नई दिल्ली, 04 जनवरी: सुप्रीम कोर्ट ने बीवी को पीटने एक मामले में निचली अदालत की तरफ से ‘शादीशुदा ज़िंदगी की आम बात’ कहे जाने पर कड़ी नाराजगी जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि खवातीन की परेशानी के मुद्दे पर जजों को संजीदा होना चाहिए। खवातीन को अज़ीयत देना उनके एहतेराम के खिलाफ है। इस तरह की ज़हनियत खवातीन के खिलाफ जुर्म को बढ़ावा देने वाली है। इसमें हर हाल में बदलाव जरूरी है।
जस्टिस आफताब आलम की सदारत वाली बेंच ने वीवी अंवेकर की ओर से कर्नाटक हाईकोर्ट के हुक्म के खिलाफ दायर अपील को खारिज करते हुए कहा है कि आइन (Constitution/ संविधान) में खवातीन को हिफाजत फराहम किया गया है। दिगर कानून भी अदालतों को इंसाफ करने के लिए फराहम किए गए हैं, लेकिन हमें खवातीनो की दिक्कतों के लिए संजीदा रहना चाहिए। इस मामले में निचली अदालत ने तीनों मुल्ज़िमों को छोड़ दिया था।
वहीं हाईकोर्ट ने दहेज के लिए बीवी को परेशान करने वाले शौहर को मुजरिम ठहराते हुए सजा सुनाई थी। जबकि ससुराल वाले दीगर दो को बरी कर दिया था। अंवेकर की बीवी गिरिजा ने अज़ीयत से तंग आकर जहर खाकर खुद्कुशी कर ली थी। निचली अदालत ने इस मामले में दिए गए फैसले में कहा था कि शादीशुदा ज़िंदगी में बीवी की पिटाई एक आम बात है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस पर अफसोस जताते हुए कहा कि इसका मतलब तो यह है कि शौहर अगर बीवी को एक-दो चांटे मारता है तो बड़ी बात नहीं है। हमारी राय में यह सही सोच नहीं है। अदालत का फैसला एक तरह से खवातीन का अज़ीयत किए जाने को सामाजी तौर पर सही ठहराता है। हमारी राय में जजों को खवातीन की परेशानियों के लिए संजीदा होना चाहिए।
हालांकि सेशन जज की ओर से दर्ज की गई हालात में साफ किया गया है कि गिरिजा की खुद्कुशी से मुताल्लिक हालात बहुत मुश्किल नहीं थीं, लेकिन एक बात रौशनी में आई है कि गिरिजा की आंख की रोशनी थप्पड़ की वजह से ही गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमारा ऐतराज़ सेशन जज के तब्सिरे पर है। हाईकोर्ट का फैसला इस मामले में सही है, अदालत उसके खिलाफ दायर अपील को खारिज करती है।