अहादीस शरीफा में मुस्लमानों के तमाम मसाइल का हल

हैदराबाद ११ जून: जुनूबी हिंद की बावक़ार इस्लामी दरसगाह जामिआ निज़ामीया के शेख़ अलहदीस फ़ज़ीलৃ उल-शेख़ मौलाना मुहम्मद ख़्वाजा शरीफ़ ने आज जामिआ निज़ामीया में बुख़ारी शरीफ़ की आख़िरी हदीस का दरस देते हुए कहाकि अहादीस शरीफा से वाबस्तगी ही मिल्लत-ए-इस्लामीया की कामयाबी की ज़ामिन ही। अहादीस शरीफा मैं अक़ीदा, आमाल, हुस्न ख़ातमा और दुनयवी कामरानी की सारी चीज़ें मौजूद हैं।

मुस्लमान की ज़िंदगी के शब-ओ-रोज़, उस की इन्फ़िरादी-ओ-इजतिमाई मुआशरत, क़ुरआन-ओ-हदीस के मुताबिक़ होना चाहिए । इसी में कामयाबी-ओ-कामरानी ही। निगरान जलसा मुफ़क्किर इस्लाम मौलाना मुफ़्ती ख़लील अहमद शेख़ इलजा मआ जामिआ निज़ामीया ने इस मौक़ा पर अपने ख़ैरमक़दमी ख़िताब में कहा कि जामिआ निज़ामीया का जलसा दरस पूरी इलमी दुनिया में शौहरत रखता है।

बुख़ारी शरीफ़ के फ़ैज़ान को मुहिब्बीन जामिआ और आमৃ एलिनास तक पहुंचाने केलिए इस दरस का आम एहतिमाम किया गया है ताकि तलबा जामिआ के साथ अहल-ए-ज़ोक़ और आम मुस्लमान भी बरकतों से मालामाल हूँ। उन्हों ने तलबा-ए-को नसीहत करते हुए कहाकि वो अपनी इलमी इस्तिदाद को बुलंद करें। मौजूदा ज़माने के बदलते हुए तक़ाज़ों पर गहिरी नज़र रखें और असर-ए-हाज़िर के चयालनजस से बख़ूबी वाक़िफ़ हूँ। उन्हों ने ख़तन बुख़ारी के पुरमसरत मौक़ा पर हज़रत-ए-शैख़ अलहदीस और तलबा फ़ाज़िल सुन्दी को मुबारकबाद पेश की।

मौलाना सय्यद अली अकबर निज़ाम उद्दीन हुसैनी साबरी अमीर जामिआ निज़ामीया ने सदारत की। मौलाना मुहम्मद ख़्वाजा शरीफ़ ने अपने बसीरत अफ़रोज़ दरस में कहाकि बुख़ारी शरीफ़ की आख़िरी हदीस अपने मानी-ओ-मुतालिब के एतबार से निहायत जामि और दुनिया-ओ-आख़िरत में सुकून-ओ-राहत की ज़ामिन ही। इस को किसी भी मजलिस के आख़िर में पढ़ लिया जाय तो कफ़्फ़ारा मजलिस ही। ये हदीस शरीफ़ ज़ाहिर-ओ-बातिन की तमाम बीमारीयों का ईलाज भी है।

मौलाना ने कहाकि हर हदीस में हलावत-ओ-लज़्ज़त पाई जाती है लेकिन ये कैफ़ीयत बुख़ारी शरीफ़ में बहुत ज़्यादा है इस की वजह ये है कि इमाम बख़ारीऒ ने अहादीस को 16 साल में जमा किया। आप हर हदीस को लिखने से पहले ग़ुसल फ़रमाते और दो रकात नमाज़ अदा करती। इमाम बख़ारीऒ ने बुख़ारी शरीफ़ का हर उनवान मदीना मुनव्वरा में रोज़ा अक़्दस सिल्ली अल्लाह अलैहि-ओ-सल्लम के रूबरू लिखने का एहतिमाम किया और लिखने से पहले नबी करीम सिल्ली अल्लाह अलैहि-ओ-सल्लम पर दरूद शरीफ़ पढ़ते और उनवान को हुज़ूर की बारगाह में पेश करती। मौलाना ने कहाकि बुख़ारी शरीफ़ की आख़िरी हदीस सुबहान अल्लाह ओ- बहमदा सुबहान अल्लाह उल-अज़ीम के वरद से आँखों की बीमारीयों, बीनाई से महरूमी, बरस, फ़ालिज, वजा मफ़ासिल और दीगर अमराज़ से हिफ़ाज़त होती है।

