मुफ़्ती ज़मीम अहमद साहब मिस्बाही (दार-उल-उलूम अहलेसुन्नत अहमदिया बग़दादिया, शतरंजी पूरा, नागपुर) ने अपने एक ख़िताब के दौरान कहा कि औलिया-ए-किराम की मज़ारात पर कुर्आनी आयात लिखी हुई चादरें हरगिज़ ना चढ़ाए और ना ही इन चादरों को खरीदें।
बे वज़ू कुरआनी आयात वाली चादरों को छोड़ना हराम-ओ-नाजायज़ है। लोग संदल निकालते वक़्त अपने सरों और कमर में बांधते हैं जो खुल खुल कर ज़मीन पर गिरती है। ये चादरें मज़ारात से उतरने के बाद उन लोगों के बदन पर भी देखी गई हैं जो साहिबे इमान नहीं हैं और जो शराब, गांजे के नशे में शराबोर रहते हैं। जिन के कपड़े गंदे, ग़लीज़ और नापाक रहते हैं जिनको ख़ुद अपनी पाकी नहीं है।
ऐसी कई मिसालें हैं जो आम तौर पर देखने में आती है। मुसलमानो ! क़ुरआन शरीफ़ में ख़ुद अल्लाह ताला ने इरशाद फ़रमाया है कि हम अगर क़ुरआन को किसी पहाड़ पर उतारते तो पहाड़ टुकड़े टुकड़े होजाता अल्लाह के ख़ौफ़ से। (सूरह हश्र , आयत नंबर 21) मुसलमानो ! परवरदिगार आलम रउफ़-ओ-रहीम है मगर ये ना भूलें कि वो जब्बार-ओ-क़ह्हार भी है।
इसके जलाल-ओ-ग़ज़ब को दावत ना दो। अपने हाथों क़ुरआन मुक़द्दस की बेहुर्मती के अस्बाब ना पैदा करो। दरगाह कमेटी, खादिमों-ओ-मुजाविरों का फ़र्ज़ बनता है कि कुरआनी आयात वाली चादरें वापिस करदें और पूरी कोशिश करें कि ऐसी चादरें दरबार औलिया-ए-में ना चढ़ें।
परवरदिगार आलम ने चाहा तो आप के इस अमल से आज नहीं तो कल ज़रूर तबदीली होगी और चिराग़ से चिराग़ जलता रहेगा। मौला तबारक-ओ-ताला आलिम इस्लाम को स्रात मुस्तक़ीम पर चलाए और शैतान के मकर-ओ-फ़रेब से बचाए।