नुमाइंदा ख़ुसूसी जब कभी बाअसर (ताकतवर)शख्सियतों , सियासतदानों , पुलिस ओहदेदारों और दौलत मंदों की औलाद के साथ मामूली वाक़िया भी पेश आता है तो पुलिस एसी हरकत में आजाती है जैसे वो कोई रोबोट है और इस का बटन किसी और के हाथों में हो और ये रोबोट उस शख़्स के इशारा पर अपनी हरकत जारी रखे हुए है जिस के हाथ में इस का बटन है । यानी दौलत मंदों को पहूंचने वाली मामूली सी चोट पुलिस को बर्दाश्त नहीं होती और एसा लगता है कि अमीरों के हर ज़ख़म का दर्द पुलिस महसूस करती है लेकिन जब किसी गरीब को तकलीफ पहूँचती है इस के साथ ज़ुलम-ओ-ज़्यादती होती है इस की जान-ओ-मामूली माल को नुक़्सान पहुंचता है यहां तक कि इस की इज़्ज़त लुट जाय तब भी पुलिस को कोई एहसास नहीं होता । एसा ही कुछ पुलिस राजिंदर नगर का हाल है ।
इलाक़ा में एक मासूम भोली भाली और इंतिहाई गरीब-ओ-मुफ़लिस और नातवां (कमजोर)ख़ातून की इजतिमाई आबरू रेज़ि(रेप) का वाक़िया पेश आता है लेकिन वो इस काबिल-ए-सज़ा जुर्म के मरतकबीन(मुजरिम) को गिरफ़्तार करने और ख़ातून को इबतिदाई तिब्बी इमदाद पहुंचाने के बजाय एक दौलतमंद शख़्स के घर में हुई चोरी की तहकीकात में मसरूफ़ हो जाती है । पुलिस चोरी की वारदात की तहकीकात इस क़दर इन्हिमाक से कर रही है कि उसे इजतिमाई ज़ना बिलजबर का शिकार 20 साला खालिदा बेगम की चीखने चिल्लाने तकलीफ से कराहने और इस के मासूम दो साला बेटे की रोने की आवाज़ें तक सुनाई नहीं देती ।
पुलिस की ग़फ़लत-ओ-लापरवाही और बेहिसी का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें मुतास्सिरा खालिदा बेगम उन के शौहर शेख अकबर आटो ड्राईवर और वालिदा ताहिरा बेगम की आँखों से रवां आँसू भी दिखाई नहीं देते । वाक़िया दरअसल ये है कि मुहम्मदाबाद किशन बाग़ की रहने वाली खालिदा बेगम की इस के एक रिश्तेदार नौजवान और दीगर दो अफ़राद ने पीर को तीन बजे रात इजतिमाई अस्मत रेज़ि (रेप)की और पुलिस ने इस ख़ातून की शिकायत का नोट उस वक़्त लिया जब वाक़िया गुज़रे तीन दिन हो चुके हैं और इस जुर्म के मुर्तक़िब दरिंदे फ़रार होगए । बताया जाता है कि खालिदा बेगम के शौहर शेख अकबर आटो ड्राईवर हैं ।
दोनों की शादी तीन साल कब्ल हुई । उन्हें एक दो साला बेटा है और ये ख़ानदान मुफ़लिस है जो एक झोंपड़ीनुमा मकान में रहता है खालिदा बेगम ने पाँच यह छः यौम कब्ल अपने बेटे की ख़तना करवाई । पीर की शब जब अकबर रात में आटो चलाने घर से बाहर गए हुए थे मासूम बेटे ने ख़तना के ज़ख़म की वजह से बे चैनी महसूस की । मजबूर माँ खालिदा बेगम झोंपड़ी के बाहर निकली जैसे ही वो झोंपड़ी के बाहर आई वहां पहले ही से झोंपड़ी और खालिदा बेगम पर नज़रें गाड़े बैठा पड़ोसी नौजवान मोइन आटो ड्राईवर ने दो साथियों इब्राहीम और सुलेमान के साथ उसे ज़बरदस्ती बाज़ू ख़ाली प्लाट में ले गया जहां इन तीनों ने एक बेबस ख़ातून के साथ मुंह काला करते हुए अपने नाम शैतानों के ख़ैर ख्वाहों की स्याह फ़हरिस्त में रक़म (लिखा)करवा लिए । बताया जाता है कि तीनों शैतान सिफ़त दरिंदे शादीशुदा हैं ।
ज़राए के मुताबिक़ तीनों में से एक नौजवान मोइन मुतास्सिरा ख़ातून के शौहर का रिश्तेदार भी है ।राक़िम उल-हरूफ़ ने मुतास्सिरा ख़ातून से बात की जिस पर पता चला कि सुबह छः बजे शौहर जब मकान पहुंचा तब खालिदा बेगम रोती बैठी थी इस ने शेख अकबर को ख़ुद पर गुज़रे हालात से वाक़िफ़ करवाया । सदमा से दो-चार ये मियां बीवी पुलिस इस्टेशन राजिंदर नगर पहूंचे जहां खालिदा बेगम और इस के शौहर को झिड़कियां और गालियां सुननी पढ़िं ।
उन्हें पुलिस इस्टेशन में सुबह साढे़ छः बजे से ग्यारह बजे दिन तक इंतिज़ार करवाया गया और फिर बाद में शाम को आने के लिए कह कर वापस कर दिया गया और तीन दिन बाद बड़ी मुश्किल से दो ख़ातून पुलिस कांस्टेबलस के हमराह उसे गर्वनमैंट मैटरनिटी हॉस्पिटल पेटला बुरज भेजा गया । राक़िम उल-हरूफ़ ने देखा कि खालिदा बेगम इंतिहाई कमज़ोर-ओ-लागर हो चुकी थी ।
उस की कमज़ोरी का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि बीस साल की उम्र के बावजूद इस का वज़न 30 ता 35 किलो है । वो बात चीत भी ठीक तौर पर नहीं कर पारही थी । वक़फ़ा वक़फ़ा से चकरा कर गिर रही थी और आसमान की जानिब हाथ उठाए ज़ालिम दरिंदों के लिए बददुआ कर रही थी ।
एक गरीब ख़ातून की फ़रियाद सुनने से इनकार ख़ातियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई से गुरेज़ और गिरफ्तारियों में ताख़ीर (देर)के बारे में पुलिस का कहना है कि एक मकान में बड़ी चोरी होगई थी इस लिए वो फ़ौरी कार्रवाई ना कर सकी । इस बहाने से एसा लगता है कि उसे किसी घर में चोरी की वारदात की तहकीकात से तो बहुत दिलचस्पी है लेकिन इस के पास किसी मासूम गरीब ख़ातून की इज़्ज़त लुट जाने की कोई अहमियत नहीं है ।
गरीब ख़ातून के साथ पेश आने वाला ये दर्दनाक वाक़िया तो उसे एक मामूली वाक़िया लगता है । पुलिस ने वाक़िया की तहकीकात में ताख़ीर करते हुए एक तरह से मुजरमीन को फ़रार होने का रास्ता फ़राहम किया है ।
बहरहाल क़ानून के रखवालों को अमीर-ओ-गरीब में इम्तियाज़ या फ़र्क़ करने की बजाय इंसानियत का सबक़ अच्छी तरह पढ़ लेना चाहीए ताकि किसी और खालिदा के साथ इस तरह का वाक़िया पेश आजाय तो कम अज़ कम वो फ़ौरी उस की मदद के लिए पहूंच सके ।