आख़िर अल्लाह का वादा कब ?

अल्लाह तआला फ़रमाता है: इस दीन मतीन पर मज़बूती के साथ जम जाओ, इस पर ईमान लाओ और इसके मुताबिक़ अमल करो इसका नतीजा ख़ुदबख़ुद ज़ाहिर होगा कि दुनिया में तुम ही सरबुलंद होगे, तुम्ही को ज़मीन का वारिस बनाया जाएगा। लेकिन अक्सर लोग नहीं जानते (सूरा रुम : ३०) इसी तरह दूसरी जगह फ़रमाता है : अल्लाह का वाअदा है उन लोगों के साथ जो ईमान लाए और अमल सालेह करे कि वो ख़लीफ़ा बनाएगा तुमको ज़मीन में। (सूरत तौबा : ५५)

तमाम किस्म की तारीफ़-ओ-तौसीफ इसी अल्लाह रब्बुल आलमीन के लिए लायक़-ओ-ज़ेबा है, जो तमाम ख़ूबीयों का मालिक है इसी के लिए सारी बादशाही है जिसने हमें ज़मीन का ख़लीफ़ा बनाया। अल्लाह ने जब हम से वाअदा किया तो फिर आज उम्मते मुस्लिमा जगह जगह ज़लील-ओ-ख़ार क्यों हो रही है, जगह जगह उनकी और उन के दीन की बदनामी हो रही है।

आख़िर क्या वजह है कि मुसलमान गुलामों की तरह ज़िंदगी बसर कर रहे हैं?। उन पर दूसरी कौमें मुसल्लत होती जा रही हैं। जबकि क़ुरआन का क़ौल है वाद अल्लाह आख़िर कब है अल्लाह का वाअदा कब मुसलमान क़ाइद बनेगा? कब अल्लाह की मदद होगी?। कौन सी है वो ताक़त जिस ने मुस्लमानों को मिस्र और अंदलुस के ख़ज़ानों की कुंजियां थामने पर मजबूर कर दी थी?।

इस क़ुव्वत-ओ-ताक़त का असल राज़ ये है : बेशक जो ईमान लाए और नेक अमल करे अल्लाह उनके दिलों में मुहब्बत डाल देगा। (सूरा मरयम : ९६)
मुसलमानों की ताक़त का असल राज़ ईमान, इस्तेक़ामत, अख़लाक़-ओ-किरदार आलाए कलीमतुल्लाह , तवक्कल अलल्लाह, फ़िक्र आख़िरत, इख़लास-ओ-ललहीत है। यही वो बुनियादी चीज़ें हैं जिसे अल्लाह ने मुसलमानों के लिए चुन लिया है। यानी यही वो ग़िज़ा है जो रूह को इस क़दर ताक़तवर बना देती है कि इससे इंसान तो क्या शैतान भी डरने लगता है, जैसा कि हज़रत उमर रज़ी० इस क़दर अल्लाह के अहकामात के पाबंद थे कि शैतान उनके साय से डरता था।

इसी तरह हज़रत बिलाल ( रज़ि०) , हज़रत उसामा (रज़ि०) , हज़रत यासर ( रज़ि०) , हज़रत अम्मार ( रज़ी०) और हज़रत सुमय्या ( रज़ि०) जैसी हस्तीयों की सीरत ज़िंदगी बयान करने से ज़बान क़ासिर है। यही वो हस्तियां थीं जिन्होंने इस्लाम फैलाने और इसके अहकामात पर अमल करने की ख़ातिर अपनी जान, माल औलाद की बाज़ी लगा दी।

हमारे इस्लाफ़ ही थे जिन्होंने कुफ्र-ओ-शिर्क की ज़ुलमतों और जहालत के अंधेरों को मिटाकर हिदायत-ओ-नूर की शम्माएं रोशन करने में हुज़ूर नबी करीम स०अ०व० के बाज़ू बने रहे। उन्होंने ही तहज़ीब-ओ-तमद्दुन की ज़ुल्फ़ों को संवारा और सियासत-ओ-मईशत के चेहरे को निखारा।

राह इस्लाम में जितने भी मसाइब-ओ-मुश्किलात आए इन हज़रात ने उन्हें अपनी जान-ओ-माल के ज़रीया दूर किया। पत्थर जैसे ज़ालिमों के ज़ुल्म का जवाब मुस्कुराते चेहरों के साथ दिया।

यही वो लोग थे जिन्होंने अल्लाह से रिश्ता जोड़ने के बाद अपनी सगी माँ से भी रिश्ता तोड़ लिया। यही वो लोग थे जो अपने लिए ज़ालिम से भी बदला ना लिया, यही वो लोग थे जो फ़ैसले के दिन के ख़ौफ़ से इस क़दर रोते कि उनके चेहरों पर लकीरें पड़ जातीं।

हज़रत मसअब बिन अमीर (रज़ि०) से कौन वाक़िफ़ ना था। अरब का बच्चा बच्चा उन्हें पहचानता था। वो थी ही ऐसी अज़ीम हस्ती कि जो एक बार पहन लेते उसे दुबारा देखते भी ना थे और ऐसा भारी इतर इस्तेमाल करते कि अगर एक गली से आप गुज़रते तो दूसरी गली के लोग समझ जाते कि उधर से मसअब का गुज़र हो रहा है, लेकिन जब उनके दिल में उनकी रूह में इस्लाम सराएत कर गया तो वो ऐसे मुतीअ-ओ-फ़रमांबर्दार बन गए कि सिर्फ़ अल्लाह और इसके रसूल ( स०अ०व०) की इताअत में अपनी ज़िंदगी बसर की, यहां तक कि जब वो शहीद हुए तो उन्हें कफ़न के लिए भी पूरा कपड़ा मयस्सर ना हुआ।

यही वजह है कि अल्लाह तआला ने उन लोगों को दुनिया ही में जन्नत की बशारत दिये। अल्लाह तआला फ़रमाता है: अल्लाह उनसे राज़ी हुआ और वो अल्लाह से और यही लोग अपने रब से डरने वाले हैं।