आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट की तारीख़ी इमारत का रंग क्यों बदला गया ?

सातवीं निज़ाम बादशाह मीर उसमान अली ख़ां बहादुर ने शहर हैदराबाद की तामीर-ओ-तरक़्क़ी में वो चार चांद लगाए हैं जिस की रोशनी और चमक दमक से ये शहर एक ज़माना तक मुनव्वर होता रहेगा और उसे गूंनागों खूबियों का हामिल शहर बनाने में हुज़ूर निज़ाम का दौर सुनहरा दौर रहा है जिसे तारीख कभी फ़रामोश नहीं करसकती ।

15 अप्रैल 1915 -को नवाब मीर उसमान अली ख़ां ने इस आलीशान इमारत का संग बुनियाद रखा था । 31 मार्च 1919 में पाया तकमील को पहुंची थी और 20 अप्रैल 1920 को अदालत आलीया का इफ़्तिताह हुज़ूर निज़ाम के हाथों हुआ था । उस वक़्त उस की तामीर पर 28 लाख रुपये मसारिफ़ आए थे । अदालत आलीया में 20 कोर्ट हाल और 24 चैंबर्स हैं ।

इज़्ज़त मआब चीफ जस्टिस के लिये 8 कोर्ट हाल और 8 चैंबर्स अलहदा हैं । क़ारईन ! इमारतों की तामीर-ओ-तज़ईन में हर एक का एक ज़ौक़ होता है । जब कि बाज़ ज़ौक़ ऐसे होते हैं जो सब को अच्छे लगते हैं । हुज़ूर निज़ाम की इमारतों में आप ने देखा होगा कि सफेद और बिस्कटी रंग ग़ालिब है और ये इंतिहाई ख़ूबसूरत रंग है ये रंग सब से ज़्यादा लुतफ़ देता है । हाईकोर्ट की इमारत पर भी उस की तासीस से लेकर आज तक बिस्कटी रंग था ।

लेकिन 93 साल के तवील अर्सा बाद पहली मर्तबा इस के पुरशिकवा गुंबदों और छोटे छोटे मीनारों को भगवा रंग में रंग दिया गया ये वो ज़ाफ़रानी रंग है जिसे भगवा जमाअतें VHP , RSS और बजरंग दल अपने दफ़्तरों में करते हैं और बदनाम-ए-ज़माना मुस्लमानों की दुश्मन साध्वी रतम्बरा , ओमा भारती इसी रंग के कपड़े पहनती हैं ।

इस वाक़िया से साफ़ ज़ाहिर होता है कि फ़िरकापरस्त अनासिर अब तमाम महिकमों में दाख़िल होचुके हैं और वो बड़ी अय्यारी और मक्कारी से अपनी नापाक हरकतें कर रहे हैं और उन्हें अपनी इस तख़रीब कारी में कामयाबी भी मिल रही है । अदालत अदलिया के साथ ये सुलूक किया जाना बहुत सारे सवालों को जन्म देता है ।

अगर शरपसंदों की कारस्तानी इसी तरह चलती रही तो मालूम नहीं आइन्दा नस्ल के सामने हमारे अस्लाफ़ की शबीह क्या होगी और हमारी तारीख को किस तरह पेश किया जाएगा । एसा लगता है कि हुकूमत को हमारे अस्लाफ़ के आसार और उन के पसंदीदा रंगों से बुग़ज़ होगया है ।

सवाल ये पैदा होता है कि जब 93 साल तक एक ही रंग रहा तो आज इसे बदलने की क्या मजबूरी पेश आई और अगर बदलना ही था तो फिर एसा रंग क्यों इख़तियार किया गया जिसे फ़िरकापरस्त तनज़ीमें , जमाअतें और अफ़राद इख़तियार करते हैं । क्या ये किसी मंसूबा बंद प्लानिंग का एक हिस्सा है ? नीज़ सदर दरवाज़ा से जब कोर्ट में दाख़िल होते हैं तो वहां भगवानों की तस्वीरें नज़र आती हैं ।

मज़ीद ये कि इमारत के दाख़िला की कमान पर संगमरमर की एक तख़्ती लगी है जिस पर उस्मानिया अदालत आलीया कुंदा है । लेकिन चंद सालों से इस तारीख़ी तख़्ती की जानिब से दानिस्ता लापरवाही बरती जा रही है । हमारी इस रिपोर्ट का मक़सद उन शरपसंदों की नापाक हरकतों को मंज़रे आम पर लाना है । क्यों कि तारीख की हिफ़ाज़त करना सहाफ़त की ज़िम्मा दारीयों में से है ।

लेकिन हमारे इस एहसास ज़िम्मेदारी से कुछ फ़ायदा होता है या नहीं इस का जवाब तो हुकूमत और इंतिज़ामीया पर मुनहसिर है कि वो इन हरकतों पर क़दग़न लगाएगी यह फिर इन फ़ित्ना प्रवरों को खुले आम छोड़े रखेगी ।।