मौलाना मुहम्मद ख़्वाजा शरीफ़ ने कहाकि बुख़ारी शरीफ़ की आख़िरी हदीस तमाम किताब का ख़ुलासा ही। हदीस शरीफ़ का पढ़ना, सुनना और इस को समझने की कोशिश करना सआदत मंदी ही। इस से ना सिर्फ उख़रवी फ़वाइद वाबस्ता हैं बल्कि दुनिया में भी ख़ुशहाली और ताज़गी फ़राहम होती है। मौलाना ने कहाकि बुख़ारी शरीफ़, क़ुरआन मजीद के बाद सही तरीन किताब ही। बुख़ारी शरीफ़ के पढ़ने से आफ़ात-ओ-मसाइब ख़तन हो जाते हैं। उन्हों ने कहाकि जामिआ निज़ामीया में इबतदा-ए-ही से बुख़ारी शरीफ़ की तदरीस का ख़ुसूसी एहतिमाम है। यहां मस्नद हदीस-ओ-फ़िक़्ह पर मलिक के बलंद पाया उल्मा फ़ाइज़ रहे हैं।

उन्हों ने कहाकि जामिआ के तलबा-ए-की तालीमी इस्तिदाद ज़बरदस्त और काबिल-ए-तारीफ़ ही। उन्हों ने कहाकि अल्लामा असक़लानीऒ के मुताबिक़ बुख़ारी शरीफ़ में 3907 उनवानात के तहत 9082 अहादीस हैं। उन्हों ने ये बात भी कही कि बुख़ारी शरीफ़ में 22 सुलह स्यात् हैं यानी वो हदीस जो सिर्फ तीन वासतों से नबी करीम सिल्ली अल्लाह अलैहि-ओ-सल्लम तक पहुंचती है लेकिन इमाम आज़मऒ को ये ख़ुसूसीयत हासिल है कि इन के पास सुलह स्यात् का एक बड़ा मजमूआ है बल्कि आप के पास सनाईआत और वहदानयात भी हैं जो इमाम बख़ारीऒ के पास नहीं हैं। हज़रत इमाम बख़ारीऒ अहनाफ़ के क़द्रशनास हैं क्योंकि वो ख़ुद एक वास्ता और दो वासतों से हज़रत इमाम-ए-आज़म के शागिर्द हैं। हज़रत-ए-शैख़ अलहदीस ने उल्मा और अह्ले इल्म केलिए इबतदा-ए-में बुख़ारी शरीफ़ की आख़िरी हदीस का दरस अरबी ज़बान में दिया।

तलबा-ए-जामिआ ने इमाम बख़ारीऒ और बुख़ारी शरीफ़ की शान में मदहीह नज़म पेश की। मौलाना मुहम्मद अबदुल्लाह क़ुरैशी इलाज़ हरी नायब शेख़ इलजा मआ जामिआ निज़ामीया ने दरस के इख़तताम पर अल्लामा सय्यद अहमद बिन ज़ैनी दहलानऒ की दाये ख़तन बुख़ारी को निहायत रक्त के साथ पढ़ा। जनाब सय्यद अहमद अली मोतमिद जामिआ निज़ामीया ने शुक्रिया अदा किया। मौलाना मुहम्मद अनवार अहमद नायब शेख़ अलतफ़सीर जामिआ निज़ामीया ने निज़ामत के फ़राइज़ अंजाम दिये। तलबाए फ़ाज़िल सुन्दी ने शयूख़-ओ-असातिज़ा जामिआ की गलपोशी की। इस मौक़ा पर शयूख़ जामिआ, असातिज़ा किराम, मशाइख़ उज़्ज़ाम, तलबा क़दीम, तलबा जामिआ निज़ामीया और अवामुन्नास की कसीर तादाद मौजूद थी।