आँखों में नूर नहीं लेकिन झारखण्ड की नफ़ीसा ने ब्रेल में कुरान लिखी

रांची : झारखंड की एक स्कूल टीचर ने अपनी ज़िंदगी के अंधेरे से लड़ते हुए अंधे लोगों के लिए ब्रेल में कुरान लिखा है। बोकारो के एक स्कूल में हिंदी पढ़ाने वाले वाली नफ़ीस तरीन ने ढाई साल की सख्त मेहनत के बाद 965 पन्नों में कुरान को ब्रेल में लिखा है। कुरान पढ़ने की कोशिश करते हुए नफ़ीसा के सामने इतनी मुश्किलें आईं कि उन्होंने अपने जैसे दूसरे लोगों के लिए ब्रेल-हिंदी में कुरान लिखने की ठान ली। बोकारो स्टील प्लांट में काम करने वाले मोहम्मद मुख़्तार असलम की बेटी नफ़ीस के ज़द्दो-ज़हद की कहानी कई लोगों के लिए मिसाल बन सकती है।

मुख़्तार असलम ने नफ़ीस को पढ़ने के लिए बनारस के जीवन-ज्योति स्कुल भेजा जहाँ से उन्होंने इंटरमीडिएट तक पढ़ाई की। नफ़ीस बीएड करने के बाद बोकारो में एक हाई स्कूल में आम बच्चों को हिंदी पढ़ाती हैं। बीए की पढ़ाई के दौरान नफ़ीस के मन में कुरान पढ़ने की ख्वाहिश जगी लेकिन माज़ूर होने की वजह से कोई हाफ़िज़ उन्हें पढ़ाने के लिए तैयार नहीं हुआ। दिल्ली के एक अदारे से कंप्यूटर साइंस में डिप्लोमा कर चुकी नफ़ीस को आख़िरकार मोहम्मद तस्लीम नाम के एक हाफ़िज़ कुरान पढ़ाने को तैयार हुए।

उनकी निगरानी में नफ़ीस ने कुरान को ब्रेल-हिंदी में लिखना शुरू किया। 2005 में शुरू हुआ काम 2008 में पूरा हुआ, जिसके बाद काफ़ी वक़्त ग़लतियों को ठीक करने में लगा। नफ़ीस कहती हैं, “वालिद की गाइडलाइन, भाइयों के हौसला अफजाई और हाफिज जी की वजह से मुझे आज ये मुकाम हासिल हुआ है। ” किसी मज़हबी तंज़ीम या इंतेजामिया से नफ़ीस को कोई हौसला या इक्तेसादी मदद नहीं मिला, “जो लोग मुझे कुरान पढ़ाने तक को तैयार नहीं थे, मेरे वालिद को गुमराह कर रहे थे, भला आप उनसे हौसला अफजाई की उम्मीद कैसे रख सकते हैं। मैं शोहरत और इज्ज़त की भूखी नहीं हूँ। ”
नफ़ीस बताती हैं कि कुरान को अशाअत करने की मंसूबा भी है। इसके लिए किसी मददगार सख्श या तंज़ीम के आगे आने का इंतज़ार है ताकि यह ज़्यादा लोगों तक पहुँच सके।

लेकिन अगर कोई मदद नहीं मिली तो वो इसे खुद अशाअत करने की भी सोच रही हैं। हालांकि गुजिश्ता साल इंदौर की एक लड़की ने भी ब्रेल में कुरान लिखा है लेकिन नफ़ीस के भाई ग़ौस-उल-आज़म बताते हैं कि नफ़ीस का लिखा कुरान भारत का पहला पूरी कुरान है। नफ़ीस के वालिद मुख़्तार बताते हैं कुरान लिखने के बाद आस-पास के मदरसों और मस्जिदों के प्रिंसिपल ने अपने-अपने ढंग से नफ़ीस से कुरान पढ़वाकर इसकी तस्दीक की। बोकारो स्टील सिटी के मौलवी मुफ़्ती मुहम्मद मंसूर अनवर कहते हैं, “जो काम आँख वाले नहीं कर सकते उसे इस लड़की ने कर दिया, ये कबीले-तारीफ़ है। मैंने नफ़ीस से पढ़वाया, सचमुच उन्होंने बेहतरीन काम किया है इसलिए समाज ने सराहा है, दुआओं से नवाज़ा है। ”

बोकारो के ग़ौसनगर के इमाम मोती-उर-रहमान कहते हैं, “हम इस कुरान की तस्दीक ही नहीं बल्कि मुकम्मल तस्दीक करते हैं, नफ़ीस की मेहनत को जितना सराहा जाए कम है। सूरा-ए-फ़ातिहा से शुरू करके सूरा अल नास तक हमने हर आयत को एक साल तक जा-जाकर नफ़ीस से सुना है। ” हिम्मत से भरी भरी नफ़ीस को अब इंतज़ार है एक अदद मददगार की, जो कुरान के शाया होने में मदद कर सके।

 

बा शुक्रिया : बीबीसी हिंदी डॉट कॉम