गंवाकर फिर से इज़्ज़त ढूंढता है,
ज़माना कैसी शोहरत ढूंढता है।
जो सूरत सामने आती है उसके,
उसी में मेरी सूरत ढूंढता है।
बना दी ज़िन्दगी जिसने जहन्नम,
मेरे आँखों में जन्नत ढूंढता है।
सजा कर नफरतों का ताज सर पर,
जहाँ भर में वो उल्फ़त ढूँढता है।
सुनाकर मुझको मेरी ही कहानी,
मेरे चेहरे पे हैरत ढूंढता है।
बहुत उकता गया है भीड़ से दिल,
ये अब दो पल की फुर्सत ढूँढता है।
बड़ा है जो वो इस दुनिया में इज़्ज़त,
बड़ों की करके खिदमत ढूंढता है।
लुटाने से जो बढ़ती हो हमेशा,
मेरा दिल ऐसी दौलत ढूंढता है।