आक्रमण से नहीं, व्यापार के रास्ते भारत में आया इस्लाम

भारत में इस्लाम के आने को लेकर गलतफहमियां हैं। आयरिश नाटककार डेनिस जॉनसन ने एक बार कहा था कि मिथक बनाए नहीं जाते वे खुद बन जाते हैं और फिर धीरे-धीरे अपने उद्देश्य को प्राप्त कर लेते हैं।

शायद, अब समय आ गया है कि इस्लाम को लेकर प्रचलित गलतफहमियों को दूर करने में हम मदद कर सकें। यह बात साफ़ है कि भारत में इस्लाम व्यापार के रास्ते आया है ना कि हमलों से।

आज ज्यादातर इतिहासकार इस बात से सहमत हैं कि भारत में इस्लाम का परिचय अरब एवं मुस्लिम व्यापारियों ने कराया था और इसमें सभी विश्वास जताते हैं। अरब के व्यापारी दक्षिण भारत के मालबार स्थित समुद्र तट पर व्यापार के लिए आते थे तथा लंबे समय तक यहाँ रहते थे।

इस्लाम भारत में मुस्लिम आक्रमणों से पहले ही आ चुका था। इस्लामी प्रभाव को सबसे पहले अरब व्यापारियों के आगमन के साथ 7वीं शताब्दी के प्रारम्भ में महसूस किया जाने लगा था। प्राचीन काल से ही अरब और भारतीय उपमहाद्वीपों के बीच व्यापार संबंध अस्तित्व में रहा है।

इतिहासकार इलियट और डाउसन की पुस्तक द हिस्टरी ऑफ इंडिया एज टोल्ड बाय इट्स ओन हिस्टोरियंस के अनुसार भारतीय तट पर 630 ईस्वी में मुस्लिम यात्रियों वाले पहले जहाज को देखा गया था।

पारा रौलिंसन अपनी किताब: एसियंट एंड मिडियावल हिस्टरी ऑफ इंडिया में दावा करते हैं कि 7वी ईस्वी के अंतिम भाग में प्रथम अरब मुसलमान भारतीय तट पर बसे थे। शेख़ जैनुद्दीन मखदूम तुह्फत अल मुजाहिदीन एक विश्वसनीय स्रोत है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के प्रमुख बी पी साहू के अनुसार अरब मुसलमान 8 वीं और 9 वीं सदी से जहाँ बसे थे, वहीँ के होकर रह गए।

भारत में प्रथम मस्जिद का निर्माण ईस्वी 629 में हुआ था, जिसे अरब व्यापारी मलिक बिन दीनार के द्वारा केरल के कोडुंगालूर में पैगम्बर मुहम्मद साब (571–632) के हयात के दौरान बनाया था, को भारत का पहला मुसलमान भी माना जाता है। दिलचस्प बात यह है कि भारत में यह मस्जिद शायद दुनिया में उस वक़्त बनी कुछ मस्जिदों में से एक थी।

यह तथ्य इस बात की ओर संकेत करता है कि भारत में इस्लाम की उपस्थिति का इतिहास काफी पुराना है। ब्रिटिश इतिहासकार विन्सेन्ट आर्थर स्मिथ ने अपनी किताब द ऑक्सफ़ोर्ड हिस्ट्री ऑफ इंडिया में उल्लेख किया है कि श्रीलंका के बौद्ध भिक्षुओं ने उसको बताया था कि सम्राट अशोक ने सिंहासन को हासिल करने के लिए अपने 98 -99 भाइयों की हत्या कर दी थी और बाद में बौद्ध धर्म को अपना लिया। यह सब सिंहासन को हासिल करने के लिए किया गया था।

अधिकांश बौद्ध धर्म और इसके सहयोगी लोग शाकाहारी थे, बौद्ध भिक्षुओं ने मांसाहार भोजन का सेवन कभी नहीं किया। हालांकि, नवज्योति लाहिड़ी के विचार के अनुसार मांस और उसके उत्पादों की बौद्ध भिक्षुओं की अनुमति नहीं थी, एक मिथक है।

हालाँकि, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में इतिहास के पूर्व प्रोफेसर इरफान हबीब इस बात पर सहमति जताते हैं कि भिक्षु मांस खा सकते हैं। हाँ, बलि दिए हुए जानवर को कहना प्रतिबंधित था। यहाँ तक कि बौद्ध धर्म के पुरातत्व इस पर कुछ सबूत उपलब्ध कराते हैं। लाहिड़ी कहते हैं कि श्रीलंका के दो प्रसिद्ध बौद्ध स्थलों पर मिली जानवरों की हड्डियां इस ओर संकेत करती हैं कि बौद्ध भिक्षु शाकाहारी नहीं थे।

सलीम अनारकली की प्रेम कहानी जिसमें प्रेमी एक कनीज की खातिर अपने पिता की इच्छा को धता बताने के लिए तैयार रहता है और इस पर मुगल-ए-आजम जैसी लोकप्रिय बन गई, क्या यह रोमांस सिर्फ कल्पना मात्र नहीं है।

हालाँकि इतिहास के जानकार इरफान हबीब के अनुसार अनारकली की किंवदंती जहांगीर की मृत्यु के चार साल बाद आती है। साल 1630 के दशक के कुछ ग्रंथों में संक्षेप में इसका उल्लेख किया गया था।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रोफेसर एन आर फारूकी के अनुसार अनारकली की कब्र लाहौर में स्थित है जिसे जहांगीर द्वारा बनाया गया था, इस प्रकार लोग अपनी कल्पना में सलीम और अनारकली की कथा को जोड़ते हैं। अकबर की राजपूत पत्नी जोधा बाई जो आमेर के राजा बारमल की सबसे बड़ी बेटी थी।

आम धारणा यह है कि उसका नाम जोधा बाई था और वह जहांगीर की मां थी। इस बारे में इतिहास कुछ अलग कहता है। इरफान हबीब के अनुसार, किसी भी मुगल ग्रन्थ में कहीं भी अकबर की राजपूत पत्नी का कोई जिक्र नहीं है।

‘अकबरनामा’ में भी अकबर की पत्नी के रूप में उनके नाम का उल्लेख नहीं है। यहाँ तक कि जहांगीर की अपनी आत्मकथा तुज़के-ए-जहांगीरी’ में भी जोधा बाई के नाम का उल्लेख नही है। एन आर फारूकी के अनुसार अकबर की राजपूत रानी का नाम जोधा बाई नहीं था।

उसका असली नाम जगत गोसाई था जो जोधपुर के शाही परिवार से थी तथा बाद में जोधा बाई के नाम से जानी गई। फारूकी के अनुसार, वह शाही परिवार में एक बहुत ही महत्वपूर्ण औरत थी। सम्राट से शादी होने के अलावा वह भी खुर्रम की मां थी जो बाद में सम्राट शाहजहां बन गया था।

मूल लेख  http://timesofindia.indiatimes.com/पर प्रकाशित हुआ है। इसका हिंदी अनुवाद सियासत के लिए कौसर उस्मान ने किया है।