आप सब को में आप के शहर से ही नया साल मुबारक कह रहा हूँ

महमूद शाम-इतवार को इतवार आप से मैगज़ीन में तो मुलाक़ात होती ही है। अब भी होरही है। आप की इजाज़त के बगै़र कुछ सुतूर अफ़्सानी भी। क्योंकि आप के शहर में जुमेरात से मौजूद हूँ। इन ही सड़कों पर घूम रहा हूँ। जहां से आप गुज़रते होंगे। इन ही हवाओं में सांस ले रहा हूँ। जहां आप सुबह से शाम करते हैं। सियासत में लिखना किया शुरू किया। सियासत ने यहीं बुला लिया। आलमी उर्दू ऐडीटर्ज़ कान्फ़्रैंस का इनइक़ाद करके रोज़नामा सियासत ने एक बड़ा कारनामा अंजाम दिया है।

पाकिस्तान और हिंदूस्तान के ऐडीटर्ज़ को एक छत तले जमा करदिया। वो भी जुबली हाल में। जहां ज़माना दास्तान सुनाते सुनाते सो गया है।निज़ाम की अज़्मतों के साय में कराची, पिशावर, लाहौर, दिल्ली, जालंधर, छत्तीसगढ़, भोपाल, लखनउ, बैंगलौर, कोलकता के ऐडीटर्ज़ एक दूसरे से मिल रहे थे। अपनी कामयाबीयों, नाकामियों के क़िस्से सुना रहे थे। उर्दू से मुहब्बतें शबाब पर थे । ज़बान सेइशक़ उरूज पर था जाम जहांनुमा से ये सफ़र शुरू हुआ था। एक मुदीर ने तहिरीक-ए-आज़ादी के लिए मौत को गले लगाया था। मौलवी बाक़र अली की क़लमी तस्वीर देखी। हम ने तोप के सामने।

तुम से जो रस्म मिली बाइस तक़लीद बनी

जंग-ए-आज़ादी जो 1857 में शुरू हुई। वो आज तक जारी है। एक हाल में क़दीम उर्दू अख़बारात की फाइलें उर्दू सहाफ़त की तारीख़ ब्यान कररही थीं। हाथ की किताबत, बलॉक प्रिंटिंग, दूसरी जंग-ए-अज़ीम, तहिरीक-ए-आज़ादी हिंद पर कांग्रेस, मुस्लिम लीग की जद्द-ओ-जहद, रियास्तों के मसाइल, ये सब कुछ उन फाइलों में दावत मुताला दे रहा है। रहनुमाए दक्कन के सफ़हात तारीख़ के औराक़ हैं। सियासत की फाइलें हैं। जराइद और रसाइल की जिल्दें। साथ में पाकिस्तान के अख़बारात रखे हैं जो मैं सुहेल डराइच , सीनीयर ऐडीटरिंग ग्रुप , अय्याज़ बादशाह चीफ़ ऐडीटर रोज़नामा मशरिक़, पिशावर लेकर आए हैं। जंग ऐक्सप्रैस, नवाए वक़्त, सिटी 42 , मशरिक़ पिशावर, ज़माना कोइटा ये भी दिलचस्पी से देखे जा रहे हैं।

फिर नईम साबरी की ख़त्ताती का क़लम ऐसा अंदाज़ कि सरीर की आवाज़ आरही है। मैं तो निस्फ़ सदी से ये सदा सुन रहा हूँ। कान्फ़्रैंस का इफ़्तिताह जमहूरीया हिंद के मौजूदा नायब सदर मुहम्मद हामिद अंसारी ने किया और इख़ततामी इजलास में मेहमान ख़ुसूसी चंद्रा बाबू नायडू थे जो हिंदूस्तान के मुस्तक़बिल के वज़ीर-ए-आज़म हैं। यूं उर्दू और उर्दू सहाफ़त का हाल भी महफ़ूज़ है और मुस्तक़बिल भी महफ़ूज़ और रोशन दिखाई दे रहा है। ज़ाहिद अली ख़ां साहब , अल्लामा एजाज़ फ़र्ख़ दोनों की दिन रात की कोशिशों से ये कान्फ़्रैंस लम्हा लम्हा कामरानी की मंज़िलें तए कररही है। हैदाबादी उर्दू भी सुनने को मिल रही है और तेलगु भी।

उधर उधर लोग फिर रहे हैं। जुबली हाल में भी उर्दू के आशिक़ बड़ी तादाद में जमा हैं। दिल्ली में धुंद ने नायब सदर के जहाज़ को उड़ने से रोक दिया है। लोग सुबह से है जमा हैं। कहीं नहीं जा रहे। उर्दू सहाफ़त को दरपेश मसाइल का ज़िक्र शुरू किया है। पाकिस्तान में भी उर्दू के मसाइल हैं। हिंदूस्तान में भी। लेकिन दोनों के मसाइल एक दूसरे के बरअक्स हैं।

