आईने में झारखंड का अक्स, ख्वाब रह गए अधूरे

झारखंड के ख्वाबों की रात जितनी खुशगवार थी, हकीकत का सवेरा उतना ही भयानक। आज से ठीक 14 साल पहले बिहार से अलग झारखंड रियासत की तशकील हुआ था। माइंस का खजाना कहे जाने वाले झारखंड का राज तब अपनों के हाथ आया था। कहा गया कि माइंस से भरपूर इस रियासत का तेजी से तरक़्क़ी होगा। नए कल- कारखाने खुलेंगे। यहां माइंस है। नदियां हैं। जंगल है। लेकिन हुकूमतों और उनकी सोच ने सब कुछ गड़बड़ कर दिया। झारखंड के तरक़्क़ी के ख्वाब अधूरे रह गए। रियासत के तशकील दीन को जेहन में रखकर शुरू की गई, ख्वाबों की रात हकीकत का सवेरा की आखिरी कड़ी में चुनिंदा मेयार पर बीते 14 सालों में तय की गई दूरी नापने की कोशिश की है। उम्मीद है पंद्रहवें साल में दाखिल कर रहे झारखंड को मिलने वाली नई हुकूमत इस सूरत को पलट कर रख देगी।

यानी रियासत अलग होने के बाद बिहार में तरक़्क़ी के काम काफी ज़्यादा हुए। वहीं झारखंड का सरप्लस बजट घाटे के बजट में पहुंच गया। जब रियासत अलग हो रहा था, तब यह आम बहस थी कि बिहार के हिस्से दो तिहाई आबादी ही रह गई है, प्रॉडक्शन के सारे आलात झारखंड में हैं। अब हालत बिल्कुल उलट मालूम हो रही है। तरक़्क़ी को अदाद की कसौटी पर तौलने से और भी कई बातें वाजेह होती हैं।

एमओयू हुए, लेकिन नहीं आईं कंपनियां

झारखंड की माली हालत काफी खराब हो गई है। इंडस्ट्री और पावर प्लांट लगाने के लिए कई एमओयू किए गए, लेकिन सरमायाकारी नहीं हो पाया। हुकूमत को लोन लेने में भी दिकतों का सामना करना पड़ रहा है। लोन बोझ 33 हजार करोड़ रुपए हो गया है। सूद और लोन की अदायगी पर जहां 500 करोड़ खर्च होते थे, अब 3100 करोड़ रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं। पैसों के कमी की वजह से मंसूबों का काम पूरा नहीं हो पा रहा है। रियासत के मुलाज़िमीन के लिए तंख्वाह अदायगी पर भी कई बार बोहरान खड़े हुए हैं।