औसत मर्द बाक़ी रह सकते हैं लेकिन एक ख़ातून जो कामयाब होना चाहती हो औसत दर्जा की बरक़रार नहीं रह सकती । साबिक़ वज़ीर-ए-ख़ारजा अमरीका मेडलीन अलब्राईट (Former US Secretary of State Madeleine Albright)ने नौजवान तलबा ( छात्रों) को मश्वरा देते हुए कहा कि वो ख़ुद नाराज़गी महसूस करती थीं जब कि ख़वातीन की सलाहीयतों के बारे में उन के वालदैन फ़ैसला किया करते थे ।
यंग इंडिया फेलोशिप प्रोग्राम के तलबा से तबादला-ए-ख़्याल के दौरान उन्होंने कहा कि इस दुनिया में औसत दर्जा के मर्दों की गुंजाइश है लेकिन औसत दर्जा की ख्वातीन की नहीं । अगर कोई ख़ातून अपनी ज़िंदगी में कोई बड़ा कारनामा अंजाम देना चाहती हो तो वो औसत दर्जा की बरक़रार नहीं रह सकती ।
इस मरहला पर जबकि ख़ातून की ज़िंदगी का सफ़र शुरू होता हो उसे ग़ैरमामूली बनना पड़ता है । मेडलिन ब्राईट को हाल ही में अमेरीका का आली तरीन सीवीलीयन एज़ाज़ सदर का तमग़ा आज़ादी हासिल हो चुका है । उन्होंने तलबा को मश्वरा दिया कि वो अपने मुफ़ादात के लिए इस्तिहकाम ( मजबूती)पैदा करें ।
अलब्राईट ने कहा कि उन्होंने कभी अपनी शख़्सी या माहिराना ज़िंदगीयों के लिए कोई जामि मंसूबा नहीं बनाया था लेकिन हमेशा जानती थीं कि उन्हें इस काम में दिलचस्पी है । उन्होंने कहा कि नौजवानों को भी अपनी शनाख़्त ( पहचान) करनी चाहीए और अपने मुफ़ादात (फायदे) की तकमील ( पूर्ती) के लिए इन का ज़िंदगी का बाक़ी सफ़र ख़ुद ब ख़ुद तय हो जाएगा । रुकावटों के बारे में जिन का उन्हें अपनी ज़िंदगी के सफ़र के दौरान सामना करना पड़ा तज़किरा करते हुए मीडलीन अलब्राईट ने कहा कि वो अमेरीका में पनाह गज़ीन थीं लेकिन वो सिफ़ारतकार बनें और वाईट हाउस तक रसाई ( पहुंच) हासिल की ।
वो 1968 में वाशिंगटन वापस आएं और कोलंबिया यूनीवर्सिटी में पी एच डी की तकमील करने के लिए काम शुरू किया । उन्होंने कहा कि इनकी पी एच डी और उन के कैरियर के दरमयान 10 साल का वक़फ़ा है जिस से उनकी पी एच डी उन के दीगर ( दूसरे) दोस्तों की बनिसबत मुतास्सिर ( प्रभावित) हुई और ताख़ीर ( विलम्ब/ देरी) से हासिल हुई ।