तेरे आज़ाद बंदों की ना ये दुनिया ना वो दुनिया
यहां मरने की पाबंदी वहां जीने की पाबंदी

वहां उर्दू का इस्तिमाल ज़्यादा होरहा है। ज़्यादा कमाई है। यहां उर्दू पढ़ने वाले कम होरहे हैं। उर्दू अख़बार घाटे का सौदा है। फिर भी ज़ाहिद अली ख़ान की क़ियादत में दोनों तरफ़ के ऐडीटर्ज़ और शेमाली अमरीका से डाक्टर तक़ी आब्दी तै कररहे हैं कि अब वर्ल्ड उर्दू ऐडीटर्ज़ फ़ोर्म । आलमी उर्दू ऐडीटर्ज़ कान्फ़्रैंस की एक मुस्तक़िल तंज़ीम होगी। मैंने पेशकश करदी है कि सब कराची में अगले साल बल्कि इसी साल के आख़िर में जमा होंगे। इस तरह एक छत के तले। इस साल के दौरान हम बहुत से मराहिल तए करलींगे। उर्दू की इस्तिलाहात पर काम करेंगे। उर्दू को फ़रोग़ देंगे। हिंदूस्तान से इंतिहाई सीनीयर कुहनामुशक सहाफ़ी अहमद सईद मलीहाबादी हमारी सरपरस्ती के लिए मौजूद हैं।

पंजाब केसरी और हिंद समाचार के मालिक वेजए कुमार पहले इजलास में बड़ी दिलचस्प बातें करके गए हैं। इन के पढ़ने वाले 70 साल से ऊपर के होगए हैं। अब कहीं कोई भी 70 साला शख़्स चल बस्ता है तो हिंद समाचार की एक कापी कम होजाती है। हैदराबाद पहले से बहुत ख़ूबसूरत होगया है। उतरते ही शान-ओ-शौकत वाली एयर पोर्ट देखी। जब हम छः सात बरस पहले आए थे, उस वक़्त एयर पोर्ट यूंही देहाती सा था।
अब तो बैन-उल-अक़वामी मेयार का है। चलते चलते थक जाते हैं। ये ख़तम ही नहीं होता। फिर ये रिंग रोड जो एक किस्म का पुल है। कितने किलोमीटर लंबा। ये भी लंबी होती चली जाती है। हुसैन सागर में अलबत्ता कोई तबदीली नहीं आई। इसी तरह ख़ामोशी से बह रहा है मुश्ताक़ ने कहा था

ये पानी ख़ामुशी से बह रहा है
उसे देखें कि इस में डूब जाएं

वही स्कूटर चलाती ख़वातीन। दौड़ते भागते लोग। मौसम बहुत ख़ुशगवार। हल्की हल्की सर्दी है। सयासी मौसम भी अभी गर्म नहीं है। हैदराबादी मेहमान नवाज़ी ज़ोरों पर है। पहली शाम आते ही ज़ाहिद अली ख़ान साहब की रिहायश गाह पर वही रिवायती अंदाज़ में खाने सजे हुए थे। वेक़ार उद्दीन साहब ने पूरा घर हम लोगों के लिए खोल दिया। हैदराबाद को साइबराबाद बनाने वाले चंद्रा बाबू नायडू का नाशतादान मुख्तलिफ़-उन-न्नौअ ज़ायक़ों से और मुस्तक़बिल की उम्मीदों के साथ पुर लुतफ़ था।

अल्लामा एजाज़ फ़र्ख़ की मुरस्सा सजिया गुफ़्तगु, बरमहल अशआर और फिर उर्दू कान्फ़्रैंस के मुस्तहकम मुस्तक़बिल के लिए क़रारदादें। इन की तरहदार शख़्सियत के मुख़्तलिफ़ पहलू उजागर करती रहीं। ज़ाहिद अली ख़ानसाहब की सहाफ़त के साथ साथ अपनी बिरादरी और ग़रीब हम वतनों की ख़िदमात के तज़किरे दिल का हौसला बढ़ाती हैं। आबिद सिद्दीक़ी की निज़ामत से पाकिस्तान के कई कामयाब नाज़िमीन याद आते हैं। हम ने 2011-आप के हाँ ख़तम किया और 2012- आप के हाँ आग़ाज़ किया है। हमारी बेगम साल की आख़िरी रात या पहली रात अपनी सालगिरा मनाती हैं। हम इस में मसरूफ़ हैं। अब अगले इतवार हसब-ए-मामूल मुलाक़ात होगी।