“आप सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करते हैं या नहीं ?”

सवाल मुझसे पूछा जा रहा था। उसी दिन सुप्रीम कोर्ट ने बिड़ला-सहारा मामले में अपना फैसला सुनाया था । मोदी विरोधियों के टॉय टॉय फिस्स होने की बात चल रही थी। शाम होते होते टीवी स्टूडियो अदालत में बदल चुके थे ।

मेरा जवाब साफ़ था ” बिल्कुल करते हैं ,सबको करना चाहिए । लोकतंत्र में आस्था है तो संविधान द्वारा स्थापित कोर्ट कचहरियों का सम्मान तो करना ही होगा । फैसला मेरे मन माफ़िक़ न हो तो भी करना होगा । सम्मान की तो पहचान यही है – जब कोई बात ठीक न लगे तब भी उसका मान रखना.”

अगला सवाल तैयार था ,अगर सम्मान करते हो तो सहारा-बिड़ला का किस्सा बंद क्यों नहीं करते? कोर्ट ने आपसे सुबूत मांगे थे, वो आप दे नहीं पाए . जो कागज़ आपने दिए उसे तो कोर्ट ने बिलकुल फर्ज़ी बताया . हो गया राहुल गांधी का भूकंप. अब तो बस कीजिये? आप सब मोदी जी के पीछे क्यों पड़े है?”

मैं सोचने लगा. सोचा याद दिलाऊँ की बिड़ला-सहारा का मामला सिर्फ मोदी जी का नहीं है. इस मामले में दर्जन से ज़्यादा पार्टियों के सौ से ज़्यादा शीर्ष नेताओं के नाम है . इसलिए कई महीनो से कांग्रेस इस मामले पर चुप थी.,सवाल मोदी जी के फंसने या छूटने का नहीं है, इस केस में सवाल ये था कि देश का सत्ता प्रतिष्ठान पकड़ मे आएगा या बच निकलेगा. ये सवाल न राहुल गांधी का है न अरविन्द केजरीवाल का . इन दोनों ने तो वही बाते दोहराई थी जो प्रशांत जी ने अपनी चिट्ठियो मे उठाई थी .वही प्रशांत भूषण जिन्होंने 2 G और कोयला घोटाले का भंडाफोड़ किया था ,जिसे कल तक बीजेपी वाले “भ्र्ष्टाचार के विरुद्ध योद्धा” बताते थे.

लेकिन ये सब तो किसे नहीं पता? इसे दोहराने का क्या फायदा? ये सोच के रुक गया .

फिर सोचा की याद दिलाऊँ की खुद सुप्रीम कोर्ट ने सहारा बिड़ला मामले को बंद नहीं किया है . कोर्ट ने केस मे कोई अंतिम फैसला नहीं सुनाया है. कोर्ट ने अभी किसी को दोषी और किसी को निर्दोष नहीं ठहराया है. अभी तो मुक़दमा शुरू