आज़ादी के 70 साल बाद मुसलमान…

मुल्क़ के आज़ाद हुऐ 70 साल हो गए लेकिन मुसलमानों के हालात में कोइ बदलाव नहीं हुआ बल्कि मुसलमान समाज इतना पिछड़ गया की आज देश के सबसे पिछड़े लाइन में खड़ा है मुसलमानों की हालत दलितों से भी बदतर हो गइ है और
मुल्क़ आज़ाद होने के बाद मुसलमानो के
हालात दिन-बा-दिन बदतर होते चले गए,
आज़ादी के पहले और आज़ादी मिलने के कुछ
सालो बाद तक मुसलमानों की हालत ठीक थी लेकिन धिरे हालत बद, से बदतर हो गईं जो अभी के सरकारी नौकरियों के आंकड़ों से साफ़ पता चलता है आज़ादी के समय मुसलमान सरकारी नौकरियों में 38% हुआ करते थे जो घटते-घटते
अब सिर्फ 1% रह गए हैं,
सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में दिये गये आंकड़े ,
>देश में 6 से 14 वर्ष के 25% मुस्लिम बच्चे कभी स्कुल नहीं गए,
>अंडरग्रेजुएट कोर्स में पर 25 छात्रों में सिर्फ एक छात्र मुस्लिम हैं ,
>पोस्टग्रेजुएट कोर्स में पर 50 छात्रों में सिर्फ एक मुस्लिम छात्र हैं ,
>आइएएस अधिकारियों में सिर्फ 3% मुसलमान हैं,
>आइपीअस अधिकारियों में सिर्फ 4% मुसलमान हैं,
>आइएफ़एस अधिकारियों नें सिर्फ 1.8% मुसलमान हैं,
>आइआरएस अधिकारियों में सिर्फ 4.5% मुसलमान हैं,
रेलवे -4.5%, शिक्षा-6.5%, होम-7.3% ,पुलिस(सिपाही ) -6%
>राज्य लोक सेवा आयोग में-2.1%,
देश केमुस्लिम बहुल आबादी वाले मुस्लिम राज्य ,
आसाम -11.2%, पशिचम बंगाल -4.2%, केरल -10.4%, कर्नाटका -8.5%,
गुजरात -5.1%, तामिलनाडु -4.2%,
बिहार और युपी में मुसलमान अपनी आबादी के एक तिहाई फ़िसद सरकारी नौकरी में हैं |
भारत के मुस्लिम बहुल 12 राज्यों में नया्यपालिका में मुसलमान 7.8% हैं |
ये आंकड़े आबादी के हिसाब से बहुत कम हैं , ये आंकड़े ही बता रहे हैं की हालत कैसी है

आज़ादी के बाद देश के मुसलमानो को दूसरी क़ौमों की तरह
शिक्षा, रोजगार और बुनियादी ज़रूरतों पर
ध्यान देना चाहिए था, मगर आज़ादी के बाद
देश के हालात कुछ ऐसे बना दिए गए,और देश
के
मुसलमानो को इतना डरा दिया गया की देश
का मुसलमान शिक्षा, रोजगार, तरक्की और
बुनियादी ज़रूरतों को भूलकर अपनी इज़्ज़त
और जान की हिफाज़त पर ध्यान देने लगा,
देश की राजनितिक पार्टियों ने
भी मुसलमानो के इस डर को खूब भुनाया और
राजनितिक पार्टियां मुसलमानो के इस डर
से मिलने वाले वोट से सत्ता पर क़ाबिज़
होकर मज़े लूटती रही. मगर देश का मुसलमान
कल बर्बादी के जिस मोड़ पर खड़ा था आज
भी उसी मोड़ पर उसी तरह खड़ा है, देश
को आज़ाद हुए 70 वर्ष हो गए, इस दौरान
कई सरकारें बदली तो कई हुक्मराँ भी बदले,
मगर अफ़सोस मुसलमानो के हालात किसी ने
नही बदले, राजनितिक पार्टियों ने
मुसलमानो की आर्थिक और सामाजिक
स्थिति का जायजा लेने के लिए रंगनाथ
मिश्र आयोग और सच्चर कमेटी तो गठित
की मगर मुसलमानो की हालत सुधारने के
लिए इन कमेटियों की सिफारिशें
किसी पार्टी ने लागु नही की, आज़ादी के
इतने बरस बाद और तरक्की शुदा दौर में
मुसलमान खुद को पिछड़ा और ठगा सा महसूस
कर रहा है, जिसकी ज्यादातर ज़िम्मेदार
खुद को सेकुलर कहने वाली वो राजनितिक
पार्टियां हैं, जिन्होंने देश के
मुसलमानो को वोट बैंक से ज्यादा न
कभी समझा और ना कभी अहमियत दी है,,
इस पिछड़ेपन के ज़िम्मेदार काफी हद तक खुद
मुसलमान भी हैं, देश के मुसलमानो ने
कभी एकजुट होकर क़ौम की तरक्की के लिए
कोई ठोस कदम नही उठाया है, और एक दुर्भाग्य रहा के मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद के बाद कौ़म में कोइ लिडर नहीं आया जो पुरे समाज के दर्द को समझता और कौ़म की आवाज़ बनता मुसलमानो ने
अपनी सोच बदलने और राजनितिक
पार्टियों की गुलामी की ज़ंजीरें तोड़ने के
लिए कभी एक अदना कोशिश भी नहीं की,
इसलिए देश का मुसलमान आज़ादी की बाद से
अब तक वोट बैंक बनकर इस्तेमाल
होता आया है, अगर यही हालात रहे तो आगे
भी देश का मुसलमान इसी तरह इस्तेमाल
होता रहेगा,,,
अब हक़ मांगने से नही बल्कि छीनने से
मिलेगा,,बस ज़रूरत है आपके बेदार होने की ,,
वक़्त गुलशन को पुरा खुन हमने दिये,
आइ जब बहार तो कहते हैं तेरा काम नहीं
,,
Er Zain Shahab Usmani

(यह लेखक के निजी विचार हैं , सियासत हिंदी का सहमत होना ज़रूरी नहीं)