आग है, औलादे इब्राहीम है नमरूद है!

(मोहम्मद उस्मान पेंटर)आज दुनिया की दो-तिहाई आबादी बल्कि कुछ ज्यादा हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को अपना पेशवा मानती है और हजरत मूसा, हजरत ईसा और हजरत मोहम्मद (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ) की हाजिरी ) तीनों उन्हीं की औलाद है। दुनिया की तीन बड़ी कौमें यहूदी, ईसाई और मुसलमान उनसे अपने ताल्लुक पर फख्र महसूस करती हैं। चार हजार साल जहां तक ताल्लुक है वह गुमराही का शिकार थी। जैसा कि आज की तरक्कीयाफ्ता कौमें बुतों की, पेडों और पहाड़ों तक की पूजा करती नजर आती हैं जैसा कि आज पंडित व ब्रहमण है।

उस जमाने में भी एक ऐसा तबका था जो मंदिरों की हिफाजत भी करता था और लोगों को पूजा भी कराता था, शादी और गमी के रस्मे भी अदा कराता था और मुस्तकबिल की खबरें बताने का ढोंग रचाता था। हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की कौम में शिर्क महज एक अकीदा और बुत परस्ताना इबादत का मजमूआ ही नहीं था बल्कि उस कौम की पूरी मआशी, तमद्दुनी, सियासी और समाजी जिंदगी का पूरा निजाम इस अकीदे पर मबनी था।

इसलिए हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की दावत ‘तौहीद’ का असर बुतो की परस्तिश ही पर नहीं पड़ता था बल्कि शाही खानदान की माबूदियत और हाकिमियत, पुजारियों और ऊंचे तबको की मआशरती व मआशी और सियासी हैसियत और पूरे मुल्क की इज्तिमाई जिंदगी पर उसकी जद पड़ती थी। तौहीद की दावत को कुुबूल करने के मायनी यह थे कि नीचे से लेकर ऊपर तक सारी सोसाइटी की इमारत गिरवाई जाए और तौहीद की बुनियाद पर नए सिरे से तामीर की जाए। इसीलिए हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की तौहीद की सदा बुलंद होते ही आम व खास पुजारी और नमरूद एक साथ इस आवाजे तौहीद को दबाने के लिए खड़े हो गए।

याद करो वह मौका जब कि उसने अपने बाप और अपनी कौम से कहा था -‘‘ यह मूरतें/ मूर्ती कैसी हैं जिनके तुम लोग दिवाने हो रहे हो?’’ उन्होंने जवाब दिया -‘‘ हमने अपनी कौम और बाप दादा को इनकी इबादत करते पाया है।’’ उसने कहा -‘‘ तुम भी गुमराह और तुम्हारे बाप-दाद भी सरीह गुमराही में पड़े हुए थे।’’ उन्होंने कहा-‘‘ क्या तू हमारे सामने अपने असली ख्यालात पेश कर रहा है या मजाक करता है?’’ उसने जवाब दिया -‘‘ नहीं बल्कि फिलवक्त तुम्हारा रब वही है जो जमीन और आसमानों का रब और उनको पैदा करने वाला है।

उस पर मैं तुम्हारे सामने गवाही देता हूं और खुदा की कसम मैं तुम्हारी गैर मौजूदगी में जरूर तुम्हारे बुतों की खैर लूंगा। इसलिए उसने उनको टुकड़े-टुकड़े कर डाला और सिर्फ उनके बड़े को छोड़ दिया ताकि शायद वह उसकी तरफ रूजूअ करे।’’ (अलकुरान-58) (बाज लोग बोले)-‘‘ हमने एक नौजवान को उनका जिक्र करते सुना था जिसका नाम इब्राहीम अलैहिस्सलाम है।

उन्होंने कहा -‘तो पकड़ लाओ उसको सबके सामने ताकि लोग देख ले उसकी कैसी खबर ली जाती है।’’ (इब्राहीम के आने पर) उन्होंने पूछा-‘‘ क्यों इब्राहीम! तूने हमारे खुदाओं के साथ यह हरकत की है?’’ उसने जवाब दिया- ‘‘बल्कि यह सब कुछ उनके सरदार ने किया है, उन ही से पूछ लो अगर यह बोलते हों। यह सुनकर वह लोग अपने जमीर की तरफ पलटे और अपने दिलों में कहने लगे-‘‘ वाकई तुम खुद ही जालिम हो।’’ मगर फिर उनकी मत पलट गई और बोले-‘‘ तू जानता है कि यह बोलते नहीं है- ‘‘इब्राहीम ने कहा-‘‘ फिर क्या तुम अल्लाह को छोड़कर उन चीजों को पूज रहे हो जो न तुम्हें नफा पहुंचाने पर कादिर है न नुक्सान। तुफ है तुम पर तुम्हारे इन माबूदों पर जिनकी तुम अल्लाह को छोड़कर पूजा करते हो।

क्या तुम कुछ भी अक्ल नहीं रखते।’’ उन्होंने कहा जला डालो इसको और हिमायत करो अपने खुदाओ की अगर तुम्हे कुछ करना है।’’ हमने कहा आग ठंडी हो जा और सलामती बन जा इब्राहीम पर फरमाया अल्लाह ने। और वह चाहते थे कि इब्राहीम के साथ बुराई करें मगर हमने उनको बुरी तरह नाकाम कर दिया। हमने उसे और लूत को बचा कर उस सरजमीन की तरफ ले गए जिसमें हमने दुनिया वालों के लिए हर कशिश रखी है।

और हम ने उसे इस्हाक (अलैहिस्सलाम) अता किया याकूब (अलैहिस्सलाम) इस पर मजीद और हर एक को सालेह बनाया और हमने उनको इमाम बना दिया जो हमारे हुक्म से रहनुमाई करते थे। और हमने उन्हें वहि के जरिए नेक कामों की और नमाज कायम करने और जकात देने की हिदायत की और वह हमारे इबादत गुजर थे। (अल अम्बिया-660)

हजरत नूह (अलैहिस्सलाम) के बाद हजरत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) पहले नबी है जिनको अल्लाह तआला ने ‘इस्लाम’ की आलमगीर दावते आम करने के लिए मुंतखब किया था। आप ने इराक से लेकर मिस्र और सीरिया व फिलिस्तीन से लेकर अरब के मुख्तलिफ हिस्सों तक पहुंचकर अल्लाह की इताअत व फरमांबरदारी (यानी इस्लाम) की तरफ लोगों को दावत दी फिर अपने इस मिशन को आम करने के लिए मुख्तलिफ इलाकों में खलीफा मुकर्रर किए और अरब के अंदर अपने बड़े बेटे हजरत इस्माईल को मुतअय्यन किया फिर अल्लाह के हुक्म से वह मक्का में वह घर तामीर किया जिसका नाम काबा है।

अल्लाह के हुक्म से वह इस मिशन यानी दावते इस्लामी का मरकज करार पाया। हजरत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) का अस्ल काम अल्लाह की तरफ से आई हुई इस हिदायत के मुताबिक इंसानों की इंफिरादी व इज्तिमाई जिंदगी का निजाम दुरूस्त करना था। और वह खुद अल्लाह के मुतीअ थे। उसी दिए हुए इल्म की रौशनी में अपनी जिंदगी की तामीर की थी और तमाम इंसानों को उस दीने इस्लाम की पैरवी की तरफ तमाम उम्र बुलाते रहे। और न सिर्फ खुद बल्कि अपनी औलाद को भी इस काम के लिए मामूर फरमाया।

और अपने भतीजे हजरत लूत (अलैहिस्सलाम) को भी अपने मिशन की इशाअत के लिए जार्डन में जिम्मेदारी सौंपी। मुस्लिम वह जो खुदा के सामने अपने सर झुका दिए और खुदा ही को अपना खालिक, मालिक व हाकिम और आका व माबूद मान कर अपनी जिंदगी गुजारी। और उस तरीका-ए-जिंदगी का नाम ‘इस्लाम’ है। और यही हजरत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) और तमाम अम्बिया का दीन था। जो दुनिया के मुख्तलिफ मुल्कों में और कौमों में आए। ‘दीन’ से मुराद तरीके जिंदगी, निजामे हयात, वह आईन जिनपर इंसान दुनिया में अपने पूरे तर्जे फिक्र की और तर्जे अमल की बुनियाद रखे। अगर हम अम्बिया (अलैहिस्सलाम) की बुनियादी दावत का मुताला करे तो हम पाएंगे कि तमाम अम्बिया ने इंसानों के सामने जो दावत रखी और पेश की है वह यह कि तुम्हारा खुदा एक है, बंदगी उसी की करो और सिर्फ उसी से डरो (अल्लाह के सिवा तुम्हारा कोई माबूद नहीं) (अल एराफ) अल्लाह से डरो और मेरी इताअत करो। अल्लाह के सिवा तुम किसी की इबादत न करो (हूद) इस्लाम की दावत की यही यकसानियत है जो शुरू से आखिर तक जारी रहेगी। हजरत इब्राहीम (अलै0) ने भी सबसे पहले अपनी कौमी के सामने यही पैगाम पेश किया था कि अल्लाह की बंदगी करो और उसी से डरो।

वह एक सजदा जिसे तू गिरां समझता है, देता है आदमी को हजार सजदों से निजात, जिनको भी अल्लाह ने दावती काम की तौफीक अता की है, दावत का पहला निशाना अपना घर और अपना खानदान, मआशरा और मोहल्ला शहर और पड़ोस जहां हम रहते। जरा पड़ोसियों वाली हदीस को जेहन में लाइए। क्योंकि हम जहां रहते और बसते हैं जिनसे हमारे रवाबित और ताल्लुकात होते हैं वही इसके ज्यादा हकदार हैं कि उनको दावत की नेमत से मालामाल किया जाए क्योंकि दाई उनकी जबान और तौर तरीकों से वाकिफ होता है (और हम ने कोई रसूल नहीं भेजा मगर यह कि वह उस कौम की जबान बोलता हो कि वह इनके सामने खुलकर बयान कर सके)। (अल कुरआन) और हमने तुमसे पहले जो रसूल भी भेेजे वह सब उन्हीं बस्तियों के रहने वाले थे हम जिनकी तरफ वहि भेजते रहे हैं। (अल कुरआन) वह तरीके दावत व तर्बियत है जिसके पेशे नजर अल्लाह तआला ने नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) को हुक्म दिया कि अपने करीबी कुन्बे वालों को डराओ। बड़े ही नादान है वह लोग जो दावत की इस तर्बियत को जो अल्लाह की तरफ से अता कर्दा है रहनुमाई की मौजूदगी में इस तर्बियते दावत को छोड़कर। जोशे तब्लीगे दावत में अपनी कौम और मुल्क व मआशरा अपनी बस्तियों को कुफ्र व फसक की जुल्मतों में भटकने के लिए छोड़कर, देश-विदेश, दूर दराज इलाकों में मारे मारे फिरते हैं। कहीं इसलिए तो नहीं कि दावती सरगर्मियों के मरहलों में ऐसा भी मकाम आता है जहां कौम की ख्वाहिशात व अकीदे के खिलाफ तमाम मसलेहतों, मुखालिफतों और मजाहमतों के बावजूद हक को उसकी सी शक्ल में पेश करना होता है। चाहे फिर कोई खुश होता या नाराज इससे बेनियाज होकर इजहारे हक का हक अदा करने का जो नमूना सैयदना इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) ने तमाम मसलेहतों को नजरअंदाज करते हुए कोई मुदाहनत नहीं बरती। बातिल में मुदाहनत करना कुफ्र है और बातिल से मुदाहनत करने वाला काफिर (अल कुरआन) अल्लाह के सिवा सब माबूद बातिल है। अल्लाह को छोउ़ कर वह तो महज बुत है। (वह इंसान जिनको अल्लाह ने अहसन तकदीम पर पैदा फरमाया है) और हजरत आदम (अलैहिस्सलाम) जो सबसे पहले इंसान और नबी भी थे अल्लाह के हुक्म से उनको फरिश्तों ने सजदा किया है। सिवाए इबलीस के जो मलऊन हुआ। अल्लाह ने इंसान को जमीन पर अपना खलीफा बनाकर भेजा है। अल्लाह से दुआ है कि हम को उसवा-ए-इब्राहीमी व मोहम्मद (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) की इताअत करते हुए तमाम इंसानों को खुदा की बंदगी की तरफ दावत देने की तौफीक अता फरमाए।

———————-बशुक्रिया: जदीद मरकज़