वो अब तिजारती पहलू निकाल लेता है
मैं कुछ कहूं तो तराज़ू निकाल लेता है
वो फूल तोड़े हमें कोई ऐतराज़ नहीं
मगर वो तोड़ के ख़ुशबू निकाल लेता है
अँधेरे चीर के जुगनू निकालने का हुनर
बहुत कठिन है मगर तू निकाल लेता है
मैं इसलिए भी तेरे फ़न की क़द्र करता हूँ
तू झूठ बोल के आँसू निकाल लेता है
वो बेवफ़ाई का इज़हार यूं भी करता है
परिंदे मार के बाज़ू निकाल लेता है
(शाइर: अहमद कमाल परवाज़ी)