोजी से तैय्यार करदा न्यूकलीयर सलाहीयतों के हामिल शौर्य मीज़ाईल की परवाज़ का तजुर्बा क्या । ये तजुर्बा उड़ीसा में चांदी पूरा साहिल के क़रीब किया गया । ज़मीन से ज़मीन पर वार करने वाले इस मीज़ाईल को लॉन्च कामपलकस 3 से 14.28 बजे दाग़ा गया । महिकमा दिफ़ा के ज़राए ने ये बात बताई । महिकमा दिफ़ा के एक ओहदेदार ने बताया कि डीफ़ैंस रिसर्च डीवलपमनट आर्गेनाईज़ेशन ( डी आर डी ओ ) की जानिब से टैक्नालोजी को बेहतर से बेहतर बनाने की जो मुहिम शुरू की गई है इसी के हिस्से के तौर पर इस मीज़ाईल की परवाज़ का तजुर्बा किया गया है । ये इस मीज़ाईल की दूसरी तजुर्बाती परवाज़ थी । इस से क़बल इस मीज़ाईल की कामयाब तजुर्बाती परवाज़ 12 नवंबर 2008 को बालासोर से ही की गई थी । ओहदेदार ने बताया कि ये मीज़ाईल हालाँकि इंतिहाई असरी टैक्नालोजी वाला है लेकिन ये अपनी कार्यवाईयों में इंतिहाई आसान है और इस का मीनटीननस भी बहुत कम है । इस मीज़ाईल से आसानी से निमटा जा सकता है आसानी के साथ उस की मुंतक़ली अमल में लाई जा सकती है और उसे ज़्यादा अर्सा तक कारकरद रखने बड़ा सानी के साथ कनस्तर में रखा जा सकता है । इस मीज़ाईल को ऐसे टैक्नालोजी से तैय्यार किया गया है जिस की मदद से ये दस्तयाब मीज़ाईल शिकन डीफ़ैंस निज़ाम से बचने के ज़्यादा इमकानात रखता है । ये इंतिहाई असरी मीज़ाईल एक टन तक न्यूकलीयर और रिवायती जंगी माद्दा 750 कीलोमीटर तक मुंतक़िल करसकता है । इस प्राजैक्ट से वाबस्ता एक दिफ़ाई साईंसदान ने बताया कि शौर्य मीज़ाईल को इस अंदाज़ से डेज़ आईन किया गया है कि उसे ज़ेर-ए-आब मुक़ाम से भी आसानी से लॉन्च किया जा सके । जिस कनस्तर में इस मीज़ाईल को रखा जाता है वो गैस से भरा होता है और उसे आसानी के साथ आबदोज़ से जोड़ा जा सकता है । उन्हों ने कहा कि ज़ेर-ए-आब न्यूकलीयर तजुर्बा मुकम्मल काबिल-ए-भरोसा होना चाहीए और इस के लिए इंतिहाई असरी टैक्नालोजी का इस्तिमाल किया गया है । एहतियाती इक़दाम के तौर पर इस तजुर्बा से क़बल बालासोर ज़िला इंतिज़ामीया की जानिब से लॉन्च पेड से अंदरून दो कीलोमीटर इलाक़ा में रहने वाले तक़रीबन चार सौ ख़ानदानों का आरिज़ी तख़लिया करवाया गया था