इतिहास तुम्हारे खोखले राष्ट्रवाद को तुम्हारे ही मुंह पे दे मारता है और खड़ा कर देता है तुम्हें नंगा बिना कवच के जिसका इस्तेमाल वो बड़ी चतुराई से करते हो धर्म, जात् और अनेक समुदायों में लोगों को बाँटने मे, लेकिन आज भी वो आदमी वहीँ खड़ा दिखता है जो लड़ा था अपने हकों के लिए अपनी पूरी ताकत के साथ, तुम्हारी राष्ट्रवादी विचारधारा एक बोझ है राष्ट्र पर जो अाने वाली नस्लों को नाकारा बनाये रखती है .और उनके पंख कतर देती है
आखिर क्यों सरकार के विरोध में खड़ा हर व्यक्ति देशद्रोही या पाकिस्तानी हो जाता है? क्यों जीती न जा सकने वाली हर बहस देशप्रेम और राष्ट्रवाद की तरफ खींच ले जाती है? असल में यह एक जबरदस्त मारक क्षमता वाली रणनीति है. यह ऐसा छद्म राष्ट्रवाद है जिसका उपयोग तमाम दक्षिणपंथी पार्टियां और आतंकवादी संगठन दुनियाभर में करते आये हैं. इसी नकली राष्ट्रवाद का सहारा लेकर हिटलर सत्ता में आया था. इसी तरह के सिद्धांत पर आज आतंकवादी खुद को मुसलमान और अपने खिलाफ बोलने वालों को इस्लाम का दुश्मन बता देते हैं. भाजपा के पितृसंगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने तो इस हथियार का इस्तेमाल आज़ादी की उस लड़ाई को लड़ने वालों के खिलाफ भी किया है जिसमें खुद उसका इतिहास संदिग्ध है.
इस छदम राष्ट्रवाद की मारक क्षमता का सबसे खतरनाक पहलू यह होता है कि इसका शिकार व्यक्ति खुद को अपेक्षाकृत बड़ा देशभक्त समझता है. सांप्रदायिक व्यक्ति को तो कहीं किसी कोने में अपने गलत होने या हो सकने का अहसास होता है. इसीलिए उसके दिल से नफरत मिटाई भी जा सकती है. लेकिन छद्म राष्ट्रवाद से संक्रमित व्यक्ति तो देश के लिए महान काम कर रहा होता है. उसे कैसे रोका और समझाया जाए!
जब 15अगस्त को देश आज़ाद हुआ तो RSS ने स्वाधीनता दिवस मनाने से इंकार कर दिया था 1947 से लेकर 2002 तक नागपुर मुख्यालय पर तिरंगा कभी नही फहराया !
“हिन्दूवादी संघठन यानी राष्ट्वादी संघठन ” राष्टीय ध्वज तिरंगे की ज़गह अपना भगवा झंडे को राष्ट्रिय झंडा बनाने की भी मांग करते रहे है !
RSS के newspaper ‘ organiser’ ने स्वतंत्रता प्राप्ति की पूर्व संध्या पर राष्टीय ध्वज के लिए इस भाषा का प्रयोग किया था – ” वे लाेग जो किस्मत के दाँव से सत्ता तक पहुँचे हैं वे भले ही हमारे में तिरंगे को थमा दें, लेकिन ना हिन्दु द्वारा इसे न कभी सम्मानित किया जा सकेगा न अपनाया जा सकेगा ! तीन का आँकडा अपने आप मे अशुभ है आौर एक ऐसा झँडा जिसमे तीन रंग हो बेहद मनोवैज्ञानिक असर डालेगा और देश के लिए नुकसानदेय होगा” ! जिन्होने कभी तिरंगे को सम्मान नहीं दिया वो आज देशभक्त होने का दावा कर रहे हैं !!!
आचानक से उनमें देशभक्ती जाग उठी और आज वो तिरंगा थामकर आपने हाथो में भारत माता की जय के नारे लगा रहें ! राष्टवादी बनने का ढोंग कर रहे! असल में जब संघी भारत माता की जय का नारा लगाने की मांग करते हैं तो वो दरअसल ये सबित करने की कोशिश करते हो कि वो हमसे बढे़ देशभक्त हो ! ये प्रमाण मै तुम्हे दुंगी नही !
जिसका कभी देश की आज़ादी मे कोई योगदान नही रहा दरअसल वो अपने इस कमी को पूरी करने की कोशिश कर रहे !
शीबा खान
(लेखक के निजी विचार है)
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