क़ुरान मजीद, रसूल अल्लाह स.व. के तमाम चमत्कारों में एक ज़िंदा जावेद चमत्कार है। अल्लाह ताला ने ख़ुद उस की रख्शा का वादा फ़रमाया है, इस लिए आँ हज़रत स.व. के तमाम चमत्कारों में ये चमत्कार खास एहमीयत रखता है। इस्लाम के दुश्मनों और ईमान के नास्तिकों, रास्ते से भट्की जमातों और बातिल तहरीकों ने क़ुरान मजीद की खास अहमीयत और चमत्कारीक पहनचान को मजरूह और मशकूक करने की बहुत सी तदबीरें और तरकीबें कीं, अल्फ़ाज़ में रद्दो फेर कीया, सूरतों की तर्तीब में उलट फेर की, तफ़सीर-ओ-तशरीह के नाम पर तहरीफ़ कर डाली, इन सब के बावजूद क़ुरान मजीद की अबदी सदाक़त और इस की दाइमी हिदायत की चमत्कारीक शान पूरी आन बान के साथ आज भी बाक़ी है।
इसी तरह अल्लाह के पैगंबर के तमाम गूण ओर खूबीओं मे से खत्म ए नबुव्वत के मंसब की एक इमतियाज़ी शान है। अल्लाह ताला ने कुल एक लाख चौबीस हज़ार नबियों में से सिर्फ आप स.व. ही को इस मंसब के लिए मुंतख़ब फ़रमाया। ख़ुद आँहज़रत स.व. ने भी इस इम्तेयाज़ी वस्फ़ को जिस ताकीद ओ तफ्सील और तकरार के साथ ब्यान फ़रमाया, अपने किसी दूसरे वस्फ़ का ज़िक्र नहीं फ़रमाया।
नबुव्वत ए मुहम्मदी का बाग़ी गिरोह, कादयानी फ़िर्क़ा ने रसूल अल्लाह स.व. की शान ख़त्म ए नबुव्वत को मजरूह-ओ-मशकूक ही नहीं, बल्कि मादूम-ओ-मफ़क़ूद करने के लिए बहूत कोशिशें और काविशें की, एड़ी चोटी का ज़ोर लगाया, ख़ातिम उलअन्नबीय्यीन के माना-ओ-मफ़हूम में नतनई ताबीरात-ओ-तावीलात की इल्मी मोशिगाफ़ियों और सुख़न साज़ियों में कोई कमी और कसर बाक़ी ना रखा। फिर जब ये मोशिगाफ़ीयाँ और सुख़न साज़ीयाँ काम नहीं आएं तो माद्दियत और प्रोपेगंडा और ज़राए इब्लाग़ की ताक़त के साथ बरसर पैकार है। लेकिन इस में भी नाकामी और रुसवाई क़ादियानियत का मुक़द्दर है, इस लिए कि रसूल अल्लाह स.व. की शान ए ख़त्म ए नबुव्वत का हक़ीक़ी माना-ओ-मफ़हूम आज भी वही है, जो आप स.व. ने आज से चौदह सौ साल पहले फ़रमाया था। चंद नादान और अक़ल-ओ-फ़हम से नादार लोगों की मुट्ठी भर जमात के इलावा पूरी उम्मत ए मुस्लिमा सरकार दो आलम स.व. को आख़िरी नबी तस्लीम करती है।
उलमा ए इस्लाम ने रसूल अल्लाह स.व. की शान ख़त्म ए नबुव्वत को बताने और समझाने के लिए इत्ना कुछ लिख दिया कि इस मौज़ू पर एक मुस्तक़िल कुतुब ख़ाना तैयार हो गया। अगर कादयानी फ़िर्क़ा का वजूद और जुहूर ना होता तो क्या ये लाज़वाल और बेमिसाल कुतुब ख़ाना तैयार हो सकता था? क्या अक़ीदा ख़त्म ए नबुव्वत की मोजीज़ाना शान इत्ना खुल कर सामने आती?।
फिर ये कि अक़ीदा ख़त्म ए नबुव्वत की हिफ़ाज़त महज़ किसी फ़िर्क़ा की मुख़ालिफ़त नहीं, बल्कि इस में हमारे इशक़-ओ-वफ़ा का इमतिहान भी है। झूटे नबी मुसैलमा कज़्ज़ाब के फ़ित्ना के वक़्त सहाबा किराम ने जिस क़ुव्वत और शिद्दत के साथ इस का मुक़ाबला कीया, वो ईमानी ग़ैरत-ओ-हमीयत, हुब्ब ए नबी और इशक़ ए रसूल की एक ताब्नाक और रोशन मिसाल है। मुसैलमा की सरकोबी के लिए सहाबा किराम (रज़ी) ने जंग ए यमामा में ताज ख़त्म ए नबुव्वत की पास्बानी के लिए अपनी मुक़द्दस जानों का नज्राना पेश किया। इस्लामी तारीख़ की ये अजीब और हैरतअंगेज़ हक़ीक़त है कि रसूल अल्लाह स.व. के साथ जुम्ला ग़ज्वात में इस्लाम की इशाअत-ओ-सरबुलन्दी के लिए जुमला बारह सौ सहाबा किराम शहीद हुए, लेकिन सहाबा किराम की यही कुल तादाद सिर्फ एक जंग यमामा में शहादत से सरफ़राज़ हुई। इशक़-ओ-वफ़ा के इस इमतिहान में सहाबा किराम (रज़ी.) की ये अज़ीम जांनिसारी और जाँबाज़ी हमें ये पैग़ाम देती है:
जो जान मांगो तो जान दे दें , जो माल मांगो तो माल दे दें
मगर ये हम से कभी ना होगा , नबी का जाह-ओ-जलाल दे दें