एक 50 साला शख़्स को दिल्ली की एक अदालत ने फ़हश (अशलील) किताबें रखने और उन का मुताला ( पढने/ पाठवाचन) करने की पादाश (बदले) में एक हफ़्ता की सज़ाए क़ैद और 1000 रुपये का जुर्माना आइद किया लेकिन हैरतअंगेज़ बात ये है कि इस मुआमला की समाअत ( सुनवायी) गुज़शता ( पिछले) आठ सालों तक चलती रही । मशरिक़ी ( पूर्वी) दिल्ली के साकन ( निवासी/ रहने वाले) बब्बू को अदालत ने उस वक़्त ये सज़ा सुनाई जब इस ने ख़ुद एतराफ़-ए-जुर्म किया